Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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सक्खिकयरायहीलण-माऽऽवहइ नरस्स जह महादोसं । तह जिणवराऽऽइआसा-यणा वि महदोसमाऽऽवहइ॥ ९६०२ ॥ न तहा दोसं पावइ, पच्चक्खाणमऽकरित्तु कालगओ। जह भंजणाउ पावइ, तस्सेव अबोहिबीयकयं
॥ ९६०३॥ संलेहणापरिस्सम-मिमं कयं दुक्करं च सामण्णं । मा अप्पसोक्खहेडं, तिलोगसारं विणासेहि
॥ ९६०४ ॥ धीरपुरिसपण्णत्तं, सप्पुरिसनिसेविअंइमं घेत्तुं । धण्णा निरवेयक्खा, संथारगया विवज्जंति
॥ ९६०५॥ इय पण्णविज्जमाणो, सो पुव्वं जायसंकिलेसो वि। विणियत्तो तं दुक्खं, पासिइ परदेहदुक्खं च
॥९६०६॥ इय माणधणस्स महिड्ढियस्स, उस्सग्गियं भवे कवयं । अववाइयं पि कवयं, आगाढे होइ कायव्वं
॥९६०७॥ इय गुणमणिरोहणगिरि-धराए संवेगरंगसालाए। चउमूलद्दाराए सोग्गइगमपउणपयवीए
॥ ९६०८॥ आराहणाए पडिदार-नवगमइए समाहिलाभम्मि। भणियं चउत्थदारे, कवयं ति चउत्थपडिदारं
॥ ९६०९॥ अह परकज्जऽब्भुज्जय-निज्जामयगुरुगिराए कयकवओ। जं कुणइ तं इयाणि, समयादारेण दंसेमि
॥ ९६१०॥ अतिनिविडकवयजुत्तो, सुहडो व्व झडत्ति आरुहेऊण । निययपइण्णाकुंजर-माऽऽराहणरणमुहम्मि ठिओ ॥ ९६११॥ उच्छालियउच्छाहो, पासत्थपढंतसाहुबंदीहिं । वेरग्गगंथवायण-रणतूररवेण कयहरिसो...
॥९६१२॥ संवेगपसमनिव्वेय-पमुहदिव्वाऽऽउहप्पभावेण । निद्धाडितो उब्भडअट्ठमयट्ठाणसुहडोलि
॥ ९६१३॥ हासाऽऽइछक्कदक्कंत-करिघडं उब्भडं पि विहडंतो। पडिखलमाणो इंदिय-तरंगथद्रं पयतं
॥९६१४॥ दुस्सहपरिसहपाइक्क-चक्कमऽच्चुक्कडं पि विजयंतो । मोहमहारायं पिहु, निहणंतो तिजयदुज्जेयं
॥९६१५॥ खवगो पडिचक्कजया, पावियनिरवज्जजयजसपडागो। सव्वत्थ अपडिबद्धो, उवेइ सव्वत्थ समभावं ॥ ९६१६॥ सव्वेसु दव्वपज्जव-विहीसु निच्वं ममत्तदोसजढो। विप्पणयदोसमोहो, उवेइ सव्वत्थ समभावं
॥ ९६१७॥ संजोगविप्पओगेसु चयइ इ8सु वा अणिढेसु । रइअरइऊसुगत्तं, हरिसं दीणत्तणं च तहा
॥ ९६१८॥ मित्तेसु य नाईसु व, सीसे साहम्मिए कुले वा वि। रागं वा दोसं वा, पुव्वुप्पण्णं पि सो चयइ
॥ ९६१९॥ भोएसु देवमाणुस्सएसु न करेइ पत्थणं खवओ। मग्गो विराहणाए, भणिओ विसयाऽभिलासो जं
॥ ९६२०॥ इ8सु अणिढेसु य, सद्दप्फरिसरसरूवगंधेसु । इहपरलोए जीविय-मरणे माणाऽवमाणेसु
॥ ९६२१॥ सव्वत्थ निव्विसेसो, होइ तगो रागदोसरहियप्पा । खवगस्स रागदोसा, जमुत्तमटुं विराहेंति
॥९६२२॥ एवं सव्वऽत्थेसु वि, समभावं उवगओ विसुद्धप्पा । मेत्ति करुणं मुइयं, उवेइ खवगो उवेहं च
॥ ९६२३॥ तत्थ समत्थजिएसं. मित्तिं करुणं किलिस्समाणेसु । मुइयं गुणाऽहिएK, अविणेयजणेसु य उवेहं
॥ ९६२४ ॥ दंसणनाणचरितं, तवं च विरियं समाहिजोगं च। तिविहेणुवसंपज्जिय, सव्वुवरिलं कम कुणइ
॥ ९६२५ ॥ इय कुनयकुरंगयवग्गुराए, संवेगरंगसालाए। चउमूलद्दाराए, सोग्गइगमपउणपयवीए
॥९६२६॥ आराहणाए पडिदार-नवगमइए समाहिलाभम्मि । भणियं चउत्थदारे, समया पंचमपडिदारं
॥९६२७॥ समयापरायणेण वि, असुहज्झाणं विहाय सज्झाणे । जइयव्वं खवगेणं ति, झाणदारं निदंसेमि
॥ ९६२८॥ जियरागो जियदोसो, जिइंदिओ जियभओ जियकसाओ । अरइरइमोहमहणो, कयभवदुममूलनिद्दहणो ॥ ९६२९ ॥ अट्टं रोदं च दुवे, झाणाई दुहमहानिहाणाई । निउणमईए समयाउ, बुज्झिऊणुज्झिऊणं च
॥ ९६३०॥ धम्मं चउप्पयारं, सुकं पि चउव्विहं किलेसहरं । संसारभमणभीओ, झायइ झाणाई सो दोण्णि
।। ९६३१॥ न परीसहेहिं संताविओ वि, झाएज्ज अट्टरोद्दाई । सुठ्ठवहाणविसुद्धं पि, जेण एयाई नासिति
॥ ९६३२ ॥ अमणुण्णसंपयोगे, मणुण्णविगमम्मि वाहिविहुरते। परइड्ढिपत्थणम्मि य, अट्टं चउहा जिणा बेंति ।। ९६३३॥ हिंसाऽलियचोरिक्काऽण-बंधि सारक्खणाऽणबंधिच। तिव्वकसायरउहं. रुदं पिचउन्विहं अहवा
॥ ९६३४॥ कामाऽणुरंजियं अर्द्ध, रोदं हिंसाऽणुरंजियं । धम्माऽणुरंजियं धम्मं, सुकं झाणं निरंजणं
॥ ९६३५ ॥ अट्टे चउप्पयारे, रुद्दम्मि चउव्विहम्मि जे भेया। ते सव्वे परिजाणइ, संथारगओ खवगसाहू
॥ ९६३६ ॥ तो भावणाहिं भाविय-चित्तो झाएइ धम्मवरझाणं । चउहा वि नाणदंसण-चरित्तवेरग्गरूवाहिं
॥ ९६३७॥
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