Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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कामाऽऽउरस्स गच्छइ, खणो वि संवच्छरो व्व पुरिसस्स। सीयंति य अंगाई, वहइ मणे इट्ठउक्कंठं
॥७९६८॥ करयलकलियकवोलं, बहुसो चिंतेइ किंपि दीणमुहो । कामुम्मत्तो अंतो, अंतो डज्झइ य चिंताए
॥ ७९६९॥ विवरीयविहिवसेण य, कामिजंते जणे अलब्भंते । पाडइ निरत्थयं सो, गिरिजलजलणेसु अप्पाणं
॥ ७९७० ॥ अरइरइतरलजीहाजुएण, संकप्पउब्भडफडेण । विसयबिलवासिणा मय-सुहेण बिब्बोयरोसेण
॥ ७९७१॥ कामभुयगेण दट्ठा, विलासनिम्मोयदप्पदाढेण । नासंति नरा अवसा, दुसहदुक्खुक्कडविसेण
॥ ७९७२ ॥ आसीविसेण दट्ठस्स, होति वेया नरस्स सत्तेव । कामभुयंगमदट्ठस्स, होंति वेया दस दुरंता
॥ ७९७३॥ पढमे चिंतइ वेगे, दळु त इच्छए बिइयवेगे। नीससइ तइयवेगे, आरुहइ जरो चउत्थम्मि
॥ ७९७४ ॥ डज्झइ पंचमवेगे, अंगं छठे न रोयए भत्तं । मुच्छिज्जइ सत्तमए, उम्मत्तो होइ अट्ठमए
॥ ७९७५ ॥ नवमे किंपि न याणइ, दसमे पाणेहिं मुच्चइ अवस्सं । संकप्पवसेण पुणो, वेगा तिव्वा य मंदा य
॥ ७९७६॥ सूरऽग्गी दहइ दिया, रत्ति च दिवा य दहइ कामऽग्गी । सूरग्गिणोऽस्थि उच्छा-यणं पि कामग्गिणो नत्थि ॥ ७९७७॥ विज्झायइ सूरग्गी, जलोवयाराऽऽइणा न कामग्गी । सूरग्गी दहइ तयं, सबाहिरब्भंतरं इयरो .
॥७९७८॥ कामपिसायग्गहिओ, हियमऽहियं वा न अप्पणो मुणइ । पेच्छइ कामग्घत्थो, हियं भणंतं पि सत्तुं व
॥ ७९७९॥ कामग्घत्थो पुरिसो, तिलोयसारं पि चयइ सुयरयणं । तेलोक्कपूइयं न य, माहप्पं पि हु गणइ मूढो
॥७९८०॥ तेलोक्कपूयणिज्जे, जिणेहि भणिए सयं च विण्णेये । मण्णइ तणं व तवनाण-चरणदंसणवरगुणे वि
॥ ७९८१ ॥ अरहंतसिद्धआयरिय-वायगाणं च साहुवग्गस्स । कुणइ अवण्णमऽधण्णो, अविभावेंतो भवुत्थभयं
॥ ७९८२ ॥ अयसमऽणत्थं दुक्खं, इहलोए दुग्गइं च परलोए। संसारं च अणंतं, न गणइ विसयाऽऽमिसे गिद्धो
॥ ७९८३ ॥ लल्लक्कनरयवियणाउ, घोरसंसारसायरुव्वहणं । संगच्छइ न य पेच्छइ, तुच्छत्तं कामियसुहस्स
॥ ७९८४॥ गायइ नच्चइ धोवइ, चलणजुयं पि हु मलेइ अंगाई । सोहइ मुत्तपुरीसं, कुलम्मि जाओ वि विसयवसो ॥७९८५ ॥ वम्महसरसयविद्धो, गिद्धो वणिओ व्व रायपत्तीए। पाउक्खालयगेहे, दुग्गंधे णेगसो वसिओ
॥ ७९८६॥ कामुम्मत्तो न मुणइ, गम्माऽगम्मं च वेसियाणो व्व । सेट्ठी कुबेरदत्तो व्व, नियसुयासुरयरइसत्तो
॥ ७९८७॥ इहलोगे वि महल्लं, दुक्खं कामस्स वसगओ पत्तो । मरिठं च पावबद्धो, कडारपिंगो गओ नरयं
॥ ७९८८॥ एए सव्वे दोसा, न होंति पुरिसस्स बंभयारिरस्स । तव्विरीया य गुणा, भवंति विविहा विरागिस्स
॥७९८९॥ महिला इहपरभविए, हणिऊण गुणे नरस्स सवसस्स । उभयभवदुक्खजणगे, दोसे नियमेण आणेइ
॥ ७९९० ॥ महिला सहावकुडिला, अडणिव्व बहुं पि अणुसरिज्जंती। पुरिसं सभूमिगाउ, वालिय विविहं भमाडेइ ॥ ७९९१॥ महिला पहधूलिसमा, सहावकलुसा अकलुसपयई पि। लद्धप्पसरा पुरिसं, सव्वंगं चेव कलुसेइ
॥ ७९९२॥ महिला वंसकुडंगी व, गहणभूया सहावओ चेव । संपण्णफला वि हु कुणइ, निययवंसक्खयं दुट्ठा
॥ ७९९३॥ महिलासु नत्थि वीसभएण, पणयपरिचयकयण्णुयाऽऽइगुणा । उज्झंति नियकुलाई, जमऽण्णचित्ताओ ताओ लहुं ।। ७९९४ ।। पुरिसे वीसंभेइ, महिला हेलाए चेव पुरिसा उ। महिलं वीसंभेउं, बहुप्पयारेहिं वि न सक्का
॥ ७९९५ ॥ अइलहुगे वि अविणए, कयम्मि सुकयाण लक्खमऽगणेती। पइमऽप्पाणं सयणं, कुलं धणं नासए महिला ॥७९९६॥ अहवाअकए वि हु अवराहे, नारीओ नरंतरे कयमणाओ। कुव्वंति वहं पइणो, सुयस्स ससुरस्स पिउणो वि ॥७९९७ ॥ सक्कारं उवयारं, गुणं च सुहलालणं च नेहं च । महुरवयणं च महिला, परप्पसत्ता परिप्फुसइ
॥ ७९९८॥ चोरग्गिवग्घविसजलहि-मत्तगयकसिणसप्पसत्तूसु । सो वीसंभं गच्छइ, वीसंभइ जो महिलियासु
॥ ७९९९ ॥ वग्घाऽऽइया य अहवा, दोसं न नरस्स तमिह कुव्वंति । जं कुणइ महादोसं, दुट्ठा महिला मणूसस्स
।। ८०००॥ रोगो दारिदं वा, जरा व न उवेइ जाव पुरिसस्स । ताव पिओ हवइ नरो, कुलजायाए वि महिलाए
॥ ८००१॥ १. अडणि = मार्गः,
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