Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 53
________________ संखेवेणं पि हु वीय-रायपडिमाउ वंदिउं सगिहे । गच्छेज्ज साहुवसहिं, करेज्ज आवस्सयाइ तर्हि एवं हि कीरमाणे, जिणाणमाऽऽणा कया हवइ सम्मं । गुरुपरतंतत्तं सुत्त - अत्थसविसेसनाणं च • जहठियसामायारी - कुसलत्तम सुद्धबुद्धिविगमो य । गुरुसक्खिओ य धम्मो, संपुण्णविही य होइ कया साहूण असइ वसही-संकिण्णताकारणेहिं वा । गुरुणा समणुण्णाओ, पोसहसालाईसु वि कुज्जा सज्झायं काऊणं, खणं अपुव्वं पढेज्ज सुत्तं पि । तत्तो य विणिक्खमिउं, होऊण य दव्वभावसुई पढमं नियगेहे च्चिय, निच्चं चिइवंदणं समयविहिणा । विभवाऽणुसारिपूया, पुव्वमऽणुट्टेज्ज गोसम्मि तयतरं तु जइ ता, तहाविहं तस्स नऽत्थि गिहकिच्चं । ता तव्वेलं चिय कय- सरीरसुद्धी सुनेवत्थो पुप्फाइपवरपूयंग-वग्गहत्थेण परियणेण समं । वच्चेज्ज जिणिदगि, पंचविहाभिगमपुव्वं च तत्थ पविसित्तु विहिणा, उदारपूयापुरस्सरं सम्मं । चिइवंदणं करेज्जा, पणिहाणं तं सुसंविग्गो अह कारणेण केणऽवि, जिणवरभवणम्मि अहव नियगेहे । पोसहसालाए वा, हवेज्ज सामाइयाऽऽइ कयं तो साहुसमीवम्मि, गंतुं किइकम्मपुव्वगं सम्मं । कुज्जा पच्चक्खाणं, खणं च जिणवयणसवणं च भत्ती तहा काउं, बालगिलाणाइगोयरं पुच्छं । तक्किच्चं च समग्गं, संपाडेज्जा जहाजोगं अणइक्कमणेण कुलक्कमस्स, , लोगाऽववायविरहेण । तत्तो वित्तिनिमित्तं, ववहारमऽणिदियं कुज्जा भोयणकाले य गिहं, आगम्म चउव्विहाए पूयाए। पुप्फाऽऽमिसवत्थेहिं, थोत्तेर्हि य भावसारेहिं संपूइऊण विहिणा, जिणबिंबं तयणु साहुमूलम्मि । गंतूण भणइ एवं, अणुग्गहं कुणह मे भंते ! असणाssव्वाणं, गहणेण भवाऽवडे निवडियस्स । जयजीववच्छलेहिं, दिज्जउ हत्थावलंबो मे संपट्ठियसंघाडग-पट्ठिठिओ जाइ जाव नियदारं । एत्थंतरमऽण्णे वि हु, गिहट्टिया अभिमुहा इंति वंदतिय तो सड्ढो वि, जायसड्ढो पमज्जिउं पाए। दाऊण आसणं कुणइ, संविभागं जहाविहिणा वंदणपुव्वं अणुगच्छिऊण, तत्तो गिहे समागम्म । भुंजाविय जणयाई, चिंतिय गोणाई पेसाई देसंऽतराऽऽगयाणं, चिंतं काऊण सावगाणं पि । पडियग्गिउं गिलाणे, ताहे उचियप्पएसम्मि उचियाऽऽसणोवविट्ठो, पच्चक्खाणं च सरिय जहगहियं । कयपंचनमोक्कारो, सुसावगो तयणु भुंजेज्जा भोत्तूण तओ विहिणा, पुरओ घरचेइयाण ठाऊण । तव्वंदणं करित्ता, पच्चक्खइ दिवसचरिमाऽऽई खणमेत्तं सज्झायं, अपुव्वपढणं च किंचि काऊणं । पुणरवि वित्तिनिमित्तं, ववहारमऽर्णिदियं कुज्जा संझासमयम्मि पुणो, पूयं काऊण जिणवरिंदाणं । सारथुइथोत्तपुव्वं, सगिहम्मि वि वंदणं कुज्जा तो जिणभवणे गंतुं, वंदेज्जा पूइऊण जिणबिंबे । सामाइयपडिक्कमणाऽऽइ, गोसभणियं पिव करेज्जा साहुसमी अकए य, तम्मि गच्छेज्ज साहुवसहीए। वंदणमालोयणयं खामणयं पि य तर्हि काउं गिण्हइ पच्चक्खाणं, खणमिह सवणं च धम्मसत्थस्स । विस्सामणाऽऽई विहिणा, भत्तीए करेज्ज साहूणं संदिद्धपए पुच्छिय, सावगवग्गस्स काउमुचियं च । गिहगमणं विहिसुयणं, विहेज्ज गुरुदेवसरणं च उक्कोसबंभयारी, परिमाणकडो व होज्ज नियमेण । कंदप्पाइविउत्तो, पइरिक्कम्मि य तुयट्टेज्जा उद्दाममोहवसओ, पट्टिउं कहवि अहमकिच्चम्मि । उवसन्तमोहवेगो, चिन्तेज्जा भावसारमिमं मोहो दुहाण मूलं मूलं च विवज्जयस्स सव्वस्स । एयस्स वसं पत्ता, सत्ता मण्णंति हियम हियं जस्स वसेणं पि य कामिणीण, वयणाऽऽइयं असारं पि । चंदाईहुवमिज्जइ, धिरत्थु ही तस्स मोहस्स इत्थीकडेवराणं, सतत्ते-चिन्तं तओ तहा कुज्जा । जह मोहाऽरिजयाउ, संवेगरसो समुच्छलइ तहाहि I जं ताव कामिणीणं, मणोहरं हरिणलंच्छणच्छायं । वयणं तं पि हु मलगलिर-विवरसत्तयसमाउत्तं १. आमिसं = नैवेद्यम्, २. स्वतत्त्वचिन्ताम् = स्वरूपचिन्तनम्, ४५ ।। १५३० ॥ ॥। १५३१ ॥ ।। १५३२ ॥ ॥। १५३३ ॥ ।। १५३४ ।। ।। १५३५ ।। ।। १५३६ ।। ।। १५३७ ॥ ।। १५३८ ॥ ॥। १५३९ ॥ ।। १५४० ।। ॥ १५४१ ॥ ॥। १५४२ ।। ।। १५४३ ।। ॥। १५४४ ॥ ।। १५४५ ।। ॥। १५४६ ॥ ॥। १५४७ ॥ ।। १५४८ ।। ।। १५४९ ।। ।। १५५० ॥ ।। १५५१ ।। ।। १५५२ ।। ॥ १५५३ ॥ ॥। १५५४ ॥ ॥। १५५५ ।। ।। १५५६ ।। ।। १५५७ ॥ ।। १५५८ ।। ॥ १५५९ ॥ ॥। १५६० ॥ ॥ १५६१ ॥ ।। १५६२ ॥ ॥ १५६३ ॥

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