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[ ३९ ] ५-उपधि, ज्ञानोपधि, संयमोपधि, तप उपधि इत्यादि
(भा. वकटेर कृत मूलाचार परि० १ गा• १४, परि० ३ गा ७-11 परि० ४ गा० १३८ परि० १० गा० २५,४५) ।
पिंडोवधि सेज्झायो, अविसोधिय जोय भंजदे समणो मूल ठाणं पत्तो, भुवणे सु हवे समणपोल्लो ॥ २५ ॥ फासुगदाणं फासुगमुवधि, तह दो वि अत्त सोधीए
देदि जो य गिणहदि, दोएहपि महप्फलं होइ ।। ४५ ॥ पिंड, उपधि, शय्या, संस्तारक फासुक उपधि वगैरह ।
( मूलाचार परिच्छेद ।.) ६-सम्यक्त्व ज्ञान शीलानि तपश्चेतीह सिद्धये । तेषा मुपग्रहार्थाय स्मृतं चीवर धारणम्
(वाचक श्री उमा स्वातिजी ) ७-८"अविविक्त परिग्रहाः" "उपकरणाभिष्वक्त चित्तो विविध विचित्र परिग्रह युक्तः बहु विशेष युक्तोपकरणा कांची तत्संस्कार प्रतिकार सेवी"
ये सब भिन्न २ निर्गन्थों के लक्षण हैं, उप करण के कारण ही निर्गन्थों में जो जो भेद हैं वे यहां बताये गये हैं इसीसे सप्रमाण है कि पांचो निर्ग्रन्थ वस्त्रादि उपकरण को रखते हैं।
द्रव्य लिगं प्रतीत्य भाज्या:
श्रमणों का द्रव्य लिंग माने वस्त्रादि वे भिन्न २ प्रकार के होते हैं और इस द्रव्यलिंग के जरिये निर्गन्थ भी अनेक प्रकार के हैं (पूज्यवाद कृत सर्वार्थ सिद्धि और भा.......कृत राजवार्तिक पृ० ३५४ १५९)
"कम्बलादिकं गृहत्विा न प्रक्षालंते" इत्यादि (दि० आ० श्रुत सागर कृत तत्वार्थ अ० ९ सू० ४ की टीका, चर्चा सागर समीक्षा प्रस्तावना)
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