________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ ६८ ) सं कारण फर्क पड़े वह अपवाद मार्ग है । ये दोनों विधि मार्ग हैं। अपवाद भी देश काल परिश्रम और सहन शीलता के कारण उपयुक्त है, माने, आर्तध्यान और रौद्र ध्यान से बचने के लिये विधि मार्ग है और उस अपवाद सेवन की शुद्धि तो प्रायश्चित से हो ही जाती है। ___ अपवाद में व्रत प्रतिक्षा का अविकल स्वरूप नहीं रहता है। जैसे किउत्सर्ग-मुनि किसी जीव की हिंन्सा न करे ? अपवाद-मुनि नदी को पार करे ? उत्सर्ग-मुनि रात्रि भोजन न करे !
अपवाद-पंचानां मूल गुणानां रात्रि भोजन गर्जनस्य च पराभियोगात् बलादन्यतम प्रति सेवमानः पुलाकनिर्गन्धो भवति
(दिगम्बर तत्वार्थ सूत्र ) उत्सर्ग-दिगम्बर मुनि पांच तरह के वस्त्र को न रक्खे । अपवाद-दिगम्बर मुनि वस्त्र को पहिने, कम्बल ओढे ।
(१) चर्यादिवेलायां । तट्टी सादरादिकेन शरीर माच्छाद्य चर्यादिकं कृत्वा पुनः तन्मुञ्चतीति उपदेश कृतः संयमिनां इत्यप वादवेषः । + + सोपि अपवादलिंगः प्रोच्यते । उस्सर्ग वेषस्तु नग्न एव ज्ञातव्यः । सामान्योक्तो विधि रुत्सर्गः, विशेषोक्तो विधि रपवादः, इति परिभाषणात् ।
(दर्शन प्राभृत गा० २४ की श्रुतसागरी टीका पृ० २१) - (२) "द्रग्यलिगं प्रतीत्यति" तत्किं केचिदसमर्था महर्षयः शीतकालादो कंबलशब्दवाच्यं कौशेयादिकं गृहणन्ते, न तत् प्रक्षालन्ते न सीग्यन्ते न प्रयत्नादिकं वर्षन्ति, अपर काले पसिर
For Private And Personal Use Only