Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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सद्धपणुवीसजणवय-मेत्तं चिय खित्तमाऽऽरियं जं च । तत्थ वि साहुविहारो, कहिपि कइया वि जं भणियं रायगिह मगह १ चंपा, अंगा २ तह तामलित्ति वंगा य ३ । कंचणपुरं कलिंगा ४, वाणारसि चेव कासी य५ ॥८८०५ ॥ साएय कोसला ६ गय-पुरं च कुरु ७ सोरियं कुसट्टा य ८। कंपिल्लं पंचाला ९, अहिछत्ता जंगला चेव १० ॥८८०६ ॥ बारवती य सुद्धा ११, मिहिल विदेहा १२ य वच्छ कोसंबी १३। नंदिपुरं संडिब्भा(ला)१४, भद्दिलपुरमेव मलया य १५ ।
॥८८०७॥ वइराडवच्छ १६ वरणा, अच्छा १७ तह मत्तियावइ दसण्णा १८। सोत्तीमइ य चेई १९, वीइभयं सिंधुसोवीरा २०।। ८८०८॥ महुरा य सूरसेणा २१, पावा भंगी २२ य मासपुरि वट्टा(च्छा)? २३ । " सावत्थी य कुणाला २४, कोडीवरिसं च लाढा य २५
॥८८०९॥ सेयविया वि य णयरी, केइयअद्धं च आरियं २६ भणियं । एत्थुप्पत्ती जिणाणं, चक्कीणं रामकण्हाणं ॥८८१०॥ पुव्वेण अंगमागह-विसयं अह दाहिणेण कोसंबी। अवरेण (घू)थूणविसओ, कुणालविसयं च उत्तरओ ॥८८११॥ एयं आरियखेत्तं, एत्थ विहारो उ कप्पइ जईणं । बाहिं पुण नो कप्पइ, जत्थ च नाणाऽऽइ नोसप्पे
॥८८१२॥ जत्थ उण नेय मुणिणो, सम्मण्णाणाऽऽइगुणरयणनिहिणो। विहरंति वयणकिरणेहि, हणियमिच्छत्ततमपसरा ॥८८१३॥ तम्मि पयंडपासंडि-मंडलीचंडवयणपवणेहिं । निरु रूयपूणिया इव, पणोल्लिया दुल्लहा बोही
॥८८१४॥ इय भो देवाणुपिया!, नाउं बोहीए परमदुलहत्तं । चिरकालभीमभवभमणओ तयं पाविऊणं च
॥८८१५॥ तह कहवि तए किच्चं, निच्चं अच्चाऽऽयरेण जह तीए । लद्धाए तुडिवसेणं, साफल्लं जायए जम्हा
॥८८१६॥ लद्धेल्लियं च बोहिं, अकरेंतोऽणागयं च पत्थितो। अण्णं दाई बोहिं, लब्भिसि कयरेण मोल्लेण
॥८८१७॥ किंचकत्थइ सुहं सुरसमं, कत्थई निरओवमं महादुक्खं । कत्थइ तिरियाऽऽईणं, दहणंऽकणपमुहमऽवि असुहं ॥ ८८१८॥ दळूण वि नियदिट्ठीए, किंचि किंचि वि परोवएसेणं । नाऊणं पि हुमूढा, म बोहिमऽणहं पवज्जंति
॥ ८८१९ ॥ जह नाम पट्टणगया, मोल्ले सन्ते वि मूढभावेण । न लहंति नरा लाभं, नरभवपत्ता वि तह बोहिं
॥८८२० ॥ तहाचिंतामणि व मूढा, सब्भावपरिक्खणं अयाणंता। कहमऽवि लद्धं पि हु बोहि-मुत्तमं झत्ति उज्झंति
॥ ८८२१ ॥ गयबोहिणो य पुणरवि, गवेसमाणा वितं ण पावेंति । वणियंऽतरदिण्णाई, रयणाई वणियपुत्त व्व
॥८८२२॥ तथाहिएगम्मि महानगरे, महिब्भजणसंकुले कलाकुसलो। वसइ सिवदत्तनामो, सेट्ठी सुपसंतनेवत्थो
॥८८२३॥ तस्स य जरभयपिसाय-साइणीपमहदोसहरणाणि । पायडपहावकलियाणि, संति विविहाणि रयणाणि
॥८८२४॥ ताणि य सो जीवियमिव, महानिहाणं व रक्खइ सया वि । दंसइ जहा तहा नेव, निययपुत्ताऽऽइयाणं पि ॥ ८८२५॥ अह तत्थ पुरे एगत्थ, ऊसवे जत्तियाउ कोडीउ। अत्थस्स जस्स तेणं, इब्भेणं तेत्तियधयाओ
॥८८२६॥ उब्भवियाओ नियनिय-धवलहरऽग्गेसु ससहरसियाओ। ताओ य पलोइत्ता, भणिओ पुत्तेहिं सो सेट्ठी ॥८८२७॥ विक्किणसु ताय ! रयणाई, कुणेसु अत्थं इमेहि किं कज्जं । कोडिज्झएहि गेहं, अम्हं पि हु सोहमुव्वहउ ॥८८२८॥ रुद्रुण सेट्ठिणा जंपियं तओ रे! पुणो वि मा एवं । भासेज्जह मह पुरओ, इमाई न कहं पि विक्केमि
॥८८२९ ॥ एवमुवलद्धतण्णिच्छएहिं पुत्तेहिं मोणमऽह विहियं । सेट्ठी वि कज्जवसओ, वीसत्थमणो गओ गामं
॥८८३०॥ पुत्तेहि बि विजणं जाणिऊण, अविमरिसियऽण्णकज्जेहिं । दूरदिसाऽऽगयवणियाण, ताणि रयणाणि दिण्णाणि ॥८८३१ ।। तविक्कयपत्तपभूयदव्व-कोडिअणुरूवसंखाए । संखधवलाउ गेहे, उब्भविया उधयवडा तो
॥ ८८३२॥ केवइकालाउ आगयो य, सेट्ठी पलोइउं गेहं। विम्हइयमणो सहसा, पुच्छइ पुत्ते किमेयं ति
॥८८३३॥ सिट्ठो य तेहिं सव्वो, वुत्तंतो तो दढं परुटेणं । निठुरगिराहि सुचिरं,निब्मच्छित्ता अतुच्छाहिं
॥८८३४॥
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