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[ ५५ ] पाहार विधि में आधाकर्मी आदि अनेक दोष लगते हैं, जिनका विस्तृत खुलासा पात्र की चर्चा में किया गया है, वहां से समझ लेना चाहिये ___ दिगम्बर जैनेतर के घरका आहार पानी नहीं लेना चाहिये ! कारण वे पानी को छानते नहीं हैं, और विना स्नान कराये ही गाय भैंस का दुध निकाल लेते हैं । ये पानी और दूध जैन मुनि के लीये अकल्प्य है।
जैन-भगवान् श्री ऋषभदेवजी ने जैनेतरो के घरका आहार पानी लीया है, चौथे आरे के बीच २ में जैन धर्म का लोप हो गया था, जब भ० श्रीशीतलनाथजी वगैरह ने भी जैनेतरो से आहार पानी लाया है । इस हिसाब से तो जैन मुनि को जैनेतर का
आहार पानी कल्प्य है। मगर दिगम्बर मुनिजी उनसे आहार पानी लेते नहीं है, कारण ? जैनेतर लोग नग्न को अपने घर में लाने को हीचकते हैं एवं आहार पानी देने में भी घृणा करते हैं, और इस हालत में दि० मुनि भी उनके घर जाते नहीं है। कुछ भी हो, जैन मुनि विवेकी अजैनो से आहार पानी ले सकते हैं।
दिगम्बर जैन मुनि को शूद्र का आहार पानी नहीं लेना चाहिये।
. जैन-दिगम्बर पं० आशाधरजी श्रावका चार में लीखते हैं कि-जाति हीन भी काल आदि के निमित्त से धर्मी बन सकता है। वैसे शूद्र भी उपस्कार से शुद्ध हो सकता है, इत्यादि । - इस प्रकार दिगम्बर समाज में शुद्र की शुद्धि मानी जाति है फिर दिगम्बर मुनि को उसके आहार पानी लेने में हरजा भी क्या है ? मगर अाज तो वे जेनेतरो का भी श्राहार पानी नहीं लेते हैं फिर उस शुद्र का कैसे ले सके !
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