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श्री संवेगरंगशाला के समूह से श्रेष्ठ सद्गुरु के चरणकमल अथवा चारित्र के प्रभाव से भव्यात्माओं को हितकारक कुछ अल्पमात्रा में कहता हूँ।
संसार अटवी में धर्म की दुर्लभता :-अंकुश बिना यमराज रूपी सिंह हिरन तुल्य संसारी जीवों के समूह को जहाँ पर हमेशा मारता है, विलासी दुर्दान्त इन्द्रिय रूपी शिकारी जीवों से वह अति भयंकर है, पराक्रमी कषायों का विलास जहाँ पर फैला हुआ है, कामरूपी दावानल से जो भयानक है, फैली हुई दुर्वासना रूपी पर्वत की नदियों के पुर के समान दुर्गम्य है और तीव्र दुःख रूप वृक्ष सर्वत्र फैले हुए हैं, ऐसी विकट अटवी रूप गहन इस संसार में लम्बे मार्ग की मुसाफिरी करते मुसाफर के समान मुसाफिरी करते जीवों को गहरे समुद्र में मोती की प्राप्ति करने के समान, मनुष्य जीवन गाड़ी के जुआ
और समीला के दृष्टान्त सदृश अति दुर्लभ है, उसे अति मुश्किल से प्राप्त करने पर भी उर्वरा भूमि में उत्तम अनाज प्राप्ति, अथवा मरुभूमि में कल्पवृक्ष की प्राप्ति के समान, मनुष्य जीवन में भी अच्छा कुल, उत्तम जाति, पंचेन्द्रिय की सम्पूर्णता, पटुता, लम्बी आयुष्य आदि धर्म सामग्री, उत्तरोत्तर विशेष रूप प्राप्त करना दुर्लभ है, उसे भी प्राप्त कर ले फिर भी सर्वज्ञ परमात्मा कथित कलंक रहित धर्म अति दुर्लभ है क्योंकि वहाँ पर भी भावि में कल्याण करने वाला हो संसार अल्प शेष रहा हो, अति दुर्जय मिथ्यात्व मोहनीय कर्म निर्बल बने हो, तब जीवात्मा को सद्गुरु के उपदेश से अथवा अपने आप नैसर्गिक राग-द्वेष रूपी कर्म की ग्रन्थी-गाँठ का भेदन होने से धर्म की प्राप्ति होती है। वह धर्म कैसा है उसे कहते हैं :
बड़े पर्वत की अति तेज रफ्तार वाली महानदी के बहाव में डूबते जीव को नदी के किनारे का उत्कृष्ट आधार मिल जाए, भिखारी को निधान मिल जाए, विविध रोगों से दुःखी रोगी को उत्तम वैद्य मिल जाए, और कुएँ में गिरे हुए को बाहर निकालने के लिए किसी के हाथ का मजबूत सहारा मिल जाए वैसे अत्यन्त पुण्य के उत्कृष्टता द्वारा प्राप्त हो सके ऐसे चिन्तामणो और कल्पवृक्ष को भी जीतने वाला महान् उपकारी सर्वज्ञ कथित निष्कलंक धर्म को जीव प्राप्त करता है, इसलिए ऐसे परमधर्म को प्राप्त कर आत्मा को अपने हित के लिए ही खोज करनी चाहिए। वह हित ऐसा होना चाहिए कि जो नियम कोई भी अहित से, कहीं पर भी कभी भी बाधित न हो।
ऊपर कहे अनुसार अनुपम-सर्व श्रेष्ठ, कभी भी नाश नहीं होने वाला और दुःख रहित, शुद्ध श्रेष्ठहित सुख मोक्ष में मिलता है । वह मोक्ष कर्मों के