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[६५ (पं० मेधावी कृत धर्मसंग्रह श्रावकाचार अधि० ६.) ५ अन्यविवाहकरणा नंगक्रीडा-"विटत्व" -विपुलतृषाः . इत्वरिका गमनं च स्मरस्य पंच व्यतिचाराः ॥
(रत्न करंड श्रावकाचार श्लो० ६०) ६-त्वरिकागमनं परविवाहकरणं विटत्वमातिचाराः
स्मरावाऽभिनिवेशो,ऽनंगक्रीड़ा च पंच तुर्ययमे ॥ ५७ ॥ "गमनम् आसेवनम्" ॥ इत्वरिकागमनादयः पंचातिचारा स्तुर्ययमे सार्वकालिक ब्रह्मचर्याणुवते भवन्तीति सम्बन्धः ॥
(पं० आशाधर कृत सागार धर्मामृत अ०४) ७ परस्त्रीसंगमा नंगक्रीडा न्योपम साया । तीव्रता रतिकैतव्ये, हन्युरतानि सद्वतम् ॥ वधूवित्त स्त्रियो मुक्त्वा, सर्वत्रान्यत्र तजने । माता स्वसा तनूजति, मतिब्रह्म गृहाश्रमे ॥
(पं० सोमदेवसूरिकृत, यशस्तिलक चम्पू । ८ इन अतिचारों के लिये प्रा० अतिगति स्वामी कार्तिकेय और भट्टाकलंक वगैरह के भिन्न २ मत है तथा तत्वार्थजी के टीका कार प्रा० पूज्यपाद आ० अकलंक आ० विद्यानन्दी और श्वेताम्बर श्राचार्य यहां गमन के विषय में मौन हैं।
(दिगम्बर पं० बलभद्र न्यायतीर्थ का इत्वारका परिगृहिता परिगृहितागमन लेख, जैन दर्शन व० ५ ० ५ पृ० १६६, ६) ___-परयोनिगतो बिंदुः कोटि पूजां घिनश्यति ।.
यावीर्य स्खलन न भवति तावद् ब्रह्मचारीतिश्रुतिः (पं० चम्पालाल पांडे कृत चर्चा सागर पृ० २७० समीक्षा पृ० २०५) दिगम्बर शास्त्र कन्यादान को. धर्म रूप मानते है और संतुष्ट
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