Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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॥ ७३८२॥ ॥ ७३९३॥ ॥ ७३९४॥ ॥ ७३९५ ॥ ।। ७३९६ ॥ ।। ७३९७ ॥ ॥ ७३९८॥ ॥ ७३९९ ॥ ॥ ७४००॥ ॥ ७४०१ ॥ ॥ ७४०२॥ ॥ ७४०३॥
उद्दामसद्ददुंदुहि-झंकारमिलंतमंतिसामंतो। करितुरयचक्किपाइक्क-चक्कअकंतमहिवीढो करिपट्ठिसंनिविट्ठो, ससिसच्छहछत्तचामराऽऽडोवो। नयराउ नीइ राया, राया व सुराण रिद्धीए वियरित्तु चित्तकीलं, कीलागिरिकाणणाऽऽइसु जहिच्छं। तुरयखुरुक्खयखोणी-रयधूसरसयलसेण्णजणो भूभंगमोक्कलिज्जंत-जंतसामंतकप्पियपणामो। अणवज्जवज्जिराऽऽउज्ज-मेस राया पुरमऽईइ बलवाहणं तु भण्णइ, गयहयवेगसरकरहपभिईयं । तव्वण्णणस्सरूवा, वुच्चइ बलवाहणकह त्ति हयगयरहजोहसमूह-दुम्महुम्महियभूरिरिउवग्गं । एवंविहं न सेण्णं, मण्णे अण्णस्स नरवइणो कोट्ठाऽगारा धण्णाऽऽलया उ, कोसो य होइ भंडारो । तव्वण्णणं तु जं सा, कहा वि तण्णामपुव्वा उ नियभुयपरक्कमक्कन्त-रायकोसेहिं निच्चवटुंतो। नियवंसजपुरिसपरं-पराऽऽगओ जयइ से कोसो इच्चेयाओ चउरो, विगहाओ इमीसु कीरमाणीसु । जे दोसा ते भणिमो, तत्थित्थिकहाए ता पढमं दढमऽप्पणो परस्स य, मोहस्सुद्दीरणं थिइकहाओ। उद्दीरियमोहो पुण दूरुज्झियलज्जमज्जाओ किं किं न चिंतइ मणे, असुहं किं किं न जंपइ गिराए । काएण किं व न कुणइ, कए य तह पवयणुड्डाहो । इत्थीकहं कहतं, सोउं दटुं च जेण छेयजणो । उग्गाराऽऽगारेहिं, इयमित्तो एस इइ कलइ जओवंकभणियाइं कत्तो, कत्तो अद्धऽच्छिपेच्छियव्वाइं। ऊससियं पि मुणिज्जइ, वियड्वजणसंकुले गामे एवं परेहिं परिकलिय-मज्झसारस्स तस्स तुच्छस्स । बंभव्वए वि कीरइ, नूणमऽसंभावणा न कहं संभावणाचुतो पुण, चिंतइ एवं पिणऽत्थि साहुत्तं । ता तं कयं वरं जं, अप्पाऽभिमयं ति तो मूढो इय चितिउं पमायइ, न अट्ठदसठाणगाइं पेहेइ । हंभो ! ऽत्थ दूसमाए, दुप्पज्जीवीपभीईणि । इय इत्थिकहादोसा, अहवा कमसो कहाचउक्के वि । दोसे भणामि ठाणंऽत-रुत्तगाहाचउक्केण आयपरमोहुदीरण-उड्डाहो सुत्तमाऽऽइपरिहाणी । बंभव्वए अगुत्ती, पसंगदोसा उ गमणाऽऽई आहारमंऽतरेण वि, गेहीओ जायए सइंगालं । अजिइंदियओ परिया-वाओ य अणुण्णदोसा य रागद्दोसुप्पत्ती, सपक्खपरपक्खओ उ अहिगरणं । बहुगुण इमो त्ति देसो, सोउं गमणं च अण्णेसि चारियचोराऽभिमरेहि य मारियसंककाउकामा वा। भुत्ताऽभुत्तोहाणे, करेज्ज वा आसंसपओगं तहाजो जं किर कहइ कहं, सो तप्परिणामपरिणओ संतो। तं कहइ सउक्करिसं, काउं तरलिज्जइ य पायं तरलियचित्तो य नरो, संतमऽसंतं पि पत्थुयऽत्थगयं । गुणदोसं आरोवइ, ता तस्स असच्चवाइत्तं रुइयऽत्थपयरिसाऽऽरोवणं च रागाउ होंति तह दोसा । तप्पडिवक्खनिरसणं, एवं पुण रागिदोसित्तं तम्हा असच्चवाइत्त रागि दोसित्त कारणं विकहा। सव्वा वि वज्जणिज्जा, अवज्जहेउ त्ति साहूणं विगहा परो पमाओ, विगहा सद्धम्मझाणविग्घयरी । विगहा अबोहिबीयं, विगहा सज्झाय-पलिमंथो विगहा अणत्थजणणी, परममऽसंभावणापयं विगहा । विगहा असिट्ठपयवी, लहुयत्तणकारिया विगहा विगहा य समिइमहणी, विगहा संजमगुणाण हाणिकरी। विगहा गुत्तिविवत्ती, कुवासणाकारणं विगहा तम्हा विगहाउ विवज्जिऊण, हे अज्ज ! होज्ज तं निच्चं । निव्वाणंऽगमऽवंझं, सज्झायं पइ पयत्तपरो तप्परिसंतो संतो, संतोसं चिय मणे परिवहंतो। संजमगुणाऽविरुद्धा, ता चेव कहा कहेज्ज जहा तेलोक्कतिलयकप्पं, पसवित्ता पुत्तरयणमंऽतम्मि । अन्तगडकेवलितं, पत्ता मुत्तिं च मरुदेवी पासंडिवयणपवणु-च्छलंतमिच्छत्तपंसुपडलेण। पिहियपहं पि न विहियं, दंसणरयणं च सुलसाए इय धण्णा इय पुण्णा, अण्णा मण्णे जयम्मि नत्थित्थी। भुवणगुरुग्गिण्णगुणा, सुए वि सा चेव जं भणिया रागद्दोसविउत्तं, संतं बायालदोसपरिचत्तं । संजमपोसपवित्तं, निच्चमुवटुंभियचरित्तं सुत्तुत्तविहिनिउत्तं, सुमुहाजीवित्तमेत्तसंपण्णं । जुत्तं भत्तं भोत्तुं, उत्तमसाहुत्तणनिमित्तं आणंदसंदिराई, जिणिदचंदाण मंदिराई जहिं । अण्णयवइरेगगया, गुणा य तेरस इमे जत्थ
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