Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

View full book text
Previous | Next

Page 270
________________ जर १ सास २ कास ३ दाह ४ऽच्छि५. कुच्छि६ सिरसूल७ कोढ८ कंड्रह ९। अरिस १० दगोदर ११ कण्णच्छि १२ वेयणा १३ अजीर १४ अरुईहिं १५ अइउग्गभगंदर १६ दारुणेहिं, वाहीहि सोलसहि जुगवं । तव्वेयणपारद्धेण, तेण घोसावियं च पुरे एएसि रोगाणं, एक पि हु जो ममं पणासइ । दोगच्चविच्चुइकरं, तस्स बहु देमि दव्वमऽहं सोऊणेवं बहवे, चिगिच्छसज्जा समागया वेज्जा। पारंभंति तिगिच्छं, हत्थमऽणेगप्पगारेहि थोवो वि नो विसेसो, उप्पज्जइ तस्स तो परिस्संता। लज्जावसविच्छाया, जहागयं पडिगया वेज्जा नंदो पुण रोगाऽऽवेग-वेयणाविहुरिओ मरेऊण । नियपोक्खरिणीए सण्णि-द(रत्तेण उववण्णो धण्णो णंदो सेट्ठी, जेणेसा कारिय त्ति जणवायं । निसुणंतेण य तेणं, नियजाई सुमरिया सहसा तो संवेगोवगतो, मिच्छत्तफलं इमं ति मण्णंतो। देसविरइप्पहाणं, पुणो वि अणुसरइ जिणधम्म गेण्हइ य इममऽभिग्गह-मेत्तो छटुं सया वि काहऽमहं । पारणगे भुंजिस्सं, फासुगमुव्वलणिगाइ परं एवं विणिच्छिऊणं, स महप्पा अच्छिउं समारद्धो। अवरम्मि अवसरम्मि, समोसढो तत्थ वीरजिणो तो पोक्खरिणीए जणो, मज्जंतो तीए एवमऽण्णोण्णं । जंपइ चलह लहुँ चिय, वंदामो जेण जिणवीरं गुणसिलए उज्जाणे, समोसढं तियसविहियपयपूयं । सोउंच (रो इय, संजायाऽतुच्छभत्तिभरो जिणनाहवंदणहूँ, उक्किट्ठाए गईए निययाए । गुणसिलउज्जाणं पइ, झडत्ति संपट्ठियो गंतुं अह गुडियकरिघडाऽऽरूढ-सुहडदढघडियनिबिडपरिवेढो । तरलतरतुरयपहकर-खरखुरखंडियधरावट्ठो सामंतमंतिसत्थाह-सेट्ठिसेणाहिवेहि परिवरियो। करिकंधराऽधिरूढो, सिरोवरि धरियसियछत्तो सुमहग्घाऽलंकारेहि, भूसिओ सेणिओ महाराया। भत्तीए जिणवरवीर-वंदणत्थं लहु पयट्टो तस्स य एगेण तुरंगमेण, सो दुहुरो खुरऽग्गेण । पहओ पहम्मि जंतो, भत्तीए वंदिउं नाहं तो घायपीडिओ सो, घेत्तूणं अणसणं जिणं सम्मं । सुमरंतो मरिऊणं, सोहम्मे देवलोगम्मि दद्दुरवडेंसयम्मि, पवरविमाणम्मि दडुरंकोत्ति । देवो जातो तत्तो य, सिज्झिही सो विदेहम्मि लहुसिद्धिओ वि एवं, जइ नंदो निदियं तिरियजोणिं । मिच्छत्तसल्लवसओ, पत्तो ता तं चयसु खवग! ता उज्झियसल्लतिगो, पंचहिं समिईहिं तिहि य गुत्तीहिं । सम्मत्ताऽऽइगुणगणं, कयसिवसोक्खं पसाहेसु इय उवएसामयपाणएण, पल्हाइयम्मि चित्तम्मि। निव्वुइमुवेइ खवगो, पाऊण व पाणियं तिसिओ इय संसारमहोयहि-तरीए संवेगरंगसालाए। चउमूलद्दाराए, सोग्गइगमपउणपयवीए आराहणाए पडिदार-नवगनिम्मियसमाहिलाभस्स। तुरियद्दारट्ठारस-पडिदारेहि विरइयम्मि पढमेऽणुसट्ठिदारे, चरिमं निस्सल्लयापडिदारं । भणियं तब्भणणाओ, समत्तमऽणुसट्ठिदारमिणं एवमऽणुसट्ठिसवणे वि, जं विणा विणयणं न कम्माणं । संपज्जइ तमियाणि, भणामि पडिवत्तिपडिदारं बहुवत्तव्वयवित्थर-निम्मियअणुसट्ठिसवणपरितुट्ठो। मण्णंतो उत्तिण्णं य, अप्पयं भवसमुद्दाओ सिरधरियपाणिपउमो, हरिसुक्करिसुच्छलंतरोमंचो। अंतोविसप्पिसुहसाहि-अंकुरुप्पीलकलिओ व्व खवगमुणी पुणरुत्तं, सम्मं अणुसासिओ त्ति जंपतो। भत्तिब्भरनिब्भराए, गिराए भासेज्ज गुरुमेवं भयवं! परमत्थेणं, न तुमाहितो वि विज्जए वेज्जो । जो तुममिय मूलाओ, कम्ममहावाहिमुवहणसि तुममेव य अंतरपबल-सत्तुहम्मंतजंतुनिवहस्स । करणरणरंगभूभीए, सरणमेक्को असरणस्स तुममेव य तिहुयणवित्थरंत-मिच्छत्ततिमिरपूरस्स। विद्धंसणम्मि विप्फुरिय-नाणकिरणुक्करो सूरो ता तुमए जं सिटुं, विवज्जणीयत्तणेण णिच्चं पि। अच्चन्तदीहसंसार-साहिमूलप्परोहसमं निस्सट्ठकयाऽणिटुं, अट्ठारसपावठाणपडलं मे। कालतियगोयरं पि हु, तमऽहं तिविहेण उज्झामि १. फासुगमुव्वलणिगाइ - प्रासुकशेवालादि, ॥ ९२८४ ॥ ॥ ९२८५ ॥ ॥ ९२८६ ॥ ॥ ९२८७ ॥ ॥ ९२८८॥ ॥ ९२८९॥ ॥ ९२९० ॥ ॥ ९२९१ ॥ ॥ ९२९२ ॥ ॥ ९२९३ ॥ ॥ ९२९४ ॥ ॥ ९२९५ ॥ ।। ९२९६ ॥ ॥ ९२९७॥ ॥ ९२९८॥ ॥ ९२९९ ॥ ॥ ९३००॥ ॥ ९३०१ ॥ ॥ ९३०२॥ ॥ ९३०३ ॥ ॥ ९३०४॥ ॥ ९३०५॥ ॥ ९३०६॥ ॥ ९३०७॥ ।। ९३०८॥ ॥ ९३०९॥ ॥ ९३१०॥ ॥ ९३११॥ ॥ ९३१२ ॥ ॥ ९३१३॥ ॥ ९३१४ ॥ ॥ ९३१५ ॥ ॥ ९३१६॥ ॥ ९३१७॥ २53

Loading...

Page Navigation
1 ... 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378