Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 262
________________ अह तं चिबिडियनासं, बीभच्छुटुं दंतुरं मडहवच्छं। पेच्छित्ता हं दिदै, रूवेण वि गेयमेयस्स इय जंपिरीए तीए, निच्छूढं दूरवलियवयणाए। सुत्तुट्ठियस्स एयं, कुसीलवेहिं च सिटुं से सोऊण इमं सो कोव-दावनिद्दज्झमाणसव्वंऽगो। हद्धी ! सा वि हयाऽऽसा, वणिणो गिहिणी ममं हसइ इय असरिसअमरिसवस-विस्सुमरियनिययसव्ववावारो। अवयारं काउमणो, तीए गेहम्मि संपत्तो पारद्धो य कलगिरं, पउत्थवइयानिबद्धवित्तंतं । अच्चन्तमाऽऽयरेणं, गाइउमेवं जहा तुज्झ पुच्छइ वत्तं सत्थाऽ-हिवो दढं पेसइ सया लेहं । तुह नामग्गहणेणं, परं पमोयं समुव्वहइ । तुह दंसणूसुओ एस, एइ इण्डिं गिहम्मि पविसइ य । एमाऽऽइ तह कहं पि हु, तेणं गीयं पुरो तीसे जह सा सव्वं सच्चं, इमं ति एइ य पई त्ति मण्णंती । अब्भुट्टिउं विमुंचइ, आगासतलाओ अप्पाणं अइउच्चभूमिगावडण-घायसंजायजीयनीहरणी। जिणमज्जणसमए हरि-तणु व्व पंचत्तमऽणुपत्ता कालक्कमेण तीसे, समागओ निसुणिउं पई वत्तं । मुणिउंच पईवत्तं, अच्चन्तं पुष्फसालस्स सो वाहराविऊणं, विसिट्ठतरभोयणेण आकंठं। भुंजाविऊण वुत्तो, गायंतो भद्द ! पासायं आरोहसु त्ति तो सो, अच्चन्तं गाढगेयदप्पेण । गायतो आरूढो, भवणोवरि सव्वसत्तीए अह गेयपरिस्समवड्ढमाण-वेगुड्ढसासफुट्टसिरो। निहणं गओ वरागो, सोइंदियमिय महादोसं चक्खिंदियदोसे पुण, आहरणं पउमसंडनगरम्मि। अणुभवइ रज्जलच्छिं, नामेण निवो समरधीरो जणणि व्व परकलत्तं, परकीयधणं तणं व जस्स सया। परकज्जं णियकज्जंव, आसि नीसेसनयनिहिणो सरणाऽऽगयरक्खणदुक्खि-यंऽगिउद्धरणधम्मकिच्चेसु । वढेंतं चिय नियजीवियं पि बहुमण्णियं जेण तस्सेगम्मि अवसरे, सुहाऽऽसणत्थस्स सणियमाऽऽगंतुं । विण्णत्तं पडिहारेण, सायरं कयपणामेण देव! तुह पायपंकय-पलोयणत्थं समागओ बाहिं । चिट्ठइ सिवसत्थाहो, आगच्छउ एत्थ गच्छउ वा रण्णा वुत्तं एउत्ति, तो पविट्ठो कयप्पणामो य । उचियाऽऽसणमाऽऽसीणो, सो भणिउमिमं समाढत्तो देव! मह अस्थि धूया, उम्माइणिणामिया विसालऽच्छी । रूवोहामियरंभा, सुजोव्वणा पव्वणिंदुमुही सा य विलयाण मज्झे, रयणब्भूया तुमं च रयणाण । नाहो सि ता तुममिमं, गिण्हसु जइ देव! पडिहाइ तुज्झ अनिवेइऊणं, कण्णारयणे परस्स दिज्जंते । का होइ सामिभत्ति त्ति देव ! साहिज्जए तुम्ह अम्मापिउणो सलहिति, सच्चमऽच्चन्तनिग्गुणाई पि। निययाऽवच्चाई परं, अण्ण च्चिय चंगिमा तीए तथाहि जम्मणभवणऽब्भन्तर-मिमीए देहेण जम्मसमए वि । विज्जुज्जोएणं पिव, सज्जो उज्जोइयमऽसेसं एयमऽवलोइउं पिव, उच्चट्ठाणं ठिया गहा वि फुडं। एवं च देव ! तीए, न तुमाहिन्तो पई होइ एवं मुणिऊण नराऽहिवेण, अच्चन्तविम्हियमणेण । तीसे पलोयणट्ठा, पच्चइया पेसिया पुरिसा सत्थाहेणेव समं, गया य ते मंदिरम्मि दिट्ठा सा। अच्छरियब्भूएण य, रूवेणं तीए अक्खित्ता मत्त व्व मुच्छिया इव, अवहडहियय व्व गमिय खणमेकं । एगते ठाऊण य, मंतिउमेवं समाढत्ता विजियऽच्छरमऽच्छरियं, किंपि इमीए सुरूवनेवत्थं । परिणयवया वि जीए, वयमेवं मोहमुवणीया अम्हारिसा वि परीणयवया वि, जइ दंसणे वि एईए। एवंविहं अवत्थं, पत्ता ता वसुमइनाहो नवजोव्वणाऽभिरामो, निरंकुसो सयलसंपयाऽऽवासो। अजिइंदिओ कहं नो, एईए वसा भवे विवसो विवसत्ते एयस्स य, कहं न रज्जं दढं विसीएज्ज । तत्थ य विसीयमाणे, अजहत्थं भूमिनाहत्तं इय नाऊण वि रण्णो, वयंसहत्थेणिमं उवणमिता। कह नो समत्थभाविर-दोसाणं कारणं होमो ता किंपि कहिय दोसं, इमीए वावत्तिमो महीनाहं । पडिवण्णं सव्वेहिं वि, गया य रण्णो समीवम्मि धरणियलचुंबिणा मत्थएण सव्वाऽऽयरं कयपणामा। ओणमियसीसवीसंत-पाणिणो भणिउमाऽऽढत्ता ॥९०१२॥ ॥ ९०१३॥ । ९०१४ ॥ ॥ ९०१५॥ ॥ ९०१६॥ ।। ९०१७॥ ॥ ९०१८॥ । ९०१९॥ ॥ ९०२०॥ ॥९०२१ ॥ ॥ ९०२२ ॥ ॥ ९०२३॥ ॥९०२४॥ ॥ ९०२५ ॥ ॥९०२६ ॥ ॥ ९०२७॥ ॥ ९०२८॥ ॥ ९०२९ ॥ ॥ ९०३०॥ ॥ ९०३१॥ ॥ ९०३२॥ ॥ ९०३३॥ ॥९०३४॥ ॥ ९०३५ ।। ॥९०३६ ॥ ॥९०३७॥ ॥९०३८॥ ॥९०३९ ॥ ॥९०४०॥ ।। ९०४१॥ ॥९०४२ ॥ ॥९०४३ ॥ ॥९०४४॥ ॥९०४५ ॥ ॥९०४६॥ ૨૫૫

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