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[९.] (रवीन्द्रनाथ मैन पावती को " गोत्र कर्म " लेख, जनमित्र ०.
मा० २७ पृ. ४४०) १८ इस प्रकार इस लेखसे यह अच्छी तरह स्पष्ट हो जाता है कि आर्यखंड के मनुष्य उच्च और नीच दोनों प्रकार के होते हैं। शुद्र हीन वृत्ति के कारण व म्लेच्छ क्रूर वृत्ति के कारण नीच गोत्री, बाकी वैश्य, क्षत्रिय ब्राह्मण और साधु स्वाभिमानपूर्ण वृत्ति के कारण उच्च गोत्री माने जाते हैं, और पहली वृत्ति को छोडकर पदि कोई मनुष्य या जाति दूसरी वृत्ति को स्वीकार कर लेता है तो उसके गोत्र का परिवर्तन भी हो जाता है, जैसे भोग भूमि की स्वाभिमानपूर्ण वृत्ति को छोड़कर यदि आर्यखंड के मनुष्यों ने दीन वृत्ति और क्रूरवृत्ति को अपनाया तो वे क्रमशः शूद्र व म्लेच्छ बनकर नीच गोत्री कहलाने लगे। इसी प्रकार यदि ये लोग अपनी दीन वृत्ति अथवा क्रूर वृत्ति को छोड़कर स्वाभिमानपूर्ण वृत्ति को स्वीकार कर ले तो फिर ये उच्च गोत्री हो सकते हैं । यह परिवर्तन कुछ कुछ अाज हो भी रहा है तथा आगम में भी बतलाया है कि छठे काल में सभी मनुष्यों के नीच गोत्री हो जाने पर भी उत्सर्पिणी के तृतीय काल की आदि में उन्हीं की संतान उच्च गोत्री तीर्थकर प्रादि महापुरुष उत्पन्न होंगे। (पंडित वंशीधरती माकरणाचार्य का "मनुष्यों में उपचता मोचता क्यों !"
हेस, भनेकांत व. ३ कि. पृ. ५५) दिगम्बर-शूद्र जिनेन्द्र की पूजा करे !
जैन--इसके लिये तो दिगम्बर प्राचार्यों ने भी प्राशा दे दी है। जैसा कि१अपवित्रो पवित्रो वा० (देव गुरु भास पूजा पाठ )
२-विद्याधर तीर्थकर की पूजा करके बैठे हैं (३) इन में मातंग जाति के ये हैं (11) हरे बमवाले मातंग (१५) सर्वो
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