Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 229
________________ अह अण्णया कयाई, उज्जेणिपुरं पडुच्च वच्चंतो। जवखेत्तरक्खणुज्जय-मऽइनिहुयमिओतओ हुँतं अणुसरिय रासहं खेत्त-सामिणा फुडगिराए भण्णंतं । पायडियभावमेयं, खंडसिलोगं निसामेत्था "आधावसि पधावसि, ममं चेव निरिक्खसि । लक्खितो ते मए भावो, जवं पत्थेसि गद्दहा!" एयं च सिलोगं कोउगेण, अवधारिऊण सो साहू । गंतुं पहे पयट्टो, नवरं एगत्थ ठाणम्मि रममाणेहि डिभेहि खिप्पमाणा कहिं पि बिलमज्झे । पडिया अमुणिज्जती, अडोल्लिया तं च सव्वत्थ मग्गंति डिभाई, निउणं जा नेव कहवि पेच्छंति । ता तं बिलं पलोइय, डिंभेणेक्कण पढियमिमं "इओ गया इओ गया, मग्गिजंती न दीसइ । अहमेयं वियाणामि, बिले पडिया अडोल्लिया" सोच्चा इमो वि मुणिणा, कोऊहलओऽवधारिओ सम्मं । पत्तो य स उज्जेणि, ठिओ गिहे कुंभयारस्स तत्थ वि य कुंभयारो, भयभीयमिओतओ पलायंतं । मूसगमाऽऽसज्ज इमं, खंडसिलोगं पढेइ जहा "सुकुमालया भद्दलया, रत्ति हिंडणसीलया । दीहपिट्ठस्स बीहेहि, नत्थि ते ममओ भयं"। एसो वि रायरिसिणा, जवेण अवधारिओ सिलोयतियं । एयं च विभावेंतो, अच्छइ सो धम्मकिच्चपरो नवरं पुव्वाऽणुसयं, किंपि वहंतेण दिग्घपिटेण । तव्वसहीए विविहाऽऽ-उहाणि ठविउंणिवो भणिओ सामण्णपराभग्गो, रज्जत्थमिहाऽऽगओ तुहं जणगो। पत्तियसि जइ न मझं, ता तव्वसहीए पेहेसु विविहाई आउहाई, विविहपयारेहिं नूमियाइं तओ। पेहावियाई रण्णा, दिट्ठाणि य ताई तह चेव रज्जाऽवहारभीओ, तयऽणु णिवो दिग्घपिट्ठपरियरिओ। लोयाऽववायरक्खण-कएण रयणीए घेत्तूण नीलपहोलिकरालं, करवालं कुंभयारभवणम्मि। केणइ अमुणिज्जतो, गतो लहुं साहुहणणट्ठा एत्थंतरम्मि मुणिणा, कहंपि पढिओ स पढमसिलोगो। रण्णा नायं नृणं, अइसेसी एस नाओम्हि अह बीओ, विहु पढिओ, मुणिणा तं पुण निसामिउं राया। विम्हइओ अहह! कहं, भइणीवित्तं पि नायं ति अह तइओ वि हु पढिओ, तत्तो राया पवड्ढियाऽमरिसो। चिन्तइ उज्झियरज्जो, कह मज्झ पिया पुणो रज्जं । वंछेइ नवरमेसो, पावाऽमच्चो ममं विणासेउं । एवं कुणइ पयत्तं, ता दुट्ठमिमं हणेमि त्ति सीसं से छिदित्ता, कहेइ साहस्स निययवत्तंतं । तो सो सयपढणे जाय-उज्जमो इय विचितेइ सिक्खियव्वं मणूसेण, अवि जारिसतारिसं। पेच्छ खंडसिलोगेहि, जीवियं परिरक्खियं एत्तो च्चिय पढणत्थं, पुरा ममं गुरुजणोऽणुसासितो । मुक्खत्तणेण य अहं, तइया थेवं पि न पढ़ेंतो जइ मूढलोयरइयं पि, पढियमेवंफलं सुयं होइ । ता जिणवरप्पणीयं, कहं न होही महाफलयं एवं विभाविउं सो, गओ समीवे गुरुस्स दुव्विणयं । खामेत्ता जत्तेणं, पढिउं सुत्तं समारद्धो जीयं संजमपरिपालणं च, एवं जवो समणुपत्तो । इयरो य जणगअविणा-सणेण कित्तिं च सुगतिं च इय सामण्णसुयस्स वि, पहावमुवलक्खिऊण खवग! तुम । तेल्लोक्कपहुपणीए, सुयम्मि सव्वाऽऽयरं कुणसु एवं सम्मं नाणोवयोग-पडिदारमऽक्खियं एत्तो । पंचमहव्वयरक्खा-दारं दसमं पवक्खामि सम्मण्णाणोवओगस्स, होइ वयरक्खणं फलं । वरनिव्वाणनयरपहसंदणाण ताणं पुण वयाण पढमं वहचाओ बीय-मऽलीयविरई तइज्जगमऽतेणं । मेहुणनिवित्ती तुरियं, पंचममऽपरिग्गहो तत्थ परिहर छज्जीववहं, सम्म मणवयणकायजोगेहिं । जीवविसेसे नाउं, जाजीवमिमे य ते जीवा पुढविदगाऽगणिवाया, एक्केक्का हुमबायरा होति । साहारणपत्तेओ, दुविहो य वणस्सई होइ साहारणो य दुविहो, सुहुमो तह बायरो य नायव्वो। पज्जत्ताऽपज्जत्तग-भेया सव्वे वि बावीसं दुतिचउरिदियविगला, पणिदि सण्णी असण्णिणो दुविहा। पज्जत्ताऽपज्जत्तग-भेएण तसा दसवियप्पा एमाऽऽइवियप्पेसुं, जीवेसु सया वि नायपरमत्थो। सव्वाऽऽयरमुवउत्तो, अप्पोवम्मेण कुणसु दयं सव्वे वि हु जीवा जीवियं खु, इच्छंति नेय मरिउं जे । ता पाणवहं घोरं, धीरा परिवज्जयंति सया ॥७८६१॥ ॥ ७८६२॥ ॥ ७८६३॥ ॥ ७८६४ ॥ ॥ ७८६५॥ ॥ ७८६६॥ ॥ ७८६७॥ ॥ ७८६८॥ ॥ ७८६९ ॥ ॥ ७८७०॥ ॥ ७८७१ ॥ ॥ ७८७२ ॥ ॥ ७८७३ ॥ ॥७८७४ ॥ ॥ ७८७५ ॥ ॥७८७६ ॥ ॥ ७८७७॥ ॥७८७८ ॥ ॥ ७८७९ ॥ ॥ ७८८०॥ ॥ ७८८१॥ ॥ ७८८२॥ ॥ ७८८३ ॥ ॥ ७८८४॥ ॥ ७८८५॥ ॥ ७८८६॥ ॥ ७८८७॥ ॥ ७८८८॥ ।। ७८८९॥ ॥ ७८९०॥ ।। ७८९१ ॥ ॥ ७८९२॥ ॥ ७८९३॥ ॥ ७८९४॥ ।। ७८९५॥ ॥ ७८९६॥ ૨૨૨

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