Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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तण्हाछुहाऽऽइपरिताविओ वि, जीवाण घायणं काउं। पडियारं सुमिणम्मि वि, कइयावि हुमा करेज्जासि रइअरइहरिसभयऊसु-गत्तदीणत्तणाऽऽइजुत्तो वि। भोगपरिभोगहेडं, मा तं चितेसु जीववहं तेलोक्कजीवियाणं, वरेहि एगयरयं ति देवेहिं । भणिए तेलोकं को, वरेज्ज नियजीवियं मोत्तुं जं एवं तेल्लोक्कं, णऽग्घइ जीवस्स जीवियं तम्हा । भुवणत्तयलाभाओ वि, दुल्लहं वल्लहं च सया थोवत्थोवेण बहु, संजममऽग्जिणिय महुयरो व्व महुं । तिहुयणसारं हिंसा-महंतकलसेहिं मा चयसु नत्थि अणूओ अप्पं, आयासाओ महल्लयं नत्थि । जह तह जियरक्खाओ, अवरं पवरं न वयमऽत्थि जह पव्वएसु मेरु, उच्चागो होइ सव्वलोगम्मि । तह जाणसु अइगरुयं, सीलेसु वएसु य अहिंसं जह आयासे लोगो, दीवसमद्दा जहा य भमीए । तह जाण अहिंसाए, ठियाणि तवदाणसीलाणि जंजीववहेण विणा, विसयसुहं नत्थि जीवलोगम्मि। ता जीवदया जायइ, महव्वयं विसयविमुहस्स परिचत्तविसयसंगे, फासुयआहारपाणभोइम्मि। मणवयणकायगुत्ते, होइ अहिंसावयं सुद्ध कुव्वंतस्स वि जत्तं, तुंबेण विणा न ठंति जह अरया। अरएहि विणा य जहा, तुंबं पि न साहइ सकज्ज तह जाण अहिंसाए, विणा उ न पयं लहंति सेसगुणा । न य तेहिं च विउत्ता, कुणइ सकज्जं अहिंसा वि सच्चऽमचोरिक्कं बंभ-चेरमऽपरिग्गहो अनिसिभत्तं । एयाई अहिंसाए, रक्खा दिक्खाए गहणं च जम्हा असच्चवयणाऽऽइएहिं, दुक्खं परस्स होइ दढं । तप्परिहारो तम्हा, परं अहिंसा गुणाऽऽहाणं मारणसीलो कुणइ, जीवाणं रक्खसो व्व उव्वेवं । संबंधिणो वि मारंत-यम्मि नो जंति विस्सासं जीवगयाऽजीवगया, दुविहा हिंसा उ तत्थ जीवगया। अठुत्तरसयभेया, इयरा एक्कारसविहा उ जोगेहिं कसाएहि, कयकारियअणमईहिं तह गणिया। संरंभसमारंभा-5ऽरंभाउ भवंति अट्ठसयं संरंभो संकप्पो, परितावकरो भवे समारंभो । आरंभो उद्दवओ, सव्वनयाणं विसुद्धाणं निक्खेवो निव्वत्ती, तहेव संजोयणा निसग्गो य । कमसो चउ-दुग-दुगतिग-भेयादेक्कारस भवंति अपमज्जियदुपमज्जिय-सहसाऽणाभोगओ य णिक्खेवो । कोउयदुप्पउत्तो, तहोवगरणं च निव्वत्ती संजोयणमुवगरणाण, पढममियरं च भत्तपाणाणं । दुट्ठनिसिट्ठा मणवइ-काया भेया निसग्गस्स हिंसाओ अविरमणं, वहपरिणामो य होइ हिंसा जं । तम्हा पमत्तजोगो, पाणव्ववरोवओ निच्चं जीवो कसायबहुलो, संतो जीवाण घायणं कुणइ । जो पुण विजियकसायो, सो जीववहं परिच्चयइ आयाणे निक्खेवे, वोसिरणे ठाणगमणसयणे य । सव्वत्थ अप्पमत्ते, दयावरे होइ हु अहिंसा काएसु निरारंभे, सण्णाणे रइपरायणमणम्मि। सव्वत्थुवओगपरे, संपुण्णा होइ हु अहिंसा तेणेवाऽऽरंभरया-णाऽणेसणीयाऽऽइपिंडभोईण । घरसरणप्पडिबद्धाण, सायरसगिद्धिगिद्धाणं सच्छंदपयाराणं, गामकुलाऽऽईसु कयममत्ताण । अण्णाणीणमऽहिंसा, न घडइ खरसिरविसाणं व ता नाणदाणदिक्खा-दुक्करतवजागसुगुरुसेवाणं । जोगऽब्भासाणं पि हु, सारो एक्को च्चिय अहिंसा अप्पाउमऽणारोग्गं, दोहग्ग-दुरूवया य दोगच्चं । दुव्वण्णगंधरसया य, होंति वहगस्स परलोए तम्हा इह परलोए, दुक्खाणि सया अणिच्छमाणेणं । उवओगो कायव्वो, जीवदयाए सया मुणिणा जं किंचि सुहमुयारं, पहुत्तणं पयइसुंदरं जं च । आरोग्गं सोहग्गं, तं तमऽहिंसाफलं सव्वं परिहर असच्चवयणं, खमग ! चउब्भेयमऽवि पयत्तेण । संजमवंता विजओ, भासादोसेण लिप्पंति सब्भूयत्थनिसेहो, पढममऽसच्चं न सन्ति जह जीवा । बीयमऽसब्भूयकहा, संति जहा भूयकत्तारा अण्णह वयणं तइयं, निच्चो जीवो भवे अणिच्चो वा। साऽवज्जमऽणेगविहं, वयणमऽसच्चं चउत्थं तु जत्तो पाणिवहाऽऽई, दोसा जायंति तमिह साऽवज्जं । अप्पियवयणं च तहा, कक्कसपेसुण्णमाऽऽइयं हासेण व कोहेण व, लोभेण भएण वा वि तमऽसच्चं । मा भणसु भणसु सच्चं, जीवहियत्थं पसत्थमिणं
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