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४ मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रत पंचकम् । अष्टौ मूलगुणानाडु गृहिणां श्रमणोत्तमाः ।।
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( करंडक श्रावका चार श्लोक ६६ ) ५ हिंसासत्यस्याद् ब्रह्म परिग्रहाच्चवादरभेदात् तान्मांसान्मद्यात् विरतिर्गृहिणोष्ट सन्त्यमी मूल गुणाः ॥
( महापुराण )
६ मद्यमांस मधुत्यागैः सहोदुम्बर पंचकैः । अष्टावेते गृहस्थानां, उक्ता मूलगुणा श्रुते ||
बताते हैं।
( भ० सोमदेव कृत चम्पू )
७ कल्याण आलोचना में ८ मूल गुण के स्थान पर ७ कुव्यसन ही लिये हैं ( श्लो० १२ )
पं० जुगलकिशोर मुख्त्यारजी ने जैनाचार्यो के शासन भेद में इस विषय पर विशद चर्चा की है । आ० कुन्द कुन्द व ० उमास्वाति जी तो श्रष्ठ मूल गुण का नाम भी नहीं देते हैं, महा पुराण व रत्नकरंड के रचयिता इन गुणों को बिरति भाव में शामिल करते हैं । और प्रा० सोमदेव वगैरह सभ्यक्त्व में दाखिल करते हैं । कितना विसंवाद ?
इनमें से किसी गुण का धारक देशविरति बन जाता है तो ८ गुण के धारक को श्रविरति मानना आश्चर्य के सिवाय और क्या है ? हरिवंश पुराण में जैन दि० राजा सुदास के मांसाहार का जिक्र है यह भी अष्ट मूल गुण की मान्यता के खिलाफ प्रमाण है | आदि बातों से पता लगता है कि दिगम्बर अष्ट मूल गुण की मान्यता असली नहीं है ।
दिगम्बर - श्वेताम्बर शास्त्र यादवों को भी मांसाहारी
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