________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ ] मोच योग्य अधिकार
दिगम्बर-मान लो कि वस्त्रधारी मुनि माक्ष में चला जायगा जबतो गृहस्थ भी केवली होकर मोक्ष में चला जायगा। प्राचार्य. कुंद कुंद स्वामी ने तो समय प्राभूत गा० ४३८, ४० में गृहस्थलींग में मोक्ष की मना की है । तो क्या गृहस्थ मोक्ष में जाता है।
जैन--हाँ ? यद्यपि ऐसा क्वचित ही बनता है, परन्तु ऐसा होने में तनिक भी शंका का स्थान नहीं है । जैन दर्शन अनेकान्त दर्शन है । जैन दर्शन भाव चारित्र वाली प्रात्मा की मोक्ष मानता है, शरीर की या वस्त्रों की नहीं। दिगम्बर शास्त्र भी इस बात के गवाह है।
प्रा० कुंद कुंदजी समय प्राभूत गा० ४३६, ४०, ४२ में भाव श्रात्मा को ही मोक्ष बताते हैं गा० ४४३ में गृहीलींग ममत्व की मना करने है।
दिगम्बर-श्रावक ग्टे गुण स्थान को भी नहीं पाता है तो फिर मोक्ष को कैसे पा सकता है !
जैन--मूीवाला छटे गुण स्थान को न पावे, यह तो ठीक बात है, किन्तु श्रावक ही नहीं पावे यह कैसे माना जा सकता है ? दिगम्बर प्राचार्य तो गृहस्थ को भी छटे सातवें गुणस्थान का अधि. कारा मानते है । ये फरमाते हैं कि पंचम गुण स्थानवर्ति श्रावक ध्यान दशा में अप्रमत गुणस्थान को पाता है और अंत. मुहूर्त के बाद में छटे में आता है। लिखा है कि
फिर यही सम्यग् दृष्टि जब अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय को (जो श्रावक के व्रतों को रोकती है ) उपशम कर देता है तय चौथे से पाँचवें देश विरत गुण स्थान में प्राजाता है। इस दरजे में श्रावक
For Private And Personal Use Only