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[ ५९ ] दिगम्बर जैन मुनि जी को महाव्रतो से भिन्न प्रत्याख्यान नहीं होता है। हमारे छै अावश्यक में भी प्रत्याख्यान नहीं माना है। कि जैसा श्वेताम्बर में माना जाता है । देखो
सामायिक, स्तुति, वंदनक, प्रतिक्रमण, वैनायक और कृति कर्म इत्यादि।
( शुभचन्द्र की अंग पनति, पंचास्तिकाय भाषा'टीका, ब्रह्म हेमचन्द्र कृत सुभखंधो गा० ६१, ६२, हरिवंश पुराग सर्ग १०) ___सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, बंदनक, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्भ और स्वाध्याय ।
(सोम सेन कृत त्रिवर्गाचार भ• २ ०१६) जैन--महानुभाव ? अबद्धिक मत के सहकार से दिगम्बर समाज ने उसे उड़ाया है । आवश्यक भाष्य का प्रत्याख्यान अधिकार, पंचाशक, और पंच वस्तु वगैरह में, इस विषय की विशद विचारणा है । अवश्यक छै हैं, 1-सामायिक, २-चतुर्विशतिस्तव, ३ वंदनक, ४ प्रतिक्रमण, ५ कायोत्सर्ग और ६ प्रत्याख्यान।
दिगम्बर विद्वानों में छटे आवश्यक के लिये मतभेद है जैसा कि आपने बताया है।
प्रत्याख्यान को उड़ाने से यह मतभेद खड़ा हुआ है मगर प्रा० बट्ट केर तो "मूलाचार" में छै आवश्यक बताते हैं जिन के प्रत्याख्यान आवश्यक में एकासन, आचाम्ल, चौथ भक्त, छठ, इत्यादि प्रत्याख्यान लिये जाते हैं।
दिगम्बर-मुनि एक दफे अाहार करे।
जैन--आपको जैन तपस्या की परिभाषा के खोलने से ही इस मान्यता का उत्तर मिल जायगा।
दिगम्बर जैन श्रमण के तप की परिभाषा निम्न है
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