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[ २६ ] माने दिगम्बर मुनि शास्त्र और संघ के लिये रुपये जोड सकते हैं
(सूत्र प्राभृत गा० १८ की श्रुत सागरी टीका) (दि० आ० इन्द्र नन्दी कृत नीति सार विक्रम की १५ वी शताब्दी) . ३ दिगम्बर मुनि...... ...............
....... मोरैना पधारे, एक अच्छे कमरे में ठहरे थे, जाड़ा जोरों से पड़ रहा था भक्तों ने कमरे में घास का ढेर लगा दिया मुनिजी रात को उसके ठीक बीच में सो गये भक्तों ने चारों ओर अंगीठी जला रक्खी । कम नसीबी से आग की एक चिनगारी घास में जा लगी और मुनि जी भुंज गये।
४-वि० सं० १६६६- में भी आरा में ऊपरसी ही परिस्थिति में ३ दिगम्बर मुनि अग्नि शरण हुए है।
५-आश्चर्य की बात है कि दिगम्बर मुनि न वस्त्र रक्खें न खंगोटा रक्खें न गांठ रक्स्त्रे पर लाखों रुपये जमा कर सकते हैं।
नमुना-करीय २ साल पेस्तर की घटना है कि दिगम्बर मुनि जय सागर जी हैदराबाद दक्षिण में पधारे तब उनके पास लाखों रुपये जमा थे इनकी खातिर करने के लिये दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ संघ अम्वाला ने एक अपने शास्त्री जी को संभवतः प्रो० धर्मचन्द जी B. S: C. को भेजा था।
६-इसके अलावा और भी दिगम्बरीय अपरि ग्रहता के नमूने जैन जगत और सत्य, संदेश में प्रकट हो चुके हैं।
७-मूलाचार में भी गुरु द्रव्य और साधर्मिक द्रव्य का जिक है।
-यद्यपि यहाँ पाँच वे बारे में कोई मोक्ष नहीं पाता है, परन्तु दिगम्बर बिद्वान् पाँचवे पारे में भी दिगम्बर को नग्नता के कारण ही मोक्षगमन मानते हैं जैसा कि
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