Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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मियमहुरमऽखरमऽफरुस-मऽच्छलकज्जोवगं असावज्जं । धम्माऽहम्मियसुहयं, भणाहि तं चेव य सुणाहि सच्चं वयंति रिसिणो, रिसीहिं विहियाउ सव्वविज्जाउ। मेच्छस्स वि सिझंती, नियमेणं सच्चवाइस्स विस्ससणिज्जो माय व्व, होइ पुज्जो गुरुव्व लोगस्स । सयणो व्व सच्चवाई, पुरिसो सव्वस्स होइ पिओ सच्चम्मि तवो सच्चम्मि, संजमो तम्मि चेव सव्वगुणा । इह संजओ वि मोसेण, होइ तणतुच्छओ पुरिसो न डहइ अग्गी न जलं पि, बोलए सच्चवाइणं पुरिसं। सच्चबलियं सुपुरिसं, न नेइ तिक्खा गिरिनई वि सच्चेण देवयाओ, नमंति पुरिसस्स ठंति य वसम्मि। सच्चेण गहग्गहियं, मोइंति करेंति रक्खं च सच्चं ववगयदोसं, वोत्तूण जणस्स मज्झयारम्मि। पावइ परमं पीइं, जसंच जयविस्सुयं लहइ मायाए वि हु वेसो, पुरिसो अलिएण होइ एक्केण । किं पुण सेसाण भुयं-गमो व्व नो होज्ज अइवेसो अप्पच्चओ अकित्ती, धिक्कारो कलहवेरभयसोगा। धणनासो वहबंधो, असच्चवाइम्मि संनिहिया परलोगम्मि वि दोसा, ते चेव हवंति अलियवाइस्स। चोरिक्काऽऽई सेसे, जत्तेण वि परिहरंतस्स इहलोगपारलोइय-दोसा जे होंति अलियवयणस्स। कक्कसवयणाऽऽईण वि, दोसा ते चेव नायव्वा अलियं पयंपमाणो, एमाऽऽई पावए बहू दोसे । परिहरमाणो तं पुण, तव्विवरीए य लहइ गुणे . मा कुणसु धीर! बुद्धि, अप्पं च बहुं च परधणं घेत्तुं । दंतंतरसोहणयं, किलिंचमेत्तं पि अविइण्णं जह मक्कडओ पक्कप्फलाई, दळूण धाइ धोओ वि। इय जीवो परविहवं, विविहं दह्ण अहिलसइ न य तं लहइ न भुंजइ, भुत्तं पि न कुणइ निव्वुइं तस्स । सव्वजएण वि जीवो, लोभाऽऽविट्ठो न लिप्पइ य तह जो अत्थं अवहरइ, जस्स सो जीवियं पि से हरइ । जं सो अत्थकएणं, उज्झइ जीयं न उण अत्थं हुंते य तम्मि जीवइ, सुहं च सकलत्तओ तओ लहइ । तं पुण तस्स हरतेण, तेण सव्वं पि हडमेव ता जीवदयं परमं, धम्म गहिऊण गेण्ह माऽदिण्णं । जिणगणहरपडिसिद्ध, लोयविरुद्धं च अहमंच चरिउं पि चिरं चरणं, किलिंचमेत्तं पि घेत्तुमऽविदिण्णं । तणलहुओ होइ नरो, अप्पच्चइओ य चोरोव्व वहबंधजायणाओ, छायाभंसं पराभवं सोगं । पावइ चोरो सयमऽवि, मरणं सव्वस्सहरणं च निच्चं दिवा य रत्तिं च, संकेमाणो न निद्दमुवलभइ । भयतरलं पेच्छंतो, अच्छइ गच्छइ य हरिणो व्व उंदुरकयं पि सदं, सोच्चा परिवेवमाणसव्वंऽगो। सहसा समंतओ तह, उव्विग्गो धावइ खलंतो परलोगम्मि वि चोरो, करेइ नरयम्मि अप्पणो वसहिं । तिव्वाओ वेयणाओ, अणुभवइ तत्थ सुचिरं पि तिरियगईए वि तहा, चोरो पाउणइ तिक्खदुक्खाई। किं बहुणा दुत्तारे, संसारसरे सरइ बहुसो हरिया व अहरिया वा, नस्संति नरभवेवि तस्सऽत्था । न हु से धणमुवचीयइ, सयं च ओलोट्टइ धणाओ परदव्वहरणबुद्धी, सिरिभूई दुक्खदारुणे नरए । पडिओ तत्तोऽणंतं, भमिओ संसारकंतारे एए सव्वे दोसा, न होंति परदव्वहरणविरयस्स । होंति समग्गा य गुणा, एत्तो च्चिय निच्चमुवउत्तो देवेंदरायगहवइ-सागरिसाहम्मिओग्गहम्मि तुमं । समुचियविहिणा दिण्णं, गेण्हसु सामण्णहेउं ति रक्खाहि बंभचेरंच, बंभगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं । निच्चं पि अप्पमत्तो, पंचविहे इत्थिवेरग्गे जीवो बंभा जीवम्मि, चेव चरिया भवेज्ज जा जइणो । तं जाण बंभचेरं, विमुक्कपरदेहतत्तिस्स "वसहिकहनिसेज्जेंदिय-कुडुतरपुव्वकीलियपणीए । अइमायाऽऽहारविभूसणा य, नव बंभगुत्तीओ" कामकया १ इत्थिकया २, दोसा असुइत्त ३ वुड्ढसेवा ४ य। संसग्गीदोसा ५ वि य, करेंति इत्थीसु वेरग्गं जावइया किर दोसा, इह परलोगे दुहाऽऽवहा होति । आवहइ ते उ सव्वे, मेहुणसण्णा मणूसस्स सोयइ वेवइ तप्पइ, जंपइ कामाऽऽउरो असंबद्धं । रत्तिं दिया वि निदं, न लहइ पज्झाइ विमणो य सयणे जणे व सयणाऽऽसणे वि, गामे घरे अरण्णे वा। कामपिसायग्गहिओ, न रमइ तह भोयणाऽऽईस
॥७९३३ ।। ॥ ७९३४॥ ॥७९३५॥ ॥ ७९३६ ॥ ॥ ७९३७॥ ॥७९३८॥ ॥७९३९॥ ॥ ७९४०॥ ॥ ७९४१॥ ॥ ७९४२॥ ॥७९४३॥ ॥ ७९४४॥ ॥ ७९४५॥ ॥७९४६॥ ॥ ७९४७॥ ॥ ७९४८॥ ॥ ७९४९॥ ॥ ७९५०॥ ।। ७९५१॥ ॥ ७९५२॥ ॥७९५३ ॥ ॥७९५४॥ ॥७९५५॥ ॥ ७९५६॥ ॥ ७९५७॥ ॥ ७९५८॥ ॥ ७९५९॥ ॥७९६०॥ ॥ ७९६१ ॥ ॥ ७९६२ ॥ ॥ ७९६३ ॥ ॥७९६४ ॥ ॥ ७९६५॥ ॥ ७९६६॥ ॥ ७९६७॥
१. धाओ= ध्रातः - तृप्तः,
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