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[ ५ ]
रक्खें या पात्र, वह एक सी बात है । एक नग्न के लिये उपयुक्त हैं, दूसरा वस्त्र वालों के लिये ।
जैन---संभवतः कमण्डल रखना यह सन्यासियों का अनु करण है। प्रति लेखना की अपेक्षा से तो पात्र रखना जैन मुनि के लिये अधिक उपयुक्त है इसके अलावा दिगम्बर शास्त्रों में पात्र के लिये तिरोहित विधान भी मिलता है। जैसे
Bodegas
१ - तब बाल बुड्ढ सुय आयराहं 'दुब्बल तरपुरोह दुहांयरांह । श्रसह पय पच्छाय जोगु जासुं, दहविणु विज्ञावश्वंगु तासु ॥ किरंतो गिदियो मुदुि । हुश्रो दिमितु नाम जियिंदु ॥
( घत्ताबंध- हरिवंश पुराण )
I
माने तपस्वी बाल बृद्ध श्रुतधर श्राचार्य दुर्बल और रोगी वगैरह की आहार पानी और औषधि आदि से वैयावृत्य करने का विधान है । जो पात्र रखने से ही साध्य है । सर्वथा शक्ति रहित और बीमार साधु की वैयावृत्य करने की शास्त्रों की आशा है । वह उठ भी नहीं सकता है जब दूसरा मुनि पात्र द्वारा शुद्ध आहार पानी लाकर उसकी वैयावृत्य करे तब वह श्राहार पानी ले सकता है, इस हालत में वैयावृत्य की सफलता है एवं पात्र रखना ही अनिवार्य है ।
२- मुनि श्राहार पानी से वैयावृत्य करे । ( पूजापाठ )
माने - मुनि पात्र के जरिये लाये हुए श्राहार पानी से श्राचार्य की भक्ति करे साधर्मिक ( मुनि) की भक्ति करे ।
३ - रात्रौ ग्लानेन भूक्ते स्यादेकस्मिं श्च चतुर्विधे । उपवासः प्रदातव्यः षष्ठमेव यथा क्रमम् ॥ ३३ ॥ afar - रात्रौ निशि । ग्लानेन व्याधि विशेष परिश्रम विविधोपवासादि परिपीडितेन सता कर्मोदय वशात् प्राणसंकड़े। भुक्तेऽ
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