________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Achar
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[१६]
जैन-इस बात को दिगम्बर नमाज ठीक २ समझ ले तो जैन समाज में एक बड़े एकान्त अाग्रह से खड़ा हुआ सम्प्रदायवाद का आज ही अन्त होजाय । अनेकान्तबादी जैनों का फर्ज है कि इसके लिये उचित प्रयत्न करे और जैनसंघ को पुनः अविभक्त संघ बनावे।
दिगम्बर-ऊपर के पाठों में षंढ दीक्षा और षंढ मुक्ति का भी विधान मिलता है तब तो पंढ मुक्ति भी दिगम्बर शास्त्रों से सिद्ध हो जाती है।
जैन--दिगम्बर शास्त्र नपुंसक को भी मोक्ष मानते है। मगर उसमें संभवतः इतनी विशेषता है । कि वो नपुंसक असली नहीं, किन्तु कृत्रिम नपुंसक होना चाहिये।
गोम्मटसार कर्म कान्ड गा० ३०१ में पर्याप्त स्त्री को पुरुष वेद और पंढ वेद के उदय की ही मना की है और पुरुष का सिर्फ स्त्री के उदय की ही मना की है। इसी से स्पष्ट है कि-पुरुष किसी निमित्त से षंढ बन जाता है, यह पंढ "कृत्रिम पंढ" है और यही मोक्ष का अधिकारी है।
जिनवाणी गांगेय को कृत्रिम नपुंसक मानती है और उसको मोक्ष गामी भी बताती है।
सारांश-दिगम्बर शास्त्र स्त्री मुक्ति के साथ पंढमोक्ष की भी हिदायत करते हैं माने "चंद मोन" मानते हैं
प्रथम भाग समाप्त
For Private And Personal Use Only