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प्रस्तावना
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टीका नाम
परिमाण
फर्ता
रचनाकाल
अन्तर्भाव्य गा० गा० १० । अज्ञात । अज्ञात
भाष्य | गाथा १९१ । समयदेव सूरि वि.११-१२वीं श| चूंणि पत्र १३२ । अज्ञात अज्ञात चणि । इलो० २३०० । चन्द्रर्पि महत्तर भनु० ७वीं श०
. ३७८० । मलयगिरि सूरि वि १२-१३वीं श भाष्यवृत्ति , ४१५० मेनुग सूरि वि.स १४४९ टिन , ५७४ रामदेव वि.१२ वी श अवचूरि देखो नव्य कर्म गुणरत्न सूरि वि १५वीं श..
। प्रन्यकी अब.
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इनमेंमे १ अन्तर्भाष्य गाथा, २ चन्द्रपिं महत्तरकी चूर्णि और ३ मलयगिरि सूरिकी वृत्ति इन तीनका परिचय कराया जाता है ।
अन्तर्भाप्य गाथाएँ -सप्ततिका अन्तर्भाप्य गाधाएँ कुल दस हैं। ये विविध विपयोंका खुलासा करने के लिये रची गई हैं। इनकी रचना किसने की इमका निश्चय करना कठिन है । सम्भव है प्रस्तुत सप्ततिकाके संकलयिताने ही इनकी रचना की हो। खास खास प्रकरण पर कपायप्राभृनमें भी भाष्यगाथाएँ पाई जाती हैं और उनके रचयिता स्वय कपायप्राभृतकार हैं। वहुत संभव है इसी पद्धतिका यहाँ भी अनुसरण किया गया
(१) इसका उल्लेख जैन प्रन्थावलिमें मुद्रित बृहटिप्पनिकाके आधारसे दिया है।
(२) इसका परिमाण २३०० श्लोक अधिक ज्ञात होता है। यह मुक्कावाई ज्ञानमन्दिर डभोईसे प्रकाशित हो चुकी है।