Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 239
________________ अण्णं च चउव्विहमिलिय-सयलसिरिसंघरंगमज्झम्मि। भीमभववाहिविहरो, अण्णत्तो ताणमऽलभंतो एसो महाऽणुभावो, वेज्जाण व अम्ह सरणमऽल्लीणो। ता अणुकंपेयव्वो, इय बुद्धीए सुहगुरूहिं एयाई तुज्झ सुंदर!, निवेसियाई अणुग्गहपरेहिं । ता होसु इमेसु दढो, होउं कुवियप्पविप्पजढो जह नाम सारगब्भो, खंभो भार गिहस्स वोढुमऽलं । एवं वएसु सुदढो, पोढो वोढुं सुधम्मधुरं सव्वंऽगेसुं पि दढो, गोणो जह होइ भरमऽलं वोढुं । एवं वएसु सुदढो, पोढो वोढुं सुधम्मधुरं सुदिढंगी निच्छिड्डा, भंडं वोढुं जहा अलं नावा । एवं वएसु वि दढो, निरईयारो य धम्मगुणे कुंभो वि जह दढंगो, अखंडछिड्डो अलं जलं धरिउं। एवं वएसु वि दढो, निरईयारो य धम्मगुणे तिण्णा तरंति तरिहिंति, एत्थ वित्थिण्णभवसमुद्दम्मि। एयाणं सब्भावे, सुदढत्ते निरइयारत्ते धण्णाणमेयलाभो, धण्णाणं चिय इमेसु सुदढत्तं । धण्णाणं चिय एएसु, निरइयारत्तणं परमं पंचमहव्वयरयणाई, ता तुमं पाविउं सुदुलहाई । मा उज्झेज्जसु एओ-वजीवणं मा करेज्जसु य इहरा तुमं पि उज्झिय-भोगवतीओ जहा तहा एत्थ । लद्धं जहण्णपयवि, अजसमऽसोक्खं च पाविहिसि तो होसु दढचित्तो, पंचमहव्वयधुराधरणधवलो। पालेज्ज इमाई सयं, अण्णेसि पि य पयासेज्ज पत्तो उत्तमपयविं, कित्तिं च सया वि होहिसि सुहीओ। धणनामसेट्ठिसुण्हाउ, रक्खिया रोहिणीउ जहा रायगिहे धणसेट्ठी, धणपालाऽऽई सुया उ चत्तारि । उज्झियभोगवतीरक्खिया य तह रोहिणी वहुया वयपरिणामे चिंता, गिहं समप्पेमि तासि पारिच्छा । भोयणसयणनिमंतण-भुत्ते तब्बंधुपच्चक्खं पत्तेयं अप्पिणणं, पालेज्जह मग्गिया य देज्जाह । इय भणिउमाऽऽयरेणं, पंचण्हं सालिकणयाणं पढमाए उज्झिया ते, बीयाए छोल्लिया य तइयाए । बंधण करंडिरक्खण, चरिमाए रोविया विहिणा कालेणं बहुएणं, भोयणपुव्वं तहेव जायणया । पढमा सरणविलक्खा, तह बीया तइय अप्पिणणं चरिमाए कुंचिगाओ, खित्ताओ तुम्ह वयणपालणया । सा एवं चिय इहरा, सत्तिविणासा न सम्मं ति तब्बंधूणऽभिहाणं, तुज्झे कल्लाणसाहगा मे त्ति । किं जुत्तमेत्थ मज्झं, ते आहु तुमं मुणेसि त्ति तत्तो य कज्जउज्झण-कोट्ठगभंडोरगिहसमप्पणया। जाहासंखमिमीणं, नियकज्जं साहुवाओ य जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह जाइजणो तहा समणसंघो। जह वहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाई जह सा उज्झियनामा, उज्झियसाली जहत्थअभिहाणा । पेसणगारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया तह भव्वो जो कोई, संघसमक्खं गुरूहि दिण्णाई । पडिवज्जिउं समुज्झइ, महव्वयाई महामोहा सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कारभायणं होइ । परलोए उ दुहत्तो, नाणाजोणीसु संचरइ जह वा सा भोगवई, जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा। पेसणविसेसकारि-त्तणेण पत्ता दुहं चेव तह जो महव्वयाई, उवभुंजइ जीविय त्ति पालेंतो। आहाराऽऽइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए सो एत्थ जहिच्छाए, पावइ आहारमाऽऽई लिंगि त्ति । विउसाण नाऽइपुज्जो, परलोगम्मि दुही चेव जह वा रक्खियवहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा। परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता तह जो जीवो सम्मं, पडिवज्जित्ता महव्वए पंच। पालेइ निरइयारे, पमायलेसं पि वज्जिंतो सो अप्पहिएक्करई, इहलोगम्मि वि विऊहिं पणयपओ। एगंतसुही जायइ, परम्मि मोक्खं पि पावेइ जह रोहिणी उ सुण्हा, रोवियसाली जहत्थनामा उ। वड्ढित्ता सालिकणे, पत्ता सव्वस्ससामित्तं तह जो भव्वो पाविय, वयाइं पालेइ अप्पणा सम्मं । अण्णेसि वि भव्वाणं, देइ अणेगेसि सुहहेडं सो इह संघपहाणो, जुगप्पहाणो त्ति लहइ संसदं । अप्पपरेसिं कल्लाण-कारओ गणहरपहु व्व तित्थस्स वुड्ढिकारी, अक्खेवणओ कुतित्थियाऽऽईणं । विउसनरसेवियकमो, कमेण सिद्धि पि पावेइ एवमऽणुसट्ठिदारे, सवित्थरत्थं मए समक्खायं । पंचमहव्वयरक्खा-नामं दसमं पडिदारं ॥८२१०॥ ॥८२११ ॥ ॥८२१२॥ ॥८२१३॥ ॥ ८२१४॥ ॥८२१५ ॥ ॥८२१६॥ ॥ ८२१७॥ ॥ ८२१८॥ ॥ ८२१९ ॥ ॥ ८२२० ॥ ॥८२२१ ॥ ॥८२२२ ॥ ॥ ८२२३ ॥ ॥८२२४ ॥ ॥८२२५ ॥ ॥८२२६॥ ।। ८२२७॥ ।। ८२२८॥ ।। ८२२९॥ ॥ ८२३०॥ ॥ ८२३१ ॥ ।। ८२३२॥ ॥८२३३॥ ॥८२३४॥ ॥ ८२३५ ॥ ॥ ८२३६॥ ॥ ८२३७॥ ॥ ८२३८॥ ॥ ८२३९॥ ॥ ८२४०॥ ॥८२४१॥ ॥८२४२॥ ॥ ८२४३॥ ॥८२४४॥ ॥८२४५॥ ૨૩૨

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