Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 275
________________ अइनिज्झणं करेंता, गंथे संवेगभावणाजणगे। पंचनमोक्कारं वा, पढंति अणवरयमऽक्खलियं इट्ठमऽसणं व छुहिओ, सुसाउसीयलजलं व अइतिसिओ। परमोसहं व रोगी, गेण्हइ बहुमण्णइ य सो तं इय अक्खंडविहीए, सारीरबलक्खए वि भावबलं । अवलंबिऊण धीरो, करेज्ज कालं पुरिससीहो आसण्णभाविभद्दो हु, जइ परं कोइ किर महासत्तो । इत्थं कहियकमेणं, पुरिसो पाणे परिच्चयइ इय पावजलणजलहर-समाए संवेगरंगसालाए । चउमूलद्दाराए, सोग्गइगमपउणपयवीए आराहणाए पडिदार-नवगमइए समाहिलाभम्मि। भणियं चउत्थदारे, बीयं पडिवत्तिदारमिणं पडिवत्तिवओ वि कुओ वि, हेऊओ कहवि होज्ज से खोहो । इय तप्पसमनिमित्तं, सारणदारं णिदंसेमि संथारगट्टियस्स वि, कहं पि आराहणुज्जयस्साऽवि। दढधीसंघयणस्स वि, अभिलसियसुदुक्करस्साऽवि पयईए च्चिय परमं, संसारुव्वेयमुव्वहंतस्स। अच्वंतमुत्तरोत्तर-वड्ढंतसुहाऽऽसयस्साऽवि खमगस्स महामुणिणो, चिरभवदुच्चिण्णकम्मदोसेण । वायाऽऽइखोभओ वा, निसियणउव्वत्तणाऽऽइसु वा ऊरूदरसिरकरसवण-वयणदसणऽच्छिपट्ठिपामोक्खे। अंगे कत्थ वि उडेज्ज, वेयणा झाणविग्घकरी तो गुणमणिपडहत्थो, हत्थं पोउ व्व भिज्जए खमगो। भिण्णो य भीमभवसायरम्मि सुइरंपरिब्भमइ तं च तहा दळूण वि, निज्जामगसद्दमुव्वहतो वि । कुणइ उवेक्खं जो किर, निद्धम्मो को तओ अण्णो निज्जावगसाहुगुणा, जे पुव्विं वण्णिया इहं आसि । तेसिं स होइ दूरे, खवगमुवेक्खेज जो मूढो तो तस्स चिगिच्छाजाण-एहि साहूहि अप्पणा चेव । वेज्जाऽऽएसेणऽहवा, परिकम्मं होइ कायव्वं वायकफपित्तपमुहं, कारणमुवलक्खिऊण वियणाए। फासुयदव्वेहि करेज्ज, झत्ति विज्झवणमुवउत्तो बत्थिअणुवासणतावणेहिं, आलेवसीयकिरियाहिं । अब्भंगणपरिमद्दण-पमुहेहिं चिगिच्छए खवगं जइ तहवि असुहकम्मोदएण, वियणा न से उवसमेज्जा । अहवा तण्हाऽऽईया, परीसहा से उदिज्जेज्जा तो वेयणाऽभिभूओ, परिसहाऽऽईहिं वा वहिज्जंतो। खवगो अणप्पवसगो, ओहासेज्जा व पलवेज्जा संमुझंतो तो सो, तह कायव्वो जहाऽऽगमं गणिणा। जह सम्मं संवेगा, पच्चाऽऽगयचेयणो होइ "को सि तुमं? किं नामो, कत्थ वससि को व संपयं कालो। किं कुणसि कह व अच्छसि, को वा हं" इय विचिंतेसु। एवं सारेयव्वो, निज्जामगसूरिणा सयं खवगो। साहम्मियवच्छल्लं, बहुलाभं मण्णमाणेणं : इय कुगइतिमिरदिणयर-पहाए संवेगरंगसालाए। चउमूलद्दाराए, सोग्गइगमपउणपयवीए आराहणाए पडिदार-नवगमइए समाहिलाभम्मि । भणियं चउत्थदारे, तइयमिणं सारणादारं अह सारियो वि खवगो, न जं विणा धीरिमं धरेउमऽलं । धम्मुवएससरूवं, तं कवयद्दारमऽक्खेमि दुस्सहपरीसहोहामियस्स, मज्जायमुज्झिउमणस्स । आगारिंगियकुसलो, खवगस्स वियाणिऊण गुरू विसरिसचेटुं णिज्जामणेक्क-निउणो विमुक्कनियकिच्चो। निद्धाहिं महुराहिं, गिराहि अणुसासणं कुज्जा रोगाऽऽयंके सुविहिय!, निज्जिणसु परीसहे य धीबलिओ। तो निव्वूढपइण्णो, मरणे आराहओ होसि तहा हत्थि व्व तुमं अवहत्थिऊण, आलाणखंभमिव मेरं । हत्थिवयत्थाणीए, गुरुणो वि य अवगणेऊण अंकुससरिसं अवधीरिऊण, तेसिंच सदुपदेसं पि। अंगपडिचारगे विह, नियगे वि परंमुहे ठविउं अच्चंतभत्तिकोऊ-हलाऽऽगयं पेच्छगं पि बहुलोगं । विपरंमुहिउँ निरवज्ज-लज्जरज्जेंच तोडित्ता पडिबद्धरिद्धिकुसुमं, पत्तपरिग्गहपसोहियच्छायं । भममाणो सीलवणं, भंजिहिसि लहुं महाभाग! खंडिहिसि समिइगिहभित्ति-संचयं लूरइस्ससि असेसं। गुत्तिवईवग्गं पि हु, दलिहिसि सुगुणाऽऽवणस्सेणि नूणं न भद्द ! कुलसंभवो त्ति, इय जणपवायरेणूहि। अवगुंडिज्जिहिसि चिरं, स(ग)रिहिज्जसि बालगजणेण ॥ ९४६२॥ ॥९४६३॥ ॥ ९४६४॥ ॥ ९४६५ ॥ ॥९४६६ ॥ ॥९४६७॥ ॥ ९४६८॥ ॥ ९४६९॥ ॥ ९४७०॥ ॥९४७१ ॥ ॥९४७२॥ ॥९४७३॥ ॥९४७४॥ ॥ ९४७५ ॥ ॥ ९४७६॥ ॥९४७७॥ ॥ ९४७८॥ ॥ ९४७९॥ ॥ ९४८०॥ ॥ ९४८१॥ ॥ ९४८२ ॥ ॥ ९४८३॥ ॥ ९४८४॥ ॥ ९४८५ ॥ ॥ ९४८६॥ ॥ ९४८७ ॥ ।। ९४८८॥ ॥ ९४८९॥ ॥९४९०॥ ॥९४९१॥ ॥९४९२॥ ||९४९३॥ ॥९४९४॥ ॥९४९५ ॥ ૨૬૮

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