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[ ५१ जाय ? इस उपस्थिति में देह प्रमाण लम्या डंडा ही उपकारक हैं। मुनि को बिना गहराई देखे नदी में उतरना मना है । इसके अलावा डांडा की स्थापना होती है, विहार में मुनि का काल धर्म हो जाय तो दूसरे मुनि उसको डंडा की जोली में उठा सकते हैं, बीमार मुनि भी डंडा के जरिये उठाया जाता है, स्थवीर मुनि डंडा के सहारे बिहार कर सकता है। * डंडा रखना भी आवश्यक है।
सारांश-मुनि चारित्र पालन के लिय वस्त्र, पात्र वगैरह उपकरण को रखते हैं, वैसे ही डंडा को रखते हैं ।
इसके अलावा और भी जो २ उपधि हैं वे सब किसी न किसी अंश में लाभकारी ही है। उपधि के द्वारा विशेष शुद्ध चारित्र पालन होता है।
दिगम्बर-विचार पूर्वक अगर देखा जाय तो यह सब बातें सत्य सी प्रतीत होती है। फिर भी दिगम्बर आचार्य नग्नता पर ही क्यों जोर देते हैं ?
जेन-नग्नता व पीछी श्रादि किसी भी द्रव्य लिंग पर एकान्त जोर देना वह परमार्थः नुकसान कारक ही है । और उनसे ही मोक्ष प्राप्ति मानना वह एकान्तिक कल्पना है सरासरी गलती है । इस सत्य को दिगम्बर आचार्य इस रूप में स्पष्ट करते हैं।
भावो हि पढमालगं, ण दव्वलिगं च जाण परमत्थं ॥ भावो कारण भूदो, गुण दोसाणं जिणा बिति ॥ २ ॥ गुण दोष का कारण भाव लिंग ही है, उससे द्रव्यलिंग का कोई सम्बन्ध नहीं है।
8 स्थानक मार्गी मुनि रंग वाली चमकदार और मोहक छड़ी रखते हैं। वह अनुचित है क्योंकि ऐसी ही लकड़ी रखनी चाहिये जो उपरोक्त कार्य में सहायक हो । जैन मुनि के डंडे पर ५ समिति वगैरह का निशान रहता है।
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