Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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।। ८१०६ ॥ ॥८१०७॥ ॥८१०८॥ ॥८१०९॥ ।। ८११०॥ ।। ८१११॥ ॥८११२॥ ॥ ८११३ ॥ ॥८११४॥ ॥८११५॥ ॥ ८११६॥ ॥ ८११७॥ ॥ ८११८ ॥ ॥ ८११९ ॥ ॥८१२०॥ ॥ ८१२१ ॥ ॥ ८१२२॥
पडिओ चंचुपुडाओ, सलिलोवरि कहावि चारुदत्तो तं । सत्थेण भिंदिऊणं, गब्भाओ इव विणिक्खंतो एवंविहवसणाई, अणिट्ठसंगेण पाविओ इण्हेिं । जह सिट्ठसंगतो सिरि-मऽणुपत्तो सो तहा सुणसु तं जलमुल्लंघित्ता, संनिहिए सो गतो रयणदीवे । तं च पलोएमाणो, आरूढो सेलकूडम्मि काउस्सग्गेण ठियं, अमियगई नाम चारणं समणं । तत्थ य दळु वंदइ, पहरिसपुलयंचियसरीरो मुणिणा वि काउसग्गं, पाराविय दिण्णधम्मलाभेण । भणियं कह दुग्गे इह, समागओ चारुदत्त ! तुम सुमरसि किं न महायस!, जं तुमए हं पुरीए चंपाए । सत्तुब्बद्धो काणण-गएण परिमोइओ पुव्वं विज्जाहररज्जसिरि, भुजित्ता केत्तियाणि वि दिणाणि । पडिवण्णो पव्वज्जं, आयावितो इह वसामि एमाऽऽइ जा पयंपइ, अमियगती ताव मयणपडिरूवा। ओयरिया गयणाउ, दोण्णि विज्जाहरकुमारा साहुं नमंसिऊणं, अभिवंदेऊण चारुदत्तं च । आसीणा धरणीए, भालोवरि रइयकरकमला एत्थंतरम्मि मणिमय-मउडोणामियसिरो सुरो एइ । वंदइ य चारुदत्तं, पढमं पच्छा तवस्सिं पि अह विम्हिएहि विज्जाहरेहिं, पुट्ठो सुरो अहो ! कम्हा । साहुं मोत्तूण तुमं, पडिओ गिहिणो पएसुं ति भणियं सुरेण एसो, धम्मगुरू मज्झ चारुदत्तो त्ति । पावाविओ इमेणं, दितेणं जिणणमोक्कारं मरणम्मि अजो हुँतो, देवसिरि एरिसं सुदुल्लंभं । एत्तो च्चिय जाणामि, मुणिणो सव्वण्णुणो य जओ वुत्तो य चारुदत्तो, सुरेण भो! वरसु संपइ वरं ति । एज्जासि सुमरणम्मि, इय भणिओ चारुदत्तेण देवो गओ सथामं, तत्तो विज्जाहरेहिं गुणवं ति । पउरमणिकणयसंभार-भरियगुरुए विमाणम्मि आरोविऊण चंपा-पुरीए नेऊण निययभवणम्मि । मुक्को य चारुदत्तो, पत्तो य समुण्णइं परमं इय दुटुसिट्ठगोट्ठी-फलाइं आलोइउं इहभवे वि। निम्मलगुणड्ढसुवियड्ढ-वुड्ढसेवाए जइयव्वं किचनिच्चं वुड्ढसहावे, तरुणे वुड्ढे य सुठ्ठ सेवंता । तह गुरुकुलमऽमुयंता, चरति बंभव्वयं धीरा कामाऽणिलेण हिययं, पचलइ पुरिसस्स अप्पसारस्स । पेच्छंतस्स य बहुसो, इत्थीयणवयणरमणाणि मंथरगइठाणविलास-हासबिब्बोयहावभावेहिं । सोहग्गरूवलावण्ण-लट्ठसंठाणचेट्टाहि । अद्धऽच्छिपेच्छिएहिं वि, विसेसदरहसियजंपियव्वेहि। सरसपइक्खणसंलाव-ललियलीलाइयव्वेहिं पयईए सिणि हिं, पयईए मणोहरेहिं पाएणं । थीसंतिएहिं पुरिसो, रहमिलणेहिं च खुभइ तओ कमवढियपीइरइ-पावियवीसंभपणयपसरो य । लज्जालुओ वि पुरिसो, किं किं तं जं न वि करेइ तहाहिपिइमाइमित्तगुरुसिटु-लोयरायाऽऽइसंतियं लज्जं । गउरवमऽवरोहं परि-चयं च दूरेण परिहरइ कित्तिं अत्थविणासं, कुलक्कम पाविए य धम्मगुणे । करचरणकण्णनासाऽऽइ-लुंपणं पि हुन पेहेज्जा संसग्गीमूढमणो, मेहुणरमिओ विमुक्कमज्जाओ। पुव्वावरमऽगणेतो, किमऽकिच्चं जं न आयरइ इंदियकसायसण्णा-गारवपमुहा सहावओ सव्वे । संसग्गिलद्धपसरे, पुरिसे अचिरा वियंभंति थेरो बहुस्सुओ वि हु, पमाणभूओ मुणी तवस्सी वि। अचिरेण लहइ दोसं, महिलावग्गस्स संसग्गा किं पुण तरुणा अबहु-स्सुयाऽऽइणो सरुइचारिणो मंदा । तस्संसग्गीए मूलओ, (ते) विनट्ठच्चिय भवंति महिलासंसग्गीए, अमाणुसाऽडविकडिल्लवासी वि। नइकूलवालगमुणी, विडंबणं पाविओ परमं । जो महिलासंसग्गिं, विसं व दूराउ चेव परिहरइ । नित्थरइ बंभचेरं, जावज्जीवं अकंपं सो अवलोयणमेत्तेण वि, जं मुच्छं ताओ देंति पुरिसस्स । तेण हयमहिलियाणं, नयणाई विसाऽऽलयाई फुडं मारेइ एक्कसि चिय, तिव्वविसभुयंगवग्गसंसग्गी । इत्थीसंसग्गी पुण, अणंतखुत्तो नरं हणइ इय वयवणमूलऽग्गिं, थीसंसग्गिं सया वि जो चयइ । स सुहेण बंभचेरं, नित्थरइ जसं च वित्थरइ
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