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दिगम्बर- -मुनि को उपधि रखना चाहिये, मगर उसमें ऊनी रजोहरण और कमली नहीं रखना चाहिये ? क्योंकि ऊन अपवित्र वस्तु है यदि रजोहरण रखना अनिवार्य है तो मोर पीछ, Sitare, as पीछ या और कोई पीछ रखनी चाहिये ? क्योंकि ये पवित्र हैं ।
जैन --मडी केश नख पीछे ये सब एक से हैं, इनमें पवित्रता और पवित्रता का भेद कैसे माना जाय ?
दिगम्बर --पीछे, कुदरतन मिलती हैं इनके पान में मो आदि की हिंसा नहीं होती है अतः पछि पवित्र हैं । ऊन कतर के ली जाती है इसके पाने में भेड़ वगैरह की हिंसा होती है या वह मरे हुए भेड़ की मीलती है अतः ऊन अपवित्र है ।
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जैनमहानुभाव ! पीछे खींचने से मोर को बड़ा कष्ट होता है वह मर भी जाता है, पछि मुश्किल से आधाकर्मीक आदि दोष युक्त और मरे मोर के भी मिलते हैं, यह है आपकी पवित्र वस्तु | और जिस वस्तु के पाने में न भेड़ की हिंसा है न कछु है न श्रधाकर्मी पाप है और ऋतु आदि की अपेक्षा से जिसका काटना अनिवार्य एवं उपकार रूप माना जाता है, वह वस्तु है अपवित्र !
इस प्रकार मनमानी कल्पना से क्या कोई वस्तु पवित्र या अपवित्र बन सकती है !
यहाँ वस्तु स्थिति यही है कि दिगम्बर विद्वानों ने श्वेताम्बर मुनिभेष की निन्दा करने के लिये ऊनको अपवित्र लिख दिया है वास्तव मैं ऊन अपवित्र नहीं है लौकिक व्यवहारों में भी ऊनी सूती कपड़े की बनिस्पत अधिक पवित्र मानी जाती है ।
दिगम्बर – जब मुनि वस्त्र रख सकते हैं तो उनको पात्र खाने में किसी प्रकार का विरोध नहीं होना चाहिये, कमण्डल
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