Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 266
________________ पारद्धिमवगएणं. लोद्धणं एक्ककंडघाएणं । हणिऊण दो विकीणास-मंदिरं पेसिया विवसा तत्तो गंगातीरे, हंसा जमलत्तणेण संवुत्ता । तत्थ वि य धीवरेणं, बद्धा एक्केण पासेण विणिवाइया य वलिऊण, कंधरं तेण निद्दयमणेण । तत्तो पुरीए वाणारसीए मायंगअहिवइणो बहुधणधण्णसमिद्धस्स, भूयदिण्णस्स दो वि ते पुत्ता । उववण्णा दढपणया, नामेणं चित्तसंभूया अह अण्णया कयाई, तीए पुरीए निवेण संखेण । नमुई नाम अमच्चो, पत्ते गरुयाऽवराहम्मि लोगाऽववायगोवण-कएण पच्छण्णवज्झयाऽऽएसो। कुविएणं उवणीओ, पाणाऽहिवभूयदिण्णस्स वज्झट्ठाणं नीओ, तेणं वुत्तो य जइ सुए मज्झ । पाढसि भूमिहरठिओ, ता तं मुंचामि अहयं ति जीवियमिच्छंतेणं, पडिवण्णमिमं च तेण तो पुत्ते । पाढेउं आढत्तो, नवरं पम्मुक्कमज्जाओ तज्जणणीए सद्धि, अच्छंतो इंगियाऽऽइकुसलेण । जारो त्ति मुणिय पाणाऽ-हिवेण मारेउमाऽऽरद्धो उवयारि त्ति वियाणिय, परमत्थेहि व तस्स एगंते। नियपिउणो अभिप्पाओ, सिट्ठो संभूयचित्तेहिं तत्तो निसाए नट्ठो, गओ य नगरम्मि हत्थिणागपुरे। जातो य तहि मंती, चक्किस्स सणंकुमारस्स तेहिं पुण पाणपुत्तेहिं, गीयनट्टाऽऽइएसु कुसलेहि। अच्चंतं हयहियओ, विहिओ वाणारसीलोगो अह अण्णया पयट्टे, पुरीए तियचच्चरेसु मयणमहे । गिज्जंतीसुं विविहासु, चच्चरीसु पुरंधीहि नच्चंतेसं तरुणी-यणेस ते तत्थ चित्तसंभूया। नियचच्चरिमज्झगया, गाइउमऽच्चंतमाऽऽरद्धा गेएणं नट्टेण य, अक्खित्तमणो जणो गओ तेर्सि। सव्वो वि समीवम्मि, विसेसओ पउरतरुणीजणो तत्तो ईसावसओ, चाउव्वेज्जाऽऽइपउरलोगेण । विण्णत्तो महिनाहो, देव ! पुरीए जणो सव्वो एएहिं पाणपुत्तेहिं, संचरतेहिं मुक्कपरिसंकं । एगाऽऽगारो विहितो त्ति, तो नरेंदेण नगरीए तेसिं पवेसो पडिसेहिओ त्ति अवरम्मि नवरि पत्थावे। जायम्मि कोमुइमहे, अवगणिय सासणं रण्णो लोलिदियत्तणेणं, कोऊहलओ य विहियसिंगारा । ते नगरीए पविट्ठा, ठाऊण य एगदेसम्मि अंसुयकयमुहकोसा, हरिसेणं गाइउं समाढत्ता । परिवारिया य लोगेण, गेयअवहरियहियएण अच्वंतसुस्सरा के, इमे त्ति वत्थे मुहाओ अवणीए । विण्णाया ते एए, मायंगसुय त्ति कुविएण लोगेण तओ हण हण, हण त्ति परिजंपिरेण निस्सटुं । सव्वत्तो पारद्धा, हंतुं जट्ठिट्टगाऽऽइहिं कहकहवि हम्ममाणा, विणिग्गया ते य नयरिमज्झाओ। संचितिउं पवत्ता, अच्चंतं जायसंतावा धी! अम्ह जीविएणं, रूवाऽऽइसमग्गगुणगणेणं पि। जे निंदियजाइवसा, एवं हीलापयं जाया तो वेग्गोवगया, अकहित्ता सयणबंधवाऽऽईणं । मरणकयनिच्छया ते, दाहिणहुत्तं लहु पयट्टा वच्चंतेहिं य तेहिं, दिट्ठो एगत्थ गिरिवरो तुंगो । मरणत्थमाऽऽरुहंतेहि, तत्थ एगत्थ सिहरम्मि घोरतवकिसियकाओ, धम्मज्झाणे परम्मि वट्टन्तो। उस्सग्गगओ साहू, पलोइओ हरिसियंऽगेहिं भत्तीए वंदिओ सो, मुणिणा वि हु जोग्गयं णिएऊण । झाणस्स समत्तीए पुट्ठा कत्तो भवंतो त्ति तेहि पि पुव्ववुत्तंत-कहणपुव्वो सचित्तसंकप्पो। गिरिपडणमरणरूवो, निवेइओ तस्स साहुस्स तत्तो मुणिणा भणियं, महाऽणुभावा ! अजुत्ततरमेयं । जइ सच्चं उब्विग्गा, ता जइधम्मं समायरह पडिवण्णं तेहिं तओ, दिण्णा दिक्खा तवस्सिणा तेसिं । जोग त्ति मुणिय अवितह-अइसयनाणोवलंभेण कालक्कमेण जाया, गीयत्था अह कहं पि विहरंता । दुक्करतवकरणपरा, संपत्ता हत्थिनागपुरे एगत्थ काणणम्मि, वुत्था मासस्स पारणगदिवसे। संभयमणी नगरे, भिक्खट्टाए अह पविट्ठो दिट्ठो य नमुइणा सो, नाओ य तओ महं इमो कहिही । दुव्विलसियं जणाणं ति, गाढकुवियप्पवसगेण नियपुरिसे पेसित्ता, जट्ठीमुट्ठीहिं हणिय णिस्सटुं। निद्धाडिओ पुराओ, तो मुणिणो निरऽवराहस्स उग्गयपयंडकोवस्स, पुरिसदहणट्ठया मुहाहितो । नीहरिठं आरद्धा, तेउलेसा महाभीमा ॥ ९१५३ ।। ॥ ९१५४॥ ॥ ९१५५ ॥ ॥ ९१५६॥ ॥ ९१५७॥ ॥ ९१५८॥ ॥ ९१५९॥ ॥ ९१६०॥ ।। ९१६१॥ ॥ ९१६२॥ ॥ ९१६३ ॥ ॥ ९१६४॥ ॥ ९१६५ ॥ ॥९१६६॥ ॥ ९१६७॥ ॥९१६८॥ ॥ ९१६९ ॥ ॥ ९१७० ॥ ॥ ९१७१ ॥ ॥९१७२॥ ॥ ९१७३ ॥ ॥ ९१७४ ॥ ॥ ९१७५॥ ॥९१७६ ॥ ॥ ९१७७॥ ॥ ९१७८ ॥ ॥ ९१७९॥ ॥ ९१८० ॥ ॥ ९१८१ ॥ ॥ ९१८२॥ ॥ ९१८३ ।। ॥ ९१८४॥ ॥ ९१८५ ॥ ॥ ९१८६॥ ॥ ९१८७॥ ॥९१८८॥ ૨૫૯

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