Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

View full book text
Previous | Next

Page 260
________________ इंदियकसायहणणा, हणिय च्चिय आसवा जओ होइ । अहियाऽऽहारे मुक्के, रोगा इव आउरजणस्स एत्तो च्चिय सव्वेसु वि, जिएसु वटुंति अप्पए व्व मुणी। न य एत्तो वि उवाओ, अण्णो विज्जइ सुगइलाभे ता नाणज्झाणेहि, तवोबलेण य बला निलंभित्ता । सव्वाऽऽसवदाराई, धारेज्जा अविगलं सीलं तह मणसमाहिलक्खण-मऽवि सीलं मोक्खसाहणगुणाणं । जाणाहि मूलकारण-भूयं जम्हा सुए भणियं जस्स धिई तस्स तवो, जस्स तवो तस्स सोग्गइ सुलहा । जे अधिइमंतपुरिसा, तवो वि खलु दुल्लहो तेसिं किंच मणवयणकाया, जे भणिया करणसण्णिया तिण्णि । ते धितिमंतस्स गुणाय, होति दोसाय इयरस्स तम्हा पुरंधिपडिबंध-बंधणं दुहनिबंधणं धुणिउं। सामण्णं पडिवण्णा, धण्णा भवभवणनिविण्णा धण्णा सत्तहियाई, सुणंति धण्णा करेंति निसुयाई। धण्णा सोग्गइमग्गे, रमंति सीले गुणुप्पीले सण्णाणवायसहितो, सीलुज्जलिओ विगिट्ठतवजलणो। संसारमूलबीयं, दहइ दवऽग्गी व तणरासिं निम्मलसीलधराणं, इहलोए चेव तह य परलोए। गउरवमुवेइ अप्पा, परमप्पा एस चेव त्ति अच्चंतमहाघोरा वि, आवया सच्चसंधणपरेहिं । लीलाए नित्थरिज्जइ, सोच्छाहं सीलबलिएहिं सीलसमलंकियाणं, मरणं पि वरं खु तक्खणा चेव। चिरजीवियं पि मा पुण, सीलाऽलंकारचुक्काणं वरमऽरिघरेसु भिक्खा, अभिक्खणं भमडिया सुसीलेणं । चक्कित्तणं पि मा पुण, परिमलियविसालसीलस्स। गरुयगिरितुंगसिंगा, वरंखु विसमे कहिं पि पडिऊण । दढकढिणपत्थरंऽतो, अप्पा सयसिक्करं नीओ परिकुवियफारफुकार-घोररुहिराऽरुणऽच्छिदुप्पेच्छे। वरमऽहिमुहम्मि हत्थो, पक्खित्तो तिक्खदसणम्मि गयणविसप्पणदुप्पेच्छ-पचुरजालाकलावकलियम्मि। वरमऽप्पा पक्खित्तो, खयऽग्गिकुंडे पयंडम्मि मत्तकरिकरडपुडपाडणेक्क-दप्पिट्ठदुट्ठकेसरिणो । वरमाऽऽणणे पवेसो, सुतिक्खदढदाढकढिणम्मि मा पुण सुदीहकालं, परिवालियविमलसीलरयणस्स । हे वच्छ! तए भवसुह-कएण विहिओ परिच्चाओ सीलाऽलंकाराऽलं-किओ हु अधणो वि होइ जणपुज्जो। दुस्सीलो पुण धणवंतओ वि सयणेसु वि न पुज्जो विमलं सीलं पालितगाण, चिरकालजीवियं होउ। पावाऽऽसत्ताणं पुण, न किंचि चिरजीवियव्वेण ता भो धम्मगुणाऽऽगर!, गरलं व वमित्तु दुट्ठसीलत्तं । आराहणाकयमणो, मणहरहरिणंऽककरविमलं हयभववंसकरीलं, चित्तचमक्कियसुराऽसुरुप्पीलं। सिवपुरनिवेसकीलं, परिवज्जियजीवपरिपीलं कुगइपहविहियहीलं पावपवित्तीए कयगयनिमीलं । परमपयललणलीलं, परिपालसु निम्मलं सीलं सीलपरिपालणादार-मेवमक्खायमिण्हि सोलसमं । इंदियदमाऽभिहाणं, पडिदारं किंपिदंसेमि इंदो जीवो तस्स उ, इमाणि तेणिदियाणि भण्णंति । नाणाऽऽइगुणसिरीए, स पुण जिओ ललणपासादो तस्स गवक्खाऽऽइपभूय-दारकप्पाणि इंदियाणि धुवं। नियनिययविसयविरमण-कवाडविरहेण पुण तेसु पविसन्तपउरकुवियप्प-कप्पणापावपंसुपूरेण । ओमइलिज्जइ जोण्हु-ज्जला वि नाणाऽऽइगुणलच्छी अहवा अनिरुद्धिदिय-दारे पविसित्तु जीवपासाए। हयविसयचंडचरडा, नाणाऽऽइसिरिं अवहरंति एवमऽवगम्म सम्म, तस्संरक्खणकए कयपयत्तो। सव्वेंदियदाराई, सुनिरुद्धाइं धरसु धीर! ससमयपरसमयमया-ऽवगाहगरुयं पि पंडियं पि नरं। बलवं इंदियगामो, गंजइ अनिरुद्धपडिपसरो धरउ वयं चरउ तवं, सरउ गुरुं झरउ सुत्तअत्थे वि। इंदियदमपरिहीणस्स, तस्स तुसकंडणं सव्वं मयचंडगंडमंडल-करडिघडाविहडणेक्कपडुओ वि । जइ नेव इंदियजई, ता सो च्चिय कायरो पढमो ताव च्चिय गरुयत्तं, ताव च्चिय भुवणभूसणा कित्ती । संभावणा वि पुरिसस्स, ताव जाविदियाणि वसे अह सो च्चिय ताण वसे, जायइ जइ ता कुले जसे धम्मे । संघे गुरुसुहिवग्गे, देइ मसीकुच्चयमऽवस्सं दीणत्तमऽणादेयत्तणं च, सव्वाऽभिसंकणीयत्तं । किं किं तमऽणिटुं जं, इंदियवसगा न पावेंति . भिज्जइ गिरि वि सिरसा, पिज्जइ जालाकरालजलणो वि । खग्गऽग्गे वि चरिज्जइ, दुदमा पुण इंदियतुरंगा ।। ८९४०॥ ॥८९४१ ॥ ॥ ८९४२ ॥ ॥ ८९४३॥ ।। ८९४४॥ ॥८९४५॥ ॥८९४६॥ ॥ ८९४७॥ ॥८९४८॥ ॥ ८९४९ ॥ ॥ ८९५०॥ ॥ ८९५१॥ ॥ ८९५२ ॥ ॥ ८९५३॥ ॥ ८९५४ ॥ ॥८९५५ ॥ ॥ ८९५६॥ ॥ ८९५७ ॥ ॥८९५८ ॥ ॥ ८९५९ ॥ ॥ ८९६०॥ ॥८९६१ ॥ ॥ ८९६२ ॥ ।। ८९६३॥ ॥ ८९६४॥ ॥८९६५ ॥ ॥ ८९६६॥ ॥ ८९६७॥ ॥ ८९६८॥ ।। ८९६९॥ ॥ ८९७०॥ ।। ८९७१ ॥ ॥ ८९७२ ॥ ॥ ८९७३॥ ॥८९७४॥ ॥ ८९७५ ॥ ૨૫૩

Loading...

Page Navigation
1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378