Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 251
________________ केत्तियमेत्तं भण्णइ, विविहऽच्छेरयनिहिम्मि संसारे । तावससेट्ठिव्व चिरं, विणडिज्जइ जत्थ जंतुगणो तथाहि कोसंबीनयरीए, तावससेट्ठि त्ति आसि सुपसिद्धो । सद्धम्मबाहिरमई, महयरआरंभकरणपरो अच्चन्तगेहमुच्छा-गढिओ मरिडं सए च्चिय गिहम्मि । कोलत्तेणुववण्णो, जाईसरणं च से जायें अणम्मि अवसरे तस्स, सूणुणा तस्स चेव कज्जेण । संवच्छरियविहाणं, पारद्धं गुरुपबंधेणं सयणा माहणसमणा, निमंतिया तण्णिमित्तमोक्खडियं । मंसं सूयारीए, मज्जाराऽऽईर्हि तं च हडं अह गिहवइभीयाए, परमंसंऽतरमऽपाठणंतीए । सो च्चिय कोलो हणिओ, झडत्ति तीए ठवक्खडिओ तत्तो मओ य सो पुण, तत्थेव धरम्मि पण्णगो जाओ । सूयारिदंसणेण य, मरणमहाभयवसट्टेण सरिया जाई तेणं, तीए वि हु सूवयाररमणीए । पकओ बोलो मिलिओ, जणो वि निहओ भुयंगो सो कयपाणच्चागो पुण, नियपुत्तस्सेव पुत्तभावेणं । संवृत्तो सरिऊण य, जाई एवं विचितेइ कह नियपुत्तं पियरं, वहुं च जणणि उदाहरिस्सामि । इइ कयसंकप्पो सो, मोणेणं ठाउमाऽऽरुद्धो पत्तो कुमारभावं, कालेण समागओ तर्हि नाणी । धम्मरहो नाम गणी, समोसढो बाहिरुज्जाणे नाणाऽऽलोएण पलोइयं च को बुज्झिहि त्ति तेण परं । मुणिओ मोणव्वइओ, सो च्चिय तो साहुणो दोणि पुव्वभवप्पडिबद्धं, गाहं सिक्खविय पेसिया तस्स । पासम्मि बोहणत्थं, तेहिं गंतूण पढिया य “तावस ! किमिणा मोणव्वएण, पडिवज्ज जाणिउं धम्मं । मरिऊण सूयरोरग, जाओ पुत्तस्स पुत्तो ति" अह सो नियभववित्तं, सोऊणं तक्खण पडिबुद्धो । सूरिसमीवे गंतुं, पडिवण्णो तित्थयरधम्मं अलमेत्थ पसंगेणं, संसारे तिक्खदुक्खलक्खाई। पत्ताइं पाविही तह, जीवो धम्मं जइ न काही ॥ ८६३४ ॥ ॥ ८६३५ ॥ ॥ ८६३६ ॥ ।। ८६३७ ।। ॥ ८६३८ ॥ ॥ ८६३९ ॥ ॥ ८६४० ॥ ॥ ८६४१ ॥ ॥ ८६४२ ॥ ॥ ८६४३ ॥ ॥। ८६४४ ॥ ॥। ८६४५ ।। ॥। ८६४६ ॥ ॥। ८६४७ ॥ ॥ ८६४८ ॥ इ खवग ! महादुहहेउ - भूयभवभावभावणुज्जुत्तो । भवसु तहा जह पत्थुय-मत्थं लीलाए साहेसि [संसारो] ॥ ८६४९ ॥ जेणं चि संसारो, एस अणिच्वत्तणेण वत्थूण । अणुवलभणिज्जसरणो, तेणेव जियाण एगत्तं एगत्तभावणं ता, पइसमयपवड्ढमाणसंवेगो । भावसु छिण्णममत्तो, तत्तं हिययम्मि काऊण एगो आया संजोगियं तु, सं इमस्स पाएण । दुक्खनिमित्तं सव्वं, मोत्तुं मज्झत्थभावं तु ॥। ८६५२ ॥ ॥। ८६५४ ॥ जं एक्को च्चिय जीवो, सुहं दुहं वा भवम्मि अणुभवइ । न हु तस्स को वि बीओ, सो वि न अण्णस्स कस्साऽवि ॥ ८६५३ ॥ एगो च्चिय सोयंताण, चेव मज्झाओ जाइ बंधूणं । न य तं अणुगच्छंती, पियपुत्तकलत्तमित्तजणा एक्को करेइ कम्मं, एक्को च्चिय तप्फलं पि भुंजेइ । जायइ मरइ य एक्को, एक्को हु भवं तरं सरइ कोकण समं जायइ, को केण समं च परभवं जाइ। को कस्स किं करेइ, कस्स वि को कि च फेडे अणुसोयइ अण्णजणं, अण्णभवऽन्तरगयं तु बालजणो। न य सोयइ अप्पाणं, किलिस्समाणं भवे एक्कं संतं पि समत्थपयत्थ-वित्थरं बज्झमुज्झिउं झत्ति । परलोगा इहलोगे, आगच्छइ गच्छइ एक्को एक्को नरयम्मि दुहं, सहइ न भिच्चा न बंधुणो तत्थ । एगो सग्गे वि सुहं, भुंजइ न य से परे सयणा एक्को च्चिय भवपंके, किलिस्सइ नेव से वरायस्स । इट्ठो दिट्ठिपहे वि हु, निवडइ समसोक्खदुक्ख हो एतो च्चिय तिव्वुवसग्ग- वग्गदुक्खे वि नो अवेक्खति । परसाहेज्जं मुणिणो, वीरो व्व सहंति किं तु सयं तहाहि कुंडग्गामपुरप्पहु - पसिद्धसिद्धत्थपत्थिवं गरुहो । नियजम्मजणियतिहुयण- परममहो सिरिमहावीरो भत्तिभरनमिरसामंत-मंतिमणिमउडलीढपयवीढं। आणापडिच्छकिंकर - नरनियरं रज्जमऽवहाय जयजयरवमुहरमिलंत-तियसकीरंतपूयपब्भारो । परिचत्तपेमबंधुर-बंधुजणो गहियसामण्णो पढमे च्चिय दिक्खदिणे, कुम्मारगामबाहिरुद्देसे । वट्टंतो गोवेणं, भणिओऽणज्जेण किर एवं देवऽज्जय ! जाव अहं, गेहे गंतूण पडिनियत्तेमि । ताव तुमं मम वसभे, सम्मं एए निएज्जासु ॥ ८६३३ ॥ ૪૪ ॥। ८६५० ॥ ॥ ८६५१ ॥ ॥। ८६५५ ॥ ॥ ८६५६ ॥ ॥। ८६५७ ।। ॥ ८६५८ ॥ ॥। ८६५९ ।। ॥ ८६६० ॥ ॥ ८६६१ ॥ ॥ ८६६२ ॥ ॥ ८६६३ ॥ ॥ ८६६४ ॥ ॥ ८६६५ ॥ ॥ ८६६६ ॥

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