Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 282
________________ सइमंता धीमंता, सद्धासंवेगवीरिओवगया। जित्ता परीसहचमुं, उवसग्गरिउं अभिभवित्ता . सुक्कं लेसमुवगया, सुक्कज्झाणेण खवियसंसारा । उम्मुक्ककम्मकवया, उति सिद्धि धुयकिलेसा जेण जहण्णेणाऽवि हु, काऊणाऽऽराहणं धुयकिलेसा । सत्तट्ठभवाणऽब्भं-तरम्मि पाविति परमपयं सव्वण्णू सव्वदरिसी, निरुवमसुहसंगया य ते तत्थ । जम्माऽऽइदोसरहिया, चिटुंति सया वि भगवंतो नारयतिरिएसु दुहं, किंचि सुहं होइ तह य मणुएसु । देवेसु किंचि दुक्खं, मोक्खे पुण सव्वहा सोक्खं रागाऽऽईणमऽभावा, जम्माऽऽईणं असंभवाओ य। अव्वाबाहाओ खलु, सासयसोक्खं खु सिद्धाणं रागो दोसो मोहो, दोसाऽभिस्संगमाऽऽइलिंग त्ति । अइसंकिलेसत्तं वा, हेऊ चिय संकिलेसस्स एएहऽभिभूयाणं, संसारीणं कओ सुहं किंचि । जाइजरामरणजलं, भवजलहिं परियडंताणं रागाऽऽइविरहओ जं, सोक्खं जीवस्स तं जिणो मुणइ । न हि सण्णिवायगहिओ, जाणइ तदऽभावजं सोक्खं डड्ढम्मि जहा बीए, न होइ पुण अंकुरस्स उप्पत्ती। तह चेव कम्मबीए, दड्ढम्मि भवंऽकुरस्साऽवि जम्माऽभावे न जरा, न य मरणं न य भयं न संसारो । एएसिमऽभावाओ, कहं न मोक्खे परं सोक्खं अव्वाबाहाउ च्चिय, सयलिदियविसयभोगपज्जंते। उच्छुक्कनियत्तीओ, संसारसहं व सद्धेयं एसा सयलिन्दियविसय-भोगपज्जन्तवत्तिणी नवरं । उच्छुक्कनिवित्ती थेव-कालिया पुण तदिच्छाओ पुणरऽभिलासाऽभावा, सिद्धाणं सव्वकालिगी पुण सा। एगंतिगा य अच्चंति-गा य ता तेसि परमसुहं इय अणुहवजुत्तीहेउ-संगयं नूण निट्ठियऽट्ठाणं । अत्थि सुहं सद्धेयं, तह जिणचंदाऽऽगमाओ य आराहणविहिमेयं, आराहित्ता जहाऽऽगमं सम्मं । तीयऽद्धाए अणंता, सिद्धा जीवा धुयकिलेसा आराहणविहिमेयं, आराहित्ता जहाऽऽगमं सम्मं । इण्डिं पि हुसंखेज्जा, सिझंति विवक्खिए काले आराहणविहिमेयं, आराहित्ता जहाऽऽगमं सम्मं । एसऽद्धाए अणंता, सिज्झिस्संति धुवं जीवा आराहणविहिमेयं, एमेव विराहिउंतिकालं पि । एत्थु अणेगे जीवा, संसारपवड्ढगा भणिता नाऊण एवमेयं, इमीए आराहणाए जइयव्वं । न हु अण्णो पडियारो, को वि इहं भवसमुद्दम्मि मूलमिमीए वि नेयं, एगंतेणेव भव्वसत्तेहिं । सद्धाऽऽइभावओ खलु, आगमपरतंतया गरुई जम्हा न मोक्खमग्गे, मोत्तूणं आगमं इह पमाणं । विज्जइ छउमत्थाणं, तम्हा तत्थेव जइयव्वं आगमपरतंतेहिं, तम्हा निच्चं पि सोक्खकंखीहिं । सव्वमऽणुट्ठाणं खलु, कायव्वं अप्पमत्तेहिं । मरणविभत्तिद्दारे, पुव्विं जं सूइयं इहाऽऽसि जहा। भणियं आराहणफल-दारे मरणप्फलं पि फुडं अह अणुकमेण संपइ, संपत्ते तम्मि अहिगयद्दारे। मरणाणं पि फलमऽहं, केत्तियमित्तं पि कित्तेमि तत्थ य अविसेसेणं, वेहाणसगद्धपट्ठजुत्ताई । पढममरणाणि अट्ठ वि, भण्णंति दुग्गइफलाई तह सामपणेणं चिय, पुव्वुत्तविहीए कित्तियकमाणि । सत्त उण उवरिमाइं, मरणाइं सोग्गइफलाई नवरं अंतिममरण-त्तिगस्स सविसेसमऽवि फलं वोच्छं। सेसचउक्कस्स उ त-प्पवेसओ तुल्मेव फलं तत्थ वि भत्तपरिण्णा-पवण्णियं चिय फलं णियट्ठाणे । एत्तो उ इंगिणीमरण-गोयरं फलमिमं भणिमो भणियविहीए सम्मं, साहेत्ता इंगिणि धुयकिलेसा। सिज्झंति केइ केई, भवंति देवा विमाणेस इय इंगिणिमरणफलं पि, पयडियं सुत्तसाहियविहीए । अह पायवोवगमणाऽ-भिहाणमरणप्फलं भणिमो सम्मं पाओवगओ, धम्म सक्कं च सठ्ठ झायंतो। उज्झियदेहो जायइ. को विवेमाणियसरेस को वि य पहीणकम्मो, कमेण पाउणइ सिद्धिसोक्खं पि। तस्स य भणामि लाभ-क्कम सरूवं च ओहेण आराहगो जहुत्तर-चरणविसुद्धीए धम्मसुक्काई । झायंतो सुहलेसो, अपुव्वकरणाऽऽइगकमेण महिऊण मोहजोहं, साऽऽवरणं खवगसेढिमाऽऽरूढो । सुहडो इव रणसीसं, केवलरज्जं समज्जिणइ तत्तो देसूणं पुव्वकोडि-मंऽतोमुत्तमत्तं वा। विहरइ अह वेयणिज्जं, अइबहुयं थोवमाऽऽउंच ॥ ९७०९ ॥ ॥९७१०॥ ॥९७११ ॥ ॥९७१२॥ ॥ ९७१३ ॥ ॥९७१४॥ ॥९७१५॥ ॥ ९७१६॥ ॥ ९७१७॥ ॥ ९७१८॥ ॥ ९७१९॥ ॥ ९७२०॥ ॥९७२१॥ ॥९७२२॥ ॥९७२३॥ ॥ ९७२४ ॥ ॥ ९७२५॥ ॥ ९७२६॥ ॥ ९७२७॥ ॥ ९७२८॥ ॥९७२९॥ ॥ ९७३०॥ ॥९७३१॥ ॥ ९७३२॥ ॥ ९७३३॥ ॥ ९७३४॥ ॥९७३५॥ ॥ ९७३६॥ ॥ ९७३७॥ ॥ ९७३८॥ ॥ ९७३९ ॥ ॥९७४०॥ ॥ ९७४१॥ ॥ ९७४२॥ ॥ ९७४३॥ ॥ ९७४४॥ ૨૭૫

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