Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ जुण्णो व दरिदो वा, रोगी व पिओ व होइ से विस्से। निप्पीलिओ व्व उच्छ्, माला व मिलाणगयगंधी ॥८००२॥ महिला पुरिसमऽवण्णाए, चेव वंचेइ कूडकवडेहिं। पुरिसो समुज्जओ विहु, महिलं न चएइ वंचेउं ॥८००३॥ वाओलीउ व्व स्याऽऽउलाउ, मइलिति महिलियाउ नरं । संझाउ व्व अवस्सं, भवंति खणमेत्तरागाओ ॥८००४॥ जावइयाई जलाई, वीईओ वालुगा व जलहीसु । नइसु य हवंति तत्तो, महिलाचित्ताइं बहुयाई ॥८००५॥ आगासभूमिजलनिहि-सुरगिरिपवणाऽऽइणो वि पुरिसेहिं । नाउं सक्का न पुणो, कहमऽवि इत्थीण चित्ताई ॥८००६॥ चिटुंति जहा न चिरं, विज्जू जलबुब्बुया व उक्का वा । तह न चिरं महिलाणं, एक्कम्मि नरे रमइ चित्तं ॥८००७॥ परमाणू वि कहंचि वि, आगच्छेज्ज गहणं मणूसस्स । न य सक्का घेत्तुं जे, चित्तं महिलाण अइसुहुमं ॥८००८॥ कुविओ वि कण्हसप्पो, दुद्दो सीहो व मत्तहत्थी वि। धेप्पइ कह वि नरेणं, न य चित्तं दुटुमहिलाए ।। ८००९॥ उदगम्मि वि तरइ सिला, सिही वि न दहेइ होइ हिमसिसिरो। न उण महिलाण कइय वि, उज्जुभावो भवइ पुरिसे ॥ ८०१० ॥ उज्जुगभावम्मि असंतयम्मि, कह होइ तासु वीसंभो। वीसंभे य असंते, का होज्ज रई महिलियासु ॥ ८०११॥ गच्छेज्ज समुद्दस्स वि, पारं पुरिसो भुयाहि तरिऊण । मायाजलमहिलोयहि-पारं न य सक्कए गंतुं ॥८०१२ ॥ रयणसहिया सवग्घा, गुहा व सीयलजला सगाहा य । सरियव्व जणमणहरा (विहु), उब्वियणिज्जा य ही! महिला।। ८०१३ ।। दिलृ पि न सब्भावं, पडिवज्जइ नियडिमेव उड्डेइ । गोहानिलुक्कमित्थी, करेइ पुरिसम्मि कुलजा वि ॥८०१४ ॥ तारिसओ णत्थि अरी, नरस्स अण्णो त्ति वुच्चए नारी । पुरिसं सया पमत्तं, कुणइ त्ति य वुच्चए पमया ॥८०१५ ॥ पुरिसम्मि अणत्थसए, विलायइ जेण तेण विलया सा। जोजेइ नरं दुक्खे य, तेण जुवई य जोसा य अबल त्ति होइ जं से, न दढं हिययम्मि धिइबलं अस्थि । इय महिलानामाणि वि, चिंतिजं ताणि असुहाणि ॥८०१७ ॥ निलओ कलीए अलियाण, आलओ कुलहरं अविणयाणं । आयासस्स य वसही, महिला मूलं तु कलहस्स ॥८०१८॥ धम्मस्स परमविग्यो, पाउब्भावो य धुवमऽधम्मस्स । संदेहो देहस्स वि, हेऊ माणाऽवमाणाणं ॥८०१९॥ बीयं पराभवाणं, महिलाओ कारणं अकित्तीए । अत्थाणं सव्वगमो, समागमो तह अणत्थाणं ॥८०२०॥ दोग्गइमग्गो सग्गाऽप-वग्गमग्गे य अग्गला उग्गा । दोसाण नियाऽऽवासो, सव्व-गुणाणं पवासो य ॥८०२१ ॥ चंदो वि होज्ज उण्हो. सीओ सरो वि निबिडमाऽऽयासं । न य होज्ज अदोसा भद्दिया य महिला सुकुलजा वि ॥८०२२ ॥ इच्चाऽऽई बहुदोसे, महिलाविसए विचिंतयंतस्स । पायं विरज्जइ मणो, महिलाहिंतो विवेइस्स ॥ ८०२३ ॥ जह जाणिऊण दोसे, वग्घाऽऽई एत्थ परिहरिजंति । तह दळूणं दोसे, महिलाहिंतो वि विरमेज्ज ॥ ८०२४ ॥ किं बहुणा भणिएणं, दोसा महिलाकया इहं चेव । हेट्ठाऽणुसट्ठिदारे, गणवइणा देसिया चेव ॥ ८०२५ ॥ जं सुद्धकारणकयं, कारणसुद्धीए सुज्झइ तयं तु । कत्तो अमेज्झघडियस्स, होज्ज सुद्धी सरीरस्स ॥८०२६॥ देहस्स सुक्कसोणिय-मऽसुई उप्पत्तिकारणं जम्हा । ता देहो च्चिय असुई, अमेज्झघडिओ जहा घडओ ॥ ८०२७॥ तहाहिअम्मापिउसंजोगे, सोणियसुक्काण मीलणे कलुसं। जं होइ तत्थ जीवो, उप्पज्जइ पढममेव तओ ॥८०२८॥ तं कलुसं सत्ताहं, कललं होऊण अब्बुयं होइ । सत्ताहं चिय तत्तो, घणरूवं पढममासम्मि ।। ८०२९ ॥ करिसूणं पलमेत्तं, जायइ बीयम्मि तं च मासम्मि। घणरूवमंसपेसी, संपज्जइ तइयमासे य ।। ८०३०॥ जणणीए जणइ डोहल-मंऽगाणि य पीणइ चउत्थम्मि। निव्वत्तइ पंचमगे, सिरकरचरणंऽकुरमऽवत्तं ॥ ८०३१॥ उवचिणइ छट्ठमासे, सोणियपित्ताई सत्तमम्मि पुणो। सत्तसयाई सिराणं, पंच सयाइं च पेसीणं ॥ ८०३२॥ धमणीओ नव सव्वंग-भाविअधुटुरोमकोडीओ। निव्वत्तइ अट्ठमए, वित्तीकप्पो भवइ पच्छा ॥८०३३॥ नवमे वा दसमे वा, जणणि अप्पाणयं च पीडंतो । नीसरइ जोणिकुहराओ, विरससई रसेमाणो ॥८०३४॥ अणुपुव्वीए वुड्ढीगए य, देहम्मि मुत्तरुहिराणं । पत्तेयमाऽऽढयं कुल-वओ य तह सिंभपित्ताणं ।। ८०३५॥ सुक्कस्स अद्धकुलवो, हवेइ पत्थो य मत्थुलिंगस्स। अद्धाऽऽढओ वसाए, एक्को पत्थो पुरीसस्स ।। ८०३६॥ ૨૨૬

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378