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[ २७ ] तदा ते मुनयो धीराः शुक्ल ध्यानेन संस्थिताः हत्वा कर्माणि निःशेष प्राप्ताः सिद्धिं जगद्धिताम् ॥ ४२ ॥ (अ • नेमिदच कृत भाराधना कथा कोश भा० ३ कथा ७३ नंद वंशोच्छेदक चाणक्य की कथा श्लो ४२ पृ० ३१३) ___ पर उसने (चाणक्य ने ) उसे बड़ी सहन शीलता के साथ सह लिया और अन्त में अपनी शुक्ल ध्यान रूपी आत्म शक्ति से कर्मों का नाश कर सिद्ध गति लाभ की ४ + चाणक्य प्रादि निर्मल चारित्र के धारक थे सब मुनि अब सिध्धि गति में ही सदा रहेंगे।
(५० उदयलाल काशलीबाल कृत, आराधना कथाकोश का हिन्दीभाषातर पृ० ४६ से ५३) ___-शान्ति देवी ने भी आत्म समाधि प्राप्त की, कारण ? दिगम्बरता आदि
(श्रवण बेल्गोल के शिला लेख नं.....) १०-नित्यस्नानं गृहस्थस्य, देवार्चन परिग्रहे। यतेस्तु दुर्जनस्पर्शात्, स्नानमन्यद् विगल्तिं ॥ १ ॥
तत्र यतेः रजस्खलास्पर्श चण्डालस्पर्श शुनक गर्दभ नापित योग कपालस्पर्श वमने विष्टोपरि पाद पतने शरीरोपरि काक विएमोचने इत्यादि स्नानोत्पत्तौ सत्यां दंडवद् उपविश्यते, श्रावकादिक श्छा. त्रादिको वा जलं नामयति, सर्वांगं प्रक्षालनं क्रियते, स्वयं हस्तमर्दनेन अंगमलं न दूरी क्रियते । स्नाने संजाते सति उपवासो गृह्यते, पंच नमस्कार शतमष्टोतरं कायोत्सर्गेण तप्यते एवं शुद्धिर्भवति ।
माने-दिगम्बर मुनि को जल स्नान जा है, सीर्फ वस्त्र वेजा है (मा० कुन्द कुम्द कृत मोक्ष प्राभूत गा० ९८ की शु तसागरी टीका ३०५) उपरोक्त सब बाते दिगम्बरीय अपरिग्रहता को प्राभारी है।
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