Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 259
________________ ससमयपरसमयविऊ, तित्थियसमयाउ दंसइ विसेसं। जिणधम्मस्स अओ सो, उच्छाहं कुणइ जिणधम्मे सुत्तत्थं च पयासइ, निस्सेसनएहिं जिणमयण्णू य । उस्सग्गऽववायाणं, जहट्ठियं दंसइ विसेसं संविग्गो सब्भावं, कहेइ इइ पच्चओ न इयरम्मि। चरणकरणं चयंतो, चएज्ज सव्वंपि ववहारं गुणसुट्ठियस्स वयणं, घयमहुसित्तो व्व पावओ भाइ । गुणहीणस्स न सोहइ, नेहविहीणो जहा दीवो आयारे वटुंतो, आयारपरूवणे असंकेओ। आयारपरिब्भट्ठो, सुद्धचरणदेसणे भइओ भवसयसहस्सलद्धं, जिणवयणं भावओ चयंतस्स । जस्स न जायं दुक्खं, न तस्स दुक्खं परे दुहिए जहथाममुज्जमतो, संवेगं कुणइ तह य मज्झत्थो । अब्भुट्ठिएऽणुगिण्हइ, कयकरणो गाहणाकुसलो सत्तुवयारम्मि रओ, थिरपरिचियमऽत्थसुत्तमऽगिलाए। पुणरुत्तवाणिदाणाऽऽइ-णाउ सेहे करावेइ सेवेइ नाऽववायं, मियाण पुरओ दढपइण्णो त्ति [दारं] । अणुवत्तगो अणुवत्तइ, जहजोग्गं बहुविहविणेए मइमं जाणइ नियमा, उस्सग्गऽववायगोयरमऽसेसं। परिणामगाऽऽइसीसे य, विविहमयदेसणाजोग्गे पढवि पिव सव्वसहं, मेरुंव अकंपियं ठियं धम्मे। चंदमिव सोमलेसं, तं धम्मगरुं पसंसंतिकालण्णुं देसण्णुं, नाणाविहहेउकारणविहण्णुं । संगहुवग्गहकुसलं, तं धम्मगुरुं पसंसंति लोइयवेइयलोउत्तरेसु, नाणाविहेसु सत्थेसु । लद्धटुं गहियटुं, तं धम्मगुरुं पसंसंति धम्मगुरुसहस्साई, लहइ य जीवो भवेसु बहुएसु । कम्मेसु सिप्पेसु य, अण्णेसु य धम्मचरणेसु जो पुण जिणप्पणीए, निग्गंथे पवयणम्मि धम्मगुरू । संसारमोक्खमग्गस्स, देसओ स इह दुल्लंभो जह दीवा दीवसयं, पइप्पएसो य दिप्पए दीवो । दीवसमो धम्मगुरू, अप्पं च परं च दीवेइ धम्मण्णू धम्मपरायणो य, सम्मं च धम्मकत्ता य । सत्ताण धम्मसत्थऽत्थ-देसगो भण्णए सुगुरू चाणक्कपंचतंतय-कामंदकमाऽऽइरायनीईउ। वक्खाणंतो जीवाण, ण खलु अणुकंपओ होइ तह जोइसऽग्घकंडाऽऽइ, वेज्जयं मणुयतुरयहत्थीणं । धणुवेयधाउवायं च, परिकहंतो हणइ जीवे वावीकूवतडागाइ-गोयरं न खलु देइ उवएसं । जमऽसंखविणासेणं, न होइ थोवाणमऽणुकंपा एत्तो च्चिय सो हलसगड-पोयसंगामगोहणाऽऽईसु । उवएस पि हु कहं देइ, सत्तअणुकंपसंजुत्तो ता कसछेयाऽऽइविसुद्ध-धम्मगुणकणगदायगस्सेव। गुरुणो इह पत्थुयभाव-णाए दुलहत्तणं भणियं इय भावणाउ बारस, भद्दय ! संवेगसारचित्तेण । भावेसु भीमभवभित्ति-भंजणे करिघडाउ व्व जह जह दढप्पइण्णो, समणो वेरग्गभावणं कुणइ । तह तह असुहं सूराऽऽ-हयं व तिमिरं खयमुवेइ पइसमयभावणाभाव-णेण सब्भावनिब्भरं भविणो । मयणं व तिव्वतरजलण-संगमा गलइ चिरकम्म एइ न बंधं नवकम्मं, अवितहा भावणापहाणस्स । छिज्जंति चिन्भडुब्भङ-गंधा सुकुमारियाउ व्व अक्खंडचंडमायंड-किरणकवलियहिमोवलो व्व खयं । वच्चइ कम्मपबंधो, असुहो सुहभावणाहितो ता सुंदर ! दरमउलंत-लोयणो झाणजोगनिदाए । बारसगमऽसंगो भाव-णाण भावेसु भवभीओ इय बारसविहभावण-पडलपडिद्दारमेयमऽक्खायं । कित्तेमि सीलपालण-पडिदारं पण्णरसमेत्तो सीलं पुरिससहावो, सीलं चारित्तपालणं भणियं । आसवदारनिरोहा, अहवा सीलं मणसमाही पुरिससहावो य दुहा, पसत्थओ तह य अप्पसत्थो य । रागद्दोसाऽऽईहिं, कलुसो जो अप्पसत्थो सो होइ पसत्थो चित्तस्स, सरलया पयणुरागदोसित्तं । धम्माऽभिप्पाइत्तं च, एत्थ पगयं पसत्थेणं एयं सुपसत्थसहाव-लक्खणं सीलमऽविगलं जस्स। सो मूलगुणाऽऽधारो, धरिही सेसं पि गुणनियरं चयरित्तीकरणाओ, चारित्तं पुण भवे अणुढाणं । विहिपडिसेहाऽणुगयं, आसवविरईए तं च भवे जम्हा चरित्तपालण-लक्खणसीलस्स चेव वडिढकए। आसवनिरंभणपरं. इममवएसं दिसंति जहा इंदियदमणं काउं, कसायसेण्णं पि निम्महिय सव्वं । आसवदारनिरोहे, जइज्ज सइ निज्जरापेही ॥ ८९०४॥ ॥ ८९०५ ॥ ॥ ८९०६॥ ॥ ८९०७॥ ॥ ८९०८॥ ॥ ८९०९॥ ॥८९१०॥ ..॥ ८९११॥ ।। ८९१२॥ ।। ८९१३ ॥ ॥ ८९१४॥ ॥ ८९१५ ॥ ।। ८९१६॥ ॥८९१७॥ ॥ ८९१८॥ ॥ ८९१९॥ ॥ ८९२० ॥ ।। ८९२१ ॥ ॥ ८९२२॥ ।। ८९२३ ॥ ॥ ८९२४ ॥ ॥ ८९२५ ॥ ॥ ८९२६॥ ॥ ८९२७॥ ॥ ८९२८॥ ॥८९२९ ॥ ।। ८९३०॥ ।। ८९३१॥ ॥ ८९३२॥ ।। ८९३३ ॥ ।। ८९३४॥ ॥ ८९३५॥ ॥ ८९३६॥ ।। ८९३७॥ ॥ ८९३८॥ ॥ ८९३९ ॥ ૨૫૨

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