Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 255
________________ ॥८७७०॥ ।।८७७१ ॥ ॥ ८७७२॥ ॥ ८७७३ ॥ ।। ८७७४॥ ॥ ८७७५ ॥ ॥ ८७७६॥ ।।८७७७॥ ॥८७७८॥ ॥ ८७७९॥ भरहाऽऽईणं पि दढं, विसुज्झमाणप्पहाणभावाणं । सिटुं सिद्धते वि हु, तहाविहं कम्मनिज्जरणं संबपमुहा य कुमरा, हरिपुच्छियनेमिनाहकहियम्मि। बारसवरिसाणंऽते, बारवइपुरीविणासम्मि संवेगसमाऽऽवण्णा, नेमिसमीवम्मि गिहिउं दिक्खं । दुक्करतवचणरया, कम्मविणिज्जरणमऽकरिस किंचजह सीयतावपवणाऽ-वधूयमुवसुसइ वारि पोराणं। पडिरुद्धाऽवरसलिल-प्पवेससलिलासयल्लीणं तह पिहियाऽऽसवजीवत्थ-पुव्वपावं पि निज्जरमुवेइ । तवनाणझाणऽज्झयण-पमुहसुविसुद्धकिरियाए एवं च तुमं सुंदर!, विणिज्जराभावणासुनावाए । कम्मजले दुत्तारे, तारेज्जसु खिप्पमऽप्पाणं अह सव्वसंगचागी, सम्मं होऊण निज्जराभागी। भावणनवगाऽऽसंगी, लोगठिई पि हु तुममऽरागी भावेज्ज जहसरूवं, उड्ढे तिरियं अहो य उवउत्तो । तग्गयसच्चित्ताऽचित्त-सव्वदव्वस्सरूवं च उड्ढं तियसविमाणाऽऽदी, दीवोयहिणो असंखया तिरियं । हेट्ठा य सत्त पुढवी, लोगसभावो इय समासा अजहटिइलोगट्टिइ-नाया न सकज्जसाहगो होइ । तस्सम्मपरिण्णाणा, होइ च्चिय तावससिवो व्व तथाहिगयउरनगरे राया, नामेण सिवो विहाय रज्जसिरिं। घेत्तुं तावसदिक्खं, वणवासविहारमऽल्लीणो सूरुम्मुहनिम्मियनिमेस-रहियनयणो तवेइ गाढतवं । कुणइ य नियसमयऽणुरूव-सेसकिरियाकलावं च एवं तवं तवंतस्स, तस्स पयईए भद्दयत्तेण । विब्भंगं संजायं, कम्मखओवसमओ य तहा अह सत्तदीवसायर-मेत्तं लोयं वियाणिउं तेणं । सिवरायरिसी तुट्ठो, विसिट्ठनियनाणपसरेण तो आगंतूणं गय-पुरम्मि तियचच्चरेसु लोयाणं । साहेइ इहं लोए, दीवोदहिणो परं सत्त तत्तो परेण लोगो, वोच्छिण्णो एवमऽमलनाणेण । जाणामि पासामि य, करयलठियकुवलयफलं व तम्मि य समए सामी, समोसढो तत्थ चेव वीरजिणो। भिक्खऽटुं च पविट्ठो, गोयमसामी वि नयरम्मि अह सत्तोयहिदीव-प्पवायमाऽऽयण्णिऊण लोगाओ। विम्हियमणो नियत्तिय, समुचियसमयम्मि जयनाहं पुच्छेइ गोयमो नाह!, केत्तिया एत्थ दीवजलनिहिणो। जयगुरुणा संलत्तं, अस्संखा सिंधुदीव त्ति एवं जिणप्पणीयं, लोगाओ निसामिउं सिवो सहसा । संकाकंखोवहओ, जावऽच्छइ ताव विब्भंगं परिवडियं से खिप्पं, ताहे अच्चन्तभत्तिभरभरिओ। सम्मण्णाणनिमित्तं, आगंतुं वंदए वीरं सिरविरइयकरकमलो, ठाउं सण्णिहियभूमिभागे य। जिणवयणणिहियचक्खू, उज्जुत्तो पज्जुवासेइ अह तियसतिरियनरसंकुलाए, परिसाए तस्स य जिणिदो। लोगसरूवं सासइ, सवित्थरं धम्मसारंच तं च निसामिय सम्मं, पडिबुद्धो जिणवरस्स पासम्मि। पव्वज्जं पडिवज्जइ, स महप्पा कयतवच्चरणो कम्मट्ठगंठिमऽइनिठुरं पि, लीलाए निट्ठवेऊण । अरुयमऽजम्ममऽमरणं, सिवमऽक्खयसोक्खमऽणुपत्तो इय मुणियजगसरूवो, निस्संगो पत्थुयऽत्थसिद्धिकए । खवग! मणागं पि मणो-ऽणिजंतियं मा धरेज्जासु जहठियलोगसरूवं, वियाणमाणो य पयहिय पमायं । बोहीए दुल्लहत्तं, परमं भावेसु खवग ! जहा कम्मपरतंतयाए, इओ तओ भववणे भमंताणं । जीवाण जंगमत्तं पि, दुल्लभं जं सुए भणियं - अत्थि अणंता जीवा, जेहिं न पत्तो तसत्तपरिणामो । उप्पज्जंति चयंति य, पुणो वि तत्थेव तत्थेव कहकहवि जंगमत्ते, पत्ते पंचिदियत्तमऽइदुलहं। जलथलखहयरजोणी-चक्के चिरसंचरणओ य तम्मि वि अगाहजलजलहि-खित्तजुगसमिलजोगनाएणं । दुलहं चिय मणुयत्तं, तम्मि वि अइदुल्लहा बोही जमऽकम्मभूमिअंतर-दीवसुं मुणिविहारविरहेण । कत्तो पायं बोही, कम्मगभूमीए अंतो वि छण्हं खंडाणं खंड-पंचगं सव्वहा वि हु अणज्जं । मज्झिमखंडस्स बहि, धम्माऽणरिहं ति काऊण जं पि भरहम्मि लटुं, छटुं खंडं अउज्झमज्झेणं । सड्ढपणुवीसजणवय-वज्जमऽणज्जं तयं पि दढं ॥८७८०॥ ॥ ८७८१॥ ॥८७८२॥ ॥८७८३॥ ॥ ८७८४॥ ॥८७८५ ॥ ।। ८७८६॥ ॥८७८७॥ ॥८७८८॥ ॥८७८९ ॥ ॥ ८७९०॥ ॥ ८७९१॥ ॥ ८७९२॥ ॥ ८७९३॥ ॥ ८७९४ ॥ ॥ ८७९५ ॥ ॥ ८७९६॥ ॥ ८७९७॥ ॥ ८७९८॥ ॥ ८७९९ ॥ ।। ८८००॥ ।।८८०१॥ ।।८८०२॥ ॥८८०३॥ ૨૪૮

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