Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 284
________________ भावे समविसमत्थे, सूरो जुगवं जहा पयासेइ । लोगमऽलोगं च तहा, निव्वाणगओ पयासेइ जं नत्थि सव्वबाहाओ, तस्स सव्वं पि जाणइ जयं जं । जं च निरुस्सुगभावो, परमसुही तेण सुपसिद्धो परमिड्ढीपत्ताणं, मणुजाणं नस्थि तं सुहं लोगे। अव्वाबाहमऽणुवमं, जं सोक्खं तस्स सिद्धस्स देवेंदचक्कवट्टी, इंदियसोक्खं च जं अणुहवंति । तत्तो अणंतगुणियं, अव्वाबाहं सुहं तस्स तीसु वि कालेसु सुहाणि जाणि पवराणि नरसुरिंदाणं । ताणेगसिद्धसोक्खस्स, एगसमयं पि नऽग्घंति विसएहिं से न कज्जं, जं नत्थि छुहाऽऽइयाओ बाहाओ। रागाइआ य उवभोग-हेउणो तस्स जं नत्थि एत्तो च्चिय निच्चं पि हु, भासणचंकमणचिंतणाऽऽईणं । चेट्ठाण नत्थि भावो, निट्ठियअट्ठम्मि सिद्धम्मि अणुवममऽमेयमऽक्खय-मऽमलं सिवमऽजरमऽरुजऽमभयं धुवं । एगतियमऽच्चंतिय-मऽव्वाबाहं सुहं तस्स इय पायवोवगमणाऽभिहाण-जिणजोग्गचरममरणस्स । आगमजुत्तीए फलं, संखेवेणं समक्खायं आराहणाफलमिणं, सोउं संवेगवड्ढिउच्छाहा । काऊण तई सव्वे, भव्वा निव्वुइसुहमुर्वितु इय करणसउणिपंजरसमाए, संवेगरंगसालाए । चउमूलद्दाराए सोग्गइगमपउणपयवीए आराहणाए पडिदार-नवगमइए समाहिलाभम्मि। भणियं चउत्थदारे, फलं ति अट्ठमपडिद्दारं जीवं पडुच्च पुव्वं, फलाऽवसाणाणि अरिहमाऽऽईणि । दाराणि दंसियाई, एत्तो पुण जीववियलस्स खमगसरीरस्स भवे, जो किर कायव्ववित्थरो कोई । सो विजहणदारेणं, जिणमयनिद्दिट्ठनाएणं भण्णइ साहूण अणु-ग्गहट्ठया होंति विजहणाए य । परिठवणा परिचाओ, उज्झणमिच्चाइ एगट्ठा सा पुण पुव्वपवण्णिय-कमेण खमगम्मि मरणमऽणुपत्ते । निज्जामगेहिं सम्म, तदीयदेहस्स कायव्वा न य कायव्वो सोगो, जहा अहो ! सो तहा महाभागो। चिरमुवचरिओ चिरपज्जु-वासिओ चिरमऽहावसिओ सिक्खाविओ य सुचिरं, समाहिकरणेण चिरमऽणुग्गहिओ। नाणाऽऽईहिं गुणेहिं, बंधु व्व सुओ व्व मित्तो व्व अम्हं इट्ठो आसी, निक्कित्तिमपेमभायणं च परं। इण्डिं च मत्तुणा कह-मऽवहरिओ निक्किवेणं सो हा ! हा! मुट्ठा मुट्ठ त्ति, एवमऽकंदसद्दमाऽऽईओ। जम्हा इह कीरते, सरीरयं सि(झि)ज्जई अचिरा परिगलइ बलमऽसेसं, सई पणस्सइ विवज्जए बुद्धी । उप्पज्जइ गहिलत्तं, संभवइ हिययरोगो वि हायंति इंदियाई, छलंति खुद्दा य देवया कहवि । झिज्जइ समयाऽऽयण्णण-समुब्भवो सुहविवेगो वि संजायइ लहुयत्तं, संभाविज्जइ दढं विमूढत्तं । कि बहुणाऽणत्थाणं, सोगो सव्वेसि समवायो ता तं दूरम्मि समुझिऊण, निज्जामगा महामुणिणो । दढमऽप्पमत्तचित्ता, भवठिइमेवं विभावेंति हे जीव! कीस सोयसि, किं न तुम मुणसि जो इहं जाओ। तस्साऽवस्संभावी, मच्चू जम्मो पुणो मरणं अप्पडियारं च इमं, कहमिहरा भासरासिणो उदए । कूरग्गहस्स वि तहा, विण्णवणम्मि वि सुरिंदस्स अतुलियबलसारेणं ति-जयपहुपरमेसरेण वीरेण । पडिवालियं न थेवं पि, सिद्धिगमणं जिणवरेणं न य तस्स सुचिरसंचिय-सुकयस्स गुणोलिनिलयभूयस्स। अइघोरपंकपम्मुक्क-संजमुज्जोगजुत्तस्स आराहणमाऽऽराहिय, पंचत्तं पावियस्स खमगस्स । विज्जइ मणागमेत्तं पि, नूण संसोयणिज्जं ति अलमेत्थ पसंगेणं, एवं सम्मं विभाविउं धीरा । तग्गयविहिं समग्गं, कुव्वंति लहुं णिरुव्विग्गा नवरं कालगयस्स हु, सरीरमंऽतो व्व होज्ज बाहिंवा । जइ अंतो निज्जवगा, इमेण विहिणा विगिचन्ति जत्थेव मासकप्पं, वासावासं व साहुणो ठंति । पढम चिय गीयत्था, तत्थ महाथंडिले पेहे दिसि अवरदक्खिणा १ दक्खिणा २ य, अवरा ३ य दक्खिणापुव्वा ४ अवरुत्तरा ५ य पुव्वा ६, उत्तर ७ पुव्वुत्तरा चेव ८ पढमाए अण्णपाणं, सुलहं बीयाए दुल्लहं होइ । उवही पुण तइयाए, नत्थि चउत्थीए सज्झाओ पंचमियाए कलहो, गणभेओ ताण होइ छट्ठीए । सत्तमदिसि गेलण्णं, मरणं पुण अट्ठमीए उ ॥ ९७८१॥ ॥ ९७८२ ॥ ॥ ९७८३॥ ।। ९७८४॥ ॥९७८५ ॥ ॥ ९७८६ ॥ ॥ ९७८७॥ ॥९७८८ ॥ ॥९७८९ ॥ ॥९७९०॥ ॥९७९१ ॥ ॥९७९२ ॥ ॥ ९७९३॥ ॥ ९७९४॥ ॥९७९५॥ ।। ९७९६ ॥ ॥९७९७ ।। ॥९७९८ ।। ॥ ९७९९ ॥ ॥ ९८००॥ ॥ ९८०१॥ ॥९८०२॥ ॥ ९८०३ ॥ ॥ ९८०४॥ ॥ ९८०५ ॥ ॥ ९८०६॥ ॥ ९८०७॥ ।। ९८०८॥ ॥ ९८०९॥ ॥ ९८१०॥ ॥ ९८११॥ ॥ ९८१२ ॥ ॥ ९८१३॥ ॥ ९८१४ ॥ ॥९८१५॥

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