Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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इय इहलोए वि भवंति, पाणिणो गाढसोयगहगहिया। एवंविहाणऽणत्थाण, भायणं अमुणियसरूवा परलोए पुण असुई-जुगंछणुब्भूयपावपसरेण। पावेंति हीणजोणीसु, णेगसो जम्ममाईणि ता खवग ! देहविसयं, असुइत्तं सव्वहा वि मुणिऊणं । परमसुइत्तनिमीत्ते, धम्मे च्चिय उज्जमं कुणसु अण्णे उ पत्थुयम्मि, एत्थं असुइत्तभावणाठाणे । असुहत्तभावणं उवइसंति तो तं पि पयडेमि वज्जिय जिणिंदधम्मं, न सुहं भुवणे वि विज्जए अण्णं । कज्जं वा ठाणं वा, कहिंचि मच्चे व सग्गे वा धम्मऽत्थकामभेया, तिविहं कज्जं मणिच्छियं तत्थ । धम्मो च्चिय सुहकज्ज, असुहा पुण अत्थकामा उ वइराण रायहाणी, आयासकिलेससोगदुहखाणी। सावज्जाऽऽरंभपयं, पावाण परा य सूईया कुलसीलठिइविडंबी, सयणेहि वि सह विरोहकारी य। कुगईकारणमऽत्थो, अणत्थसत्थाण पंथो य लज्जाकरा विलीणा, तुच्छा आयाससाहणिज्जा य। किंचि मुहे महुरा वि हु, दुहाऽवसाणा सुबीभच्छा धम्मगुणहाणिजणगा, भयबहुला अप्पकालिया घोरा । संसारखुड्ढिजणगा, कामा कामिज्जमाणा वि सनरयतिरियगणम्मि, समाणुसाऽमरजणम्मि संसारे। निरुवद्दवं न किंचिवि, विज्जइ ठाणं पि जीवाणं बहुविहदुहाऽऽउलत्ता, परव्वसत्ता महंतमोहत्ता । तिरिएसु वि न सुहत्तं, नरए पुण तं कुओ चेव तह गब्भजम्मदारिद्द-रोगजरमरणविप्पओगेहिं । अभिभूएसुं मणुएसु, नऽत्थि थेवं पि हु सुहत्तं मंसवसण्हारुरुहिरऽट्ठि-विट्ठमुत्तंऽतपयइकलुसम्मि। नवछिड्डुपज्झरते, तद्देहे विहु सुहत्तं किं? पियविप्पओगसंताव-चवणभयगब्धभवणचिंताहि । विहिपहिं दुक्खेहि, अभिक्खणं खिज्जमाणाणं ईसाविसायमयलोह-पमुहदढभाववेरिएहिं पि। देवा विनिच्चं नडिया, ता कतो ताण-वि सुहत्तं सव्वाऽवत्थासुं पिहु, असुहसरूवे भवम्मि जं किंचि । जीवो इमो किलिस्सइ, पावाऽऽसवविलसियं तं से पावस्स आसवो सो, पाणवहाऽऽईहिं तह कसाएहिं । अनिरुद्धिदियमणवइ-काएहिं अविरईए य मिच्छत्तवासणाए य, पाणिणो आइयंति जं पावं। अच्चंतभूरिसलिलं, भूरिदुवाये तडागो व्व तथाहि-- जह सव्वओ असंवुड-वियडदुवारेहि कलुससलिलभरो। पविसइ सरोवरम्मि, कत्तो वि अपत्तपडिखलणो तह इहई पि हु जीवे, पाणवहाऽऽईहिं गरुयदारेहिं । निच्चं असंवुडेहिं, संगलइ पभूयपावभरो तो तेणं पडहत्थो, मच्छाऽऽईण व अणेगदुक्खाण। आभागी होइ जिओ, ता वज्जसु आसवं खवग! आसववसगो सत्तो, संतावं तिव्वमुव्वहइ जम्हा । ता पाणवहाऽऽइविरमणेण तस्संवरं कुणसु सव्वजियअप्पतुल्लो, संवरियाऽसेसआसवदुवारो। जीवो न तलागो इव, पूरिज्जइ पावसलिलेहि तथाहिजह संवरियदुवारे, न पविस्सइ पाणियं वरतलागे। तह ठवियाऽऽसवदारे, जीवम्मि पावनिवहो वि ते धण्णा ताण नमो, तेहिं समं निच्च होज्ज संवासो। जे पिहियाऽऽसवदारा, दूरं पावस्स विहरंति संवरियसव्वआसव-दुवारपसरो य संपयं सम्मं । नवमं विणिज्जराभावणं पि भावेसु खवग! जहा पुव्वं सयं कडाणं, सुदुप्परकंतदुद्दचिण्णाणं । कम्माण वेयणाओ, भणिओ मोक्खो जिणेहिं तहा तिव्वसुहऽज्झवसाया, सव्वासिं चेव कम्मपगडीणं । अनिकाइयाण पायं, जायइ सज्जो विनिज्जरणं छट्ठट्ठमदसमदुवालसऽद्ध-मासाऽऽइणा विचित्तेण । तवसा पुण कम्माणं, निकाइयाणं पि निज्जरणं तावेइ तयारुहिराऽऽइ-धाउणो तह य सव्वकम्माणि । तेण तवो त्ति निरुत्तं, तक्स्स समयण्णुणो बिति तत्थ किर वेयणेणं, नेरइयाऽऽईण कम्मनिज्जरणं। सुहभावा भरहाऽऽईण, संबपमुहाण पुण तवसा तथाहिनेड्याऽऽईणं किर, अणवरयविचित्तदुक्खतवियाणं । कम्माण विणिज्जरणं ति, कित्तिज्जइ देसओ नवरं
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