________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ ३४ ] श्रावक ध्यान दशा में अप्रमत गुण स्थान को पहुंच जाता है और अंतर्मुहूर्त के बाद छठा में आता है
इस प्रकार शुरुमें गृहस्थ दशा में ही प्रमत्त व अप्रमत्त आदि गुण स्थान की प्राप्ति होती है बाद में कोई महानुभाव मुनि भी हो जाता है, मगर नग्न होते ही छट्टा या सातवाँ गुण स्थान मिल जाय ऐसा कोई एकान्त नियम नहीं है। भूलना नहीं चाहिये, दिगम्बर मत में पांचवे से सीधा छठा गुण स्थान की प्राप्ति मानी नहीं है।
दिगम्बर-क्या आप इस सम्बन्ध में किसी दिगम्बर विद्वान् का प्रमाण दे सकते है।
जैन--महानुभाव ! दिगम्बर शास्त्रों में छट्टा सातवा गुण स्थान पाने में यह माम मान्यता है । अतः इस विषय के अनेक प्रमाण हैं।
आप की प्रतीति के लिये यहाँ एक प्रमाण दिया जाता है। जैसाकि_ "फिर यही सम्यग दृष्टि जब अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय को ( जो श्रावक के व्रतों को रोकती है ) उपशम कर देता है तब चौथे स पाँचवे देश विरत गुण स्थान में आ जाता है इस दरजे में श्रावक की ग्यारह प्रतिमा पाली जाती है इससे आगे के दरजे साधु के लिये है।
यही श्रावक जब प्रत्याख्यानबरण कषाय का ( जो साधु व्रत को रोकते हैं) उपशम कर देता है और संज्वलन व नौ कषाय का (जो पूर्ण चारित्र को रोकती है ) मंद उदय साथ साथ करता है तब पाँचवे से सातवे गुण स्थान अप्रमत्त विरत में पहुँच जाता है, छठे में चढ़ना नहीं होता है इस सातव का काल
For Private And Personal Use Only