Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 202
________________ एवं च तेण धीरेण, एक्कसि पि हु कयाइ न हु भुत्तं । उप्पाडियं च नाणं, विहुणियनीसेसकम्मरयं सुरअसुरवाणमंतर-थुव्वंतमयंकनिम्मलगुणोहो । अकलियसुहप्पमाणं, कमेण पत्तो य निव्वाणं एयं णिसामिऊणं, सुट्ठ विगिटुं तवं करेंतो वि । मा तम्मयं करेज्जासि, खवग! थेवं पि सिवकामी छट्ठमयट्ठाणमिमं, निद्दिष्टुं लेसओ सदिटुंतं । एत्तो य लाभविसयं, सत्तमयं तं पसाहेमि खउवसमाउ लाभंतराय-नामस्स कम्मुणो लाभो । तस्सेव उदयओ पुण होइ अलाभो नराण तओ लाभे विलद्धिमंतो-ऽहमेव एवं न अत्तउक्करिसो। न विसाओ य अलाभे, विवेयवंतेण कायव्वो जो लाभवं इहभवे, भिक्खं पि भवंतरे न सो लभइ । कम्मवसा दिटुंतो, इहं मुणी ढंढणकुमारो ॥६८८६॥ ॥६८८७॥ ॥ ६८८८॥ ॥ ६८८९॥ ॥ ६८९०॥ ॥६८९१॥ ॥ ६८९२॥ तहाहि मगहाविसए नामेण, धण्णपूरो त्ति अस्थि वरगामो। किसिपरो पारासरनामो, तत्थ धणड्डो वसइ विप्पो ॥६८९३॥ कुणइ य जं जमुवायं, दव्वकए करिसणाऽऽइयं कि पि । लाभाय भवइ सो सो, तस्स चिरज्जियसुकयवसओ ॥६८९४ ।। विलसइ य पवरभूसण-दिव्वंऽसुयकुसुममणहरसरीरो । बंधूहि समं एयं, लच्छीए फलं ति मण्णंतो ॥ ६८९५॥ मगहाऽहिवनरवइणो, आएसा सो य गामपुरिसेहिं । करिसावेइ चरीओ, हलाण पंचहिं सएहिं सथा ॥ ६८९६ ॥ अह अण्णया नराहिव-चरीउ करिसित्तु उवरया एए। भोयणसमयम्मि छुहा-किलामिया करिसगा सेढिया ॥६८९७॥ वसहा य चंभमेक्केक्क-मऽप्पणो तेण दाविया छेत्ते । हत्थमऽणिच्छंता वि हु, बलाऽभियोगा अकरुणेण ॥६८९८॥ तप्पच्चइयं च दढं, निव्वत्तियमंऽतराइयं कम्मं । मरिऊण समुप्पण्णो, नेरइओ नरयपुढवीए ॥६८९९ ॥ तत्तो उव्वट्टित्ता, विचित्तभेयासु तिरियजोणीसु । देवेसु मणुस्सेसु य, संसरिओ कहवि सुकयवसा ॥ ६९०० ॥ जलनिहिसंगेण व पत्त-पुण्णलावण्णमणहरंगीहि । रामाहिं रायमाणे, विसिट्ठसोटुदेसम्मि ॥ ६९०१॥ धणधण्णसमिद्धाए, पच्चक्खं देवलोगभूयाए । पयइगुणरागिसद्धाण-सूरधम्मिट्ठलोयाए ॥६९०२॥ बारवईए पुरीए, मुसुमूरियकेसिकंसदप्पस्स। तिक्खंडभरहभूवइ-सिरमणिरुइरुइरचरणस्स ॥६९०३॥ जायवकुलनहयलदिणयरस्स, सिरिकण्हवासुदेवस्स। पुत्तत्तेणुववण्णो, नामेणं ढंढणकुमारो ॥६९०४॥ अहिगयकलाकलावो, कमेण सो तरुणभावमऽणुपत्तो । जुवईणं मज्झगओ, विलसइ दोगुंदुगसुरो व्व ॥ ६९०५॥ अह अण्णया कयाइ, पसमियसव्वंऽगिवग्गसंतावो। देहप्पहाहिं दिसि दिसि, कुवलयपयरंव विकिरतो ॥ ६९०६॥ अट्ठारससहसेहिं, सीलंगाणं व पवरसाहूणं । सहिओ सहिओ इव धम्म-गारिजूइयरवग्गस्स ॥६९०७॥ भयवं अद्धिनेमी, गामाऽऽईसुं कमेण विहरंतो । संपत्तो बारवई, समोसढो रेवउज्जाणे ॥६९०८॥ तो जिणपउत्तिविणिउत्त-माणवेहिं कयप्पणामेहि। आगमणेणं तित्थाऽ-हिवस्स वद्धाविओ कण्हो ॥६९०९॥ तेसिं च पारिओसिय-मुचियं दावाविऊण महुमहणो। जायववग्गेण समं, निक्खमिओ वंदिउं नेमि ॥ ६९१०॥ तो परमहरिसपगरिस-विष्फारियलोयणो जिणं नमिउं । गणहरपमुहे य मुणी, समुचियठाणे समासीणो ॥६९११॥ सुरमणुयतिरियसाहारणाए, वाणीए भुवणनाहेण । पारद्धा धम्मकहा, पडिबुद्धा पाणिणो बहवे ॥६९१२॥ अच्चंततहाविहकुसल-कम्मसंभारभाविकल्लाणो। पडिबुद्धो धम्मकहं, सुणिउं ढंढणकुमारो वि ॥६९१३ ॥ मुणियऽवयारं मित्तं, भयंगभीमं गिहं व विसयसुहं । उज्झित्ता सो धण्णो, पव्वइओ जयगुरुसयासे ॥६९१४ ॥ संसाराऽसारत्तं, भावेंतो सइ सुयं अहिज्जेइ । कुव्वंतो विविहतवं, विहरइ सव्वण्णुणा सद्धि ॥६९१५॥ विहरंतस्स य तं पुव्व-जम्मनिव्वत्तियं अणिट्ठफलं । समुदिण्णमंऽतराइय-कम्मं ढंढणकुमारस्स ॥ ६९१६॥ तो तद्दोसेणं जेण, साहुणा सह भमेइ सो भिक्खं । उवहणइ तस्स लद्धि पि, अहह ! भीमाई कम्माई ॥ ६९१७॥ एगम्मि अवसरम्मि, मुणीहिं तदऽलाभवइयरे सिटे । मूलाओ च्चिय सिट्ठो, तव्वुत्तंतो जिणिंदेण ॥६९१८॥ तं सोउंसो धीमं, अभिग्गहं गिण्हइ जिणसगासे । एत्तो परलद्धीए. भंजिस्समऽहं न कइया वि ॥ ६९१९॥ एवमऽविसण्णचित्तो, सुहडोव्व रणाऽवणि समल्लीणो। दुक्कम्मवेरिविहियं, दुक्खं थेवं पि अगणेतो ॥ ६९२०॥ निव्वाणविजयलच्छिं, उवलद्धं विहियविविहवावारो। उवभुत्ताऽमयवरभो-यणो व्व दिवसाइं वोलेइ ॥६९२१ ॥ १. सुढिया = श्रान्ताः, ૧૯૫

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