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प्रतिलिष्य च भ्रियते मयूरपिच्छस्याऽसन्निधाने "मृदुवस्त्रेण" कदाचित्तथा कियते निक्षेपणा नाम्नी पंचमी समीति भवति ॥ ( चारित्र प्राभृत गा० ३६ श्रुतसागरी टीका )
१४ - मुनि चारित्रो पकरण पीछी के बिना नहीं चल सकता है। ( चारित्रसार, छेदपींडगा० ८०, चर्चासागर चर्चा ०७, आ० कुन्दकुन्द चरित्र )
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१५ - तयोरुपकरणा सक्ति संभवात् श्रार्तध्यानं कदाचित्कं संभवति, आर्त ध्यानेन लेश्यादित्रयं भवतीति ।
पांचो निर्गन्ध उपकरण वाले होते हैं उनमें से बकुश और प्रति सेवना कुशील को कभी आसक्ति भी होती है जब उनको आर्त ध्यान होता है तब शुरू की तीन लेश्या ये भी होती हैं ।
( चारित्र सार, विद्वज्जन बोधक पृ० १७९ )
१६ - मोक्षाय धर्मसिध्यर्थं शरीरं धार्यते यथा । शरीर धारणार्थं च भैक्षग्रहण मिष्यते ॥ १ ॥
तथैव ग्रहार्थाय पात्र चीवरमीष्यते । जिनै रूपग्रहः साधो रिष्यते न परिग्रहः ॥ २ ॥
माने मोक्ष और धर्म की साधना में शरीर भीक्षा पात्र वस्त्र वगैरह उपकारक साधन हैं ये परिग्रह नहीं हैं किन्तु उपग्रह 1
( वा० अश्वसेन कृत "
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१७ - वस्त्र पात्राश्रयादिन्य- पराण्यपि यथोचितम् दातव्यानि विधानेन रत्नत्रितयहेतवे ॥ ( आ० अमितगति ) १० - शय्या सनोपधानानि, शास्त्रोपकरणानि च पूर्व सम्यक समालोच्य प्रतिलिख्य पुनः पुनः १२ गृहूणतोऽस्य प्रयत्नेन, क्षिपतो वा धरातले भवत्य विकला साधो -रादान समिति स्फुटम् १३ शय्या, आसन, उपधान, शास्त्र उपकरण वगैरा