Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 257
________________ ॥८८३५॥ ॥८८३६॥ ॥ ८८३७॥ ॥८८३८॥ ॥८८३९ ॥ ॥ ८८४०॥ ॥८८४१॥ ॥८८४२॥ ॥ ८८४३ ॥ ॥८८४४॥ ॥ ८८४५॥ ॥८८४६॥ ॥८८४७॥ ताणि रयणाणि घेत्तुं, एज्जइ मे मंदिरम्मि इइ भणिउं। कंठे हठेण धरिलं, निच्छूढा निययगेहाओ कह ते पुणो वरागा, दूरदिसोक्गयवणियपासाओ। निक्यरयणाणि पावेंति, नूणं सुचिरं भमंता वि अहवा लभंति ते विहु कहिं पि रयणाई देवयाऽऽइवसा । बोही उन पब्मट्ठा, लब्भइ अच्वंतदुल्लंभा किंचजाहे य पावियव्वं, इहपरलोए य होइ कल्लाणं । ताहे च्चिय जिणभणियं, पडिवज्जइ भावओ धम्म जह जह दोसोवस्मो, जह जह विसएसु होइ वेरग्गं । तह तह विण्णयव्वं, आसण्णो बोहिलाभो त्ति दुग्गे भवकंतारे, भममाणेहिं सुइरं पि नटेहिं । इट्ठो जिणोवइट्ठो, सोग्गइमग्गो दढं दुलहो पत्ते वि हुमणुयत्ते, मोहस्सुदएण दुल्लहो सुपहो । कुपहबहुयत्तणेण य, विसयसुहाणं च लोभेण बहुमोल्लरयणनिहिलाभ-सण्णिहं पाविऊण तं तम्हा। मा तुच्छसुहाण कए, एमेव य निष्फलं नेसु लद्धाए दुल्लहाए वि, कहवि बोहीए एत्थ संसारे । दुल्लहो धम्माऽऽयरिओ, पयडं चिय जेण पेच्छ इमं रयणऽस्थिणो य थोवा, तद्दायारो य जह य लोगम्मि । इय सुद्धधम्मरयणऽत्थि-दायगा दढयरं नेया एत्थ य सत्थुत्तकसाऽऽइ-सुद्धधम्मस्स दायगा गुरुणो। साहुत्तणे जहुत्ते, ते पुण पावेंति सुगुरुत्तं . एत्तो च्चिय णिद्दिट्टो, विसिटुदिट्ठीहिं भावसाहु त्ति । हंदि पमाणठियत्थो, तं च पमाणं इमं होइ सत्थुत्तगुणो साहू, न सेस इइ.णे पइण्ण इह हेऊ । अगुणत्ता इति नेओ, दिलूडो पुण सुवण्णं व विसघाइ १.रसायण २ मंगलत्थ ३-विणिए ४ पयाहिणाऽऽवत्ते ५। गरुए ६ अडज्झ-७.ऽकुच्छे ८, अट्ठ-सुवण्णे गुणा होति . इय मोहविसं घायडू सिवोवएसा रसायणं होइ । गुणओ य मंमलत्थं, कुणइ विणीओ य जोगो त्ति मागऽणुसास्पियाहिण-गंभीरो गरुयओ तहा होइ । कोहऽग्गिणा अडज्झो, अकुच्छ सइ सीलभावेणं एवं दिट्ठन्तगुणा, सज्झम्मेि वि एत्थ होति नायव्वा । न हि.साहम्माऽभावे, पायज होइ दिटुंतो चउकारणपस्खुिद्धं कसछेयत्तावतालणाए या जंतं विसघाइरसा-यणाऽऽइगुणसंजुयं होइ. इयरम्मि कसाऽऽईया, विसिट्टलेसा तहेगसारत्तं । अवगारिणि अणुकंपा, वसणे अइनिच्चलं चित्तं तं कसिणगुणोवेयं, होइ सुवण्णं न सेसयं जुत्ती । न वि नामरूवमेत्तेण, एक्मऽगुणो भवइ साहू जुत्तीसुवण्णगं पुण; सुवण्णवण्णं पि जइ वि कोरेज्जा । न हु होइ तं सुवण्णं, सेसेहिं गुणेहिं असंतेहिं जे इह सत्थे भणिया, साहुगुणा तेहिं होइ सो साहू । वण्णेणं जच्चसुवण्ण-गं व संते गुणनिहिम्मि जो साहुगुणरहिओ, भिक्खं हिंडइ न होइ सो साहू । वण्णेणं जुत्तिसुवण्ण-गं वासंते गुणनिहिम्मि उद्दिटुकडं भुंजइ, छक्कायपमद्दणो घरं कुणइ । पच्चक्खं च जलगए, जो पियइ कहं नु सो साहू अण्णे उ कसाऽऽईया, किल एए एत्थ होति नायव्वा । एयाहि परिक्खाहिं, साहुपरिक्खेह कायव्वा तम्हा जे इह सत्थे, साहुगुणा तेहि होइ सो साहू । अच्चन्तसुपरिसुद्धेहिं, मोक्खसिद्धित्ति काऊणं इय मोक्खसाहगगुणाण, साहणा देसिओ य जो साहू। धम्मोवएसगिरणा, सो चेव गुरू वि ता एत्तो नीसेससाहुगुणरयणाऽ-लंकियतणुस्स वि गुरुस्स । सविसेसमऽसेसजणं, विबोहिउं भण्णइ परिक्खा सा पुण परलोयपरंमुहस्स, इहलोगबद्धबुद्धिस्स । सद्धम्मवासणाविर-हियस्स विसओ न होइ तहा लोइयठिईए जो वि य, जणणीजणए वि देवयब्भूए । दुपरिच्चए चइत्ता, निस्सीकाऊण कं पि नरं सुयविमुहो गडरिया-पवाहमेत्ताऽणुसारिचरिओ य। धम्मऽत्थी वि सबुद्धीए, कट्ठाऽणुट्ठाणविहियरुई मग्गं पि चरिउकामो, चरमाणो वा मुणी तहारूवो। तस्स वि न चेव जायइ, विसओ एसा गुरुपरिक्खा भावियभवनेगुण्णस्स, जंतुणो जायभवविरागस्स । सद्धम्मपरूवगगुरु-गवेसिणो नणु इमा विसओ ता भवभयभीएणं, भविणा सद्धम्मबद्धलक्खेणं । धणवं व दरिद्देणं, तरंडमिव जलहिपडिएण ॥ ८८४८॥ ॥ ८८४९॥ ॥ ८८५०॥ ॥८८५१॥ ॥८८५२॥ ॥८८५३॥ ।। ८८५४॥ ॥८८५५॥ ॥८८५६॥ ॥८८५७॥ ।।८८५८॥ ॥ ८८५९॥ ॥८८६०॥ ॥८८६१॥ ॥८८६२॥ ॥८८६३ ॥ ॥८८६४ ॥ ॥ ८८६५ ॥ ॥ ८८६६॥ ॥८८६७॥ ॥८८६८॥ ૨૫૦

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