Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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अब्भिन्तरबाहिरयं, कुणसु तवं वीरियं अगूहेंतो। वीरियनिग्गही बंधइ, मायं विरियंतरायं च
।। ९११९॥ सुहसीलयाए अलस-तणेण देहपडिबद्धयाए य । सत्तीए तवमऽकुव्वं, निव्वत्तइ मायमोहणियं
॥ ९१२० ॥ सुहसीलयाए जीवा, तिव्वं बंधतऽसायवेयणियं । अलसत्तणेण बंधइ, चरित्तमोहं च मूढमई
॥९१२१॥ देहपडिबंधओ पुण, परिग्गहो होइ ता विवज्जित्ता । सुहसीलयाऽऽइदोसे, तवम्मि निच्चं पि उज्जमसु ॥ ९१२२ ॥ तवमऽकुणंतस्सेए, जहसति साहणो भवे दोसा । तं कुणमाणस्स पुणो, इह परलोगे य होंति गुणा
॥ ९१२३ ॥ कल्लाणिड्ढिसुहाई, जावइयाइं भवे सुरनराणं । परमं च निव्वुइसुहं, एयाति तवेण लब्भंति
॥९१२४ ॥ तथा दुरियगिरिकुलिसदंडं, रोगुब्भडकुमुयसंडमायंडं। कामकरिहरिपयंडं, भवसागरतरणतरकंडं
॥ ९१२५ ॥ दक्कियकुगइदुवारं, दावियमणवंछियऽत्थसंभारं। कयजयजसप्पसारं, सारं एक्कं तवं बेंति
।। ९१२६॥ एयं नाऊण तुमं, महागुणं संजमित्तु मणपसरं । सरहसमऽणुदिवसं चिय, तवसा भावेसु अप्पाणं
।। ९१२७॥ नवरं जह न तणुपीडा, न याऽवि चियमंससोणियत्तं च । जह धम्मझाणवुड्ढी, तह खवग ! इमं करेज्जासु ||९१२८॥ तवनामप्पडिदारं, परूवियं संपयं समासेण । निस्सल्लयपडिदारं, अट्ठारसमं पि साहेमि
॥९१२९॥ निस्सल्लस्सेव गुणा, भवंति हे खवग! सल्लमऽवि तिविहं । जाणसु नियाणमाया-मिच्छादसणवियप्पेहि ॥ ९१३०॥ तत्थ नियाणं तिविहं, रागद्दोसेहिं मोहओ चेव । रागेण रूवसोहग्ग-भोगसुहपत्थणारूवं
।। ९१३१ ॥ दोसेण पइभवं पि हु, परमारणऽणिट्ठकरणरूवं तु । धम्मऽत्थं हीणकुलाऽऽइ-पत्थणं मोहओ होइ
।। ९१३२ ॥ अहव नियाणं तिविहं, होइ पसत्थाऽपसत्थभोगकयं । तिविहं पितं नियाणं, वज्जेयव्वं तए तत्थ
॥ ९१३३॥ संजमहेउं पुरिसत्त-सत्तबलविरियसंघयणबुद्धी। सावयबंधुकुलाऽऽइसु, होइ नियाणं पसत्थमिणं
॥ ९१३४ ॥ सोहग्गजाइकुलरूव-माऽऽइआयरियगणहरजिणत्तं । पत्थंते अपसत्थं, माणेणं नंदिसेणे व्व
॥ ९१३५ ॥ कोहेण परवहं जो, मरिउं पत्थेइ तस्स अपसत्थं । बारवईविणासनिबद्ध-बुद्धिदीवायणस्सेव
॥ ९१३६ ॥ देवियमाणुसभोए, राईसरसेट्ठिसत्थवाहत्तं । हलधरचक्कधरतं च, पत्थमाणस्स भोगकयं
॥ ९१३७ ॥ पुरिसत्ताऽऽइनियाणं, पसत्थमऽविजं निवारियं एत्थ । तं निरऽभिसंगमुणिणो, पडुच्च णेयं न उण इयरे ॥ ९१३८॥ दुक्खक्खयकम्मक्खय-समाहिमरणं च बोहिलाभो य । एमाऽऽइपत्थणं पि हु, साऽभिस्संगाण संभवइ ॥९१३९॥ संजमसिहराऽऽरूढो य, विहियदुक्करतवो तिगुत्तो वि। अवगण्णिऊण सिवसुह-मऽसमं पिपरीसहाऽभिहओ ॥९१४० ॥ एवं नियाणबंधं, जो कुणइ सुतुच्छविसयसुहहेउं । सो कायमणिकएणं, वेलियमणि पणासेइ ॥ ९१४१ ॥ मुहमहुरमंऽतविरसं, भोत्तुं च सुहं नियाणवसलद्धं । नरयाऽवडम्मि निवडइ, बहुदुक्खे बंभदत्तो व्व
॥ ९१४२॥ तथाहि साकेयम्मि पुरवरे, आसि चंडावडेंसओ राया। मुणिचंदो से पुत्तो, सो पुण संजायवेरग्गो
॥ ९१४३ ॥ सायरचंदमुर्णिदस्स, अंतिए गेण्हिऊण पव्वज्जं । सुत्तत्थेऽहिज्जतो, दुक्करतवकम्ममाऽऽयरइ
॥ ९१४४॥ वच्चंतो य कहं पिह, गुरुणा सह दूरदेसमऽभिसरिठं । भिक्खदाइ पविट्ठो, गामे मुक्को य सत्थेण
।। ९१४५॥ एगागी वि पयट्टो, गंतुं पडिओ य कहवि अडवीए । तण्हाछुहापरिस्सम-वसेण बाढं किलंतो य
॥ ९१४६ ॥ गोवालदारगेहि, चउहिं परिपालियो पयत्तेण । जाओ पगुणसरीरो, सिट्ठो धम्मो य तेणेसिं
॥ ९१४७॥ पडिबुद्धा ते सव्वे, जाया सिस्सा य तस्स साहुस्स । कुव्वंति समणधम्मं, नवरं काउंदुगुंछं दो
॥ ९१४८॥ मरिऊण देवलोए, पत्ता देवत्तणं तवपहावा । कालक्कमेण तत्तो, चइऊणं दसपुरे नगरे
॥ ९१४९॥ संडिलदिएण जइमइ-दासीए जमलगा सुया जाया। बुद्धिबलजोव्वणेहिं, कमेण समलंकिया ते य
।। ९१५०॥ छेत्तस्स रक्खणट्ठा, अडवीए गया णिसिठ्ठम्म य पसुत्ता । वडविडविणो तलम्मि, डक्का य तहिं भुयंगेण ॥ ९१५१॥ पडियरणाऽभावम्मि य, मरिउं जमलत्तणेण दो वि मिगा। कालिंजरम्मि जाया, नेहेण समं चिय चरंता ॥ ९१५२॥
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