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[३ ] मार्ग मानना यह न्याय रूप कैसे हो सकता है ? वस्त्र या उपधि में ऐसी कौन सी ताकत है जो कि सम्यक् दर्शन, सम्यक् चान और सम्यक् चारित्र होने पर भी मोक्ष को रोके ? दिगम्बर--जनाब ! वस्त्र केवल ज्ञान को रोकता है।
जैन-महानुभाव ! यह श्रापको सुझ अर्वाचीन दिगम्बर पंडितों की ही कृपा का फल है । परन्तु दिमाग से जरा सा तो सोचिये कि यह किस हद तक सत्य है । एक मामूली शान भी वस्त्र पहिनने से न रुकता और न दब सकता है। तो केवल शान जो कि अघाति चार कर्मों के द्वारा भी नहीं दब सकता है । कैसे दब जायगा उस लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान को सिर्फ देह से ही सम्बन्धित वस्त्र दबा देवे या भगा देवें यह तो दिगम्बरत्व के अाग्रही को ही विश्वास हो सकता है।
दिगम्बर "शायटायनाचार्य" भी साफ फरमाते हैं कि-वस्त्रा द् न मुक्तिविरहो भवतीति इस दिगम्बर मान्यतानुसार पाण्डवों को गले में लोहा होने पर भी केवल ज्ञान की प्राप्ति व उपस्थिति मानी जाती है, फिर सवस्त्र दशा में केवल शान का प्रभाव क्यों माना जाय ?
कंवलज्ञान सिंहासन स्वर्णकमल इत्यादि विभूतियाँ से या देह गुणों से दब जाता नहीं है, मगर वस्त्र से दब जाता है। यह कितनी बुद्धि शून्य कल्पना है ?
(समय प्रा० गा• ३३, १५) सारांश-केवल ज्ञान ऐसी पौद्गलकि वस्तु नहीं है कि जो वस्त्र से रुक जाय !
दिगम्बर--उपधि के लिये हमारे शास्त्र का पाठ दीजिये जैन--उपनि: के बारे में दिगम्बरीय प्रमाण निम्न हैं।
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