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इनमें दूषण माना गया है अतः मुनियों के लिये उपधि रखने की नहीं वल्कि उसमें मूर्च्छा रखने की मना है, जो बालग्ग० वगैरह गाथाओं से स्पष्ट है I
दिगम्बर मुनि भी मोर पीच्छ वगैरह उपधि को रखते हैं ।
दिगम्बर-- दिगम्बर मुनिओ के लिये "मोर पीच्छ" यह बाह्यलिंग है, "उपधि" है, एवं संयम का उपकरण है । इसके बिना वे कदम भी नहीं उठा सकते हैं ।
१- मोर पीच्छ रखने में ५ गुण है ।
( पं० चंपालालजी कृत चर्चा सांगर चर्चा २१० )
२- सप्तपादेषु निष्पिच्छः कायोत्सर्गात् विशुध्याति || गव्पूति गमने शुद्धिमुपवासं समश्नुते ||
( चारित्र सर, तथा चर्चा सागर चर्चा ७
३ - मुनि बिना पीच्छ ७ कदम चले तो कायोत्सर्ग रूप प्रायश्चित करें ।
( आ० इन्द्र नदी कृत छे पिंडम् गा० ८० )
४ - पीछी हाथ से गीरपड़ी और पवन का वेग अत्यंत लगा । तब स्वामी ( ० कुन्द कुन्द ने ) कही, हमारा गमन नहीं, क्योंकि मुनिराज का बाना विना मुनिराज पीछाणा नहीं
जाय ।
(एलक वनालालजी दि० जैन सरस्वति भूवन बोम्बे का गुटका में आ० कुन्द कुन्द का जीवन चरित्र, सूर्य प्रकाश इको० १५२ की फूट नोट पृ० ४१ से ४७) इसके अलावा दिगम्बर साधुओं को कमण्डल, पुस्तक, कलम, कागज, रूमाल, पट्टी वगैरह उपाधि रखना भी अनिवार्य है । श्राज दिगम्बर मुनि यज्ञोपवीत देते हैं चटाई व पट्टा पर बैठते हैं बडे २ महलों में ठहरते हैं घास के ढेर पर सोते हैं इनकी भक्ति के लिये साथ में मोटर रक्खी जाती है यह सब मूच्छां न होने के कारण
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