________________
पृष्ठ
५३
५३३
निर्धन कौन ?
विषय-सूची पत्रांक
पृष्ठ पत्रांक आनन्द भावककी कथा
५२९
सब धोका तात्पर्य आत्माको पहिचानना ५५४ सास्वादनसमीकत
जीवको किस तरह बरतना चाहिये एकेन्द्रिय आदिकी माथापच्चीसे जीवका
तीन प्रकारके जीव कल्याण नहीं
समकित एकदेश केवलज्ञान है ५५६ सबसे मुख्य विन स्वच्छंद
५३२ समकितदृष्टि ही केवलशानी है सब दर्शनोंकी एकता
५३२
सचे झूठेकी परीक्षा करनेका दृष्टांत ५५७ उदयकर्म किसे कहते हैं
तप वगैरह करना महाभारत नहीं ५५८ मोहगर्मित और दुःखगर्भित वैराग्य
पुरुषार्थकी मुख्यता दो घडीमें केवलज्ञान ५३४ सत्पुरुषकी परीक्षा
५६० आत्मबल बढ़नेसे मिथ्यात्वकी हानि ५३४ इस कालमें मोक्ष न होनेकी बातको सुनना वेद-पुराणकर्ताओं के लिये भारी वचन ५३५
भी नहीं केशीस्वामीका परदेशी राजाको बोध ५३५ समवसरणसे भगवान्की पहिचान नहीं होती ५६२ निर्जरा किसे कहते हैं
अबसे नौवें समयमें केवलशान
५६२ लोगोंमें पुजनेके लिये शास्त्र नहीं रचे गये ५३७ समकिर्ताको केवलशानकी इच्छा नहीं ५६३ साधुपना कब कहा जायगा
५६३ इन्द्रियोंके वश करनेके लिये ही उपवास
स्वयं क्रोध करनेसे ही क्रोध होता है ५६४ करनेकी आशा
५३०
दो घदी पुरुषार्थसे केवलज्ञानकी प्राप्ति ५६५ बीजज्ञान कब प्रगट होता है ५३८ आत्मार्थ ही सच्चा नय है
५६६ आत्मा एक है या अनेक
५३९ समकितदृष्टिकी पुस्तकें
५६७ मुक्त होनेके बाद क्या जीव एकाकार
राग द्वेषके नाशसे मुक्ति
५६८ हो जाता है
सत्पुरुष आठमकी तकरार
अधमाधम पुरुषके लक्षण मतरहित ही हितकारी है
श्रावक किसे कहते हैं हीन पुरुषार्थकी बातें
सन्मार्ग एक है पंचमकालके गुरु
बारेमें कल्याण नहीं
५७२ एक मुनिका दृष्टांत
जैनका लक्षण सरागसंयम आदिकी परिभाषा
सचाई विना सब साधनोंकी निरर्थकता ५७४ रास्ते चलते हुए ज्ञानकी प्राप्ति
सम्यक्त्व और मिथ्यात्व
५७५ माया किस तरह भुला देती है
अनुभव प्रगट दीपक है
६४४ मतिज्ञान और मनःपर्यवशान पyषण तिथियोंकी भ्रांति
६४५ मूलमार्गरहस्य (कविता) ५७७-८ शानके प्रकार
५४६ | ६४६ 'दासबोध'
५७८-९ तिलक मुँहपत्ती वगैरहमें कल्याण नहीं ५४७
६४७ भक्षाभक्षविचार (गांधीजीको) ५७९-८० सम्यक्त्व किसे प्रगट होता है *६४८ जीवकी व्यापकता आदि
५८१ मिथ्यात्वमोहनीय आदिकी परिभाषा
*६४९ आत्मसाधन
५८१ भ्रांति दूर हो तो सम्यक्त्व हो जाय ५४९ *६५० वचनसंयम
५८१ कल्याणका मार्ग एक है
*६५१ अनुभव
५८२ मोक्ष किसे कहते हैं
*६५२ ध्यान
५८२ केवलशान कब कहा जाता है *६५३ चिदानंदघनका ध्यान
५८२ विचार और उपयोग ५५२ *६५४ सो
५८३ पुस्तकको मोक्ष
५५३ | *६५५ आत्माका असंख्यात प्रदेशत्व ५८३
५७१
४८
५५.