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[११] यही है कि उनके अभाव में केवल ज्ञान का प्रभाव नहीं माना जाता है।
इससे स्पष्ट है कि स्त्री केवलिनी और मोक्ष गामिनी हो सकती है।
दिगम्बर-स्त्री प्राचार्य नहीं होती है और न पुरुष को शिक्षा देती है।
जैन--स्त्री "गणिनी" बनती है, स्त्री समाज की अपेक्षा से वह प्राचार्य पदवी है, वो "महत्तरा" भी बनती है । क्या स्त्री अपने पुत्र को उपदेश नहीं देती है ? और वह ही उसको सन्मार्ग में लाने वाली है । स्वयं दीक्षा लेकर अनेक जीवों को धर्म में लाती है स्थापित कराती है।
दिगम्बर-दि० पं० न्यामतसिंह का मत है कि एक पुरुष जिस तरह हजारों स्त्रियाँ रख कर प्रति वर्ष हजारों संतान उत्पन्न कर सकती है। क्या स्त्री भी उस तरह कर सकती है ? स्त्री वर्ष भर में १ बचा कर सकती है । इसलिये पुरुष सबल है स्त्री अबला है मोक्ष नहीं पा सकती है।
(सत्य परीक्षा पृ० ४४ भ्रम निवारण पृ०१२) जैन-यदि सन्तान की संख्या ही मोक्षगामीके बल-वीर्य का थर्मामीटर है तो सौ पुत्र के पिता ऋषभदेवजी सबल, दो संतान के ही उत्पादक युगालक मध्यमवल और ब्रह्मचारी नेमिनाथजी वगेरह अबल माने जायेंगे, इस हिसाब से तो भ० नेमिनाथ अादि को मोक्ष ही नहीं होना चाहिये था। उस थर्मामीटर से तो कुत्ता सबल और मनुष्य अबल माना जायगा । इतना ही क्यों ? समूछम का आदि कारण सबल, और गर्भज का श्रादि कारण भबल ही माना जायगा । मोक्ष आपके इन सबलों की ही अमानत बनी रहेगी क्या!
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