Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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एयस्स पभावेणं, न विद्दवंतीह भूयवेयाला । खुद्दोवद्दववग्गो, सेसो वि पणस्सइ अवस्सं
॥ ७७५३॥ एयं पिउणो वयणो-वरोहओ सो तहत्ति पडिवण्णो । कालं गए य जणए, खीणम्मि य अत्थसारम्मि
॥ ७७५४ ॥ सच्छंदभमणसीलो, घडेइ मेत्ति तिदंडिणा सद्धि । उज्झियकुलक्कमाणं, केत्तियमिममऽहव पुरिसाणं ॥ ७७५५ ॥ एगम्मि अवसरे सो, भणिओ य तिदंडिणा सविस्संभं । कसिणचउद्दसिरयणीए. मडयमऽविणट्रलट्रंऽगं ॥ ७७५६॥ आणेसि जइ तुमं भद्द !, ता तुहं विद्दवेमि दारिदं । तं साहिऊण अहयं, दिव्वाए मंतसत्तीए
॥७७५७॥ पडिवण्णमिमं सावयसुएण, पत्ते य भणियसमयम्मि। विजणमसाणपएसे, तहेव तेणोवणीयं से
॥ ७७५८॥ पाणिपइट्ठियखग्गं, ठवियं च तयं तु मंडलगउवरि। सावयसुओ य पुरओ, तस्सेव निवेसियो तत्थ
॥७७५९॥ सो य तिदंडी बाढं, विज्जं उच्चारिठं समाऽऽरद्धो। विज्जाऽऽवेसवसेण य, मडगं उट्ठेउमाऽऽरद्धं
॥ ७७६०॥ भीओ सावयपुत्तो, सरिओ य झडत्ति पंचनवकारो। तप्पडिहयसामत्थं, पडियं च महीयले मडयं
॥ ७७६१॥ पुणरवि तिदंडिदढविज्ज-जावओ उट्ठिऊण पडियम्मि । मडए भणियमऽणेणं, सावयसुय ! मुणसि कि पि तुमं ॥७७६२ ॥ तेणं पयंपियं नेव, किं पि अह झाणपयरिसाऽऽरूढो । जविउं पुणो तिदंडी, पारद्धो निययवरविज्जं
॥७७६३॥ सवसुयमऽक्खमेणं, पंचनमोक्काररक्खियं हंतुं । दोहंडिओ तिदंडी, मडएण झडत्ति खग्गेण
॥ ७७६४॥ अह मडयखग्गघायप्पभाव-संजायजायरूवंगो। सावयसुएण दिट्ठो, झत्ति तिदंडी पहि₹ण
॥ ७७६५ ॥ ताहे तदंऽगुवंगाई, खंडिउंणियगिहे निहित्ताई। पंचपरमेट्ठिमंत-प्पभावओ ईसरो जाओ
॥ ७७६६॥ कामविसयम्मि नायं तु, साविगा मिच्छदिट्ठिणो भज्जा । जीए नमोक्काराओ, जाओ सप्पो वि कुसुमसरी ॥७७६७॥ तथाहिएगम्मि सण्णिवेसे, मिच्छट्टिी गिहाऽहिवो एक्को। भज्जा य साविया से, अच्चन्तं धम्मपडिबद्धा ॥ ७७६८॥ तीसे उवरिं अवरं, भज्जं परिणेउमीहमाणो सो। ससवत्तिगो त्ति तं पुण, अलहंतो खुद्दपरिणामो
॥ ७७६९॥ चिन्तेइ पुव्वभज्जं, कहं हणिस्सं ति अण्णया कसिणं । सप्पं घडे निहित्ता, भवणस्सऽब्भन्तरे ठवइ ॥ ७७७० ॥ कयभोयणो य तं भणइ, सावियं अमुगठाणणिहियाउ। घडयाओ कुसुममालं भद्दे ! मझं पणामेहि
॥ ७७७१ ॥ अह सा गिहे पविठ्ठा, अचक्खुविसओ त्ति पंचनवकारं । सरमाणी तम्मि घडे, कुसुमत्थं पक्खिवइ हत्थं ॥ ७७७२॥ एत्थंतरम्मि सप्पो, अवहरितो देवयाए गंधड्डा । ठविया य तम्मि ठाणे, वियसियसियकुसुमवरमाला ॥ ७७७३ ॥ घेत्तुं सा तीए सम-प्पिया य पइणो तओ ससंभंतो। गंतूण तं णिहालइ, घडयं नो पेच्छइ सप्पं
॥ ७७७४ ॥ ताहे महप्पभाव त्ति, पायवडिओ कहेइ नियवत्तं । खामेऊण य ठावइ, तं नियघरसामिणिपयम्मि
॥ ७७७५ ॥ इय इहलोगे धणकाम-साहगो एस ताव नवकारो । परलोगे च्चिय सुहओ, हुंडियजक्खस्स व इमो त्ति ॥ ७७७६ ॥ तथाहिमहराए नगरीए. हंडिज्जनामो उ तक्करो लोयं । मसमाणो अणवरयं, पत्तो आरक्खपरिसेहि
॥ ७७७७॥ आरोवेऊणं रास-भम्मि नगरीए भामिओ पच्छा । पक्खित्तो सूलाए, भिण्णसरीरो य तीए दढं
॥ ७७७८॥ तण्हाकिलामियंऽगो, तेण पएसेण पेच्छिउं जंतं । जिणदत्तणामधेयं, सुसावगं भणइ सुदुहट्टो
॥ ७७७९॥ हंभो! महायस! तुम, सुसावगो दुक्खिएसु करुणपरो । ता मम तिसियस्स लहं, कत्तो वि जलं पणामेहि ॥ ७७८०॥ अह सावएण भणियं, इमं नमोक्कारमऽणुविचितेहि। जा ते आणेमि जलं, जइ पुण विस्सारिहिसि एवं ॥ ७७८१ ॥ ता आणीयं पिन तुज्झ, भद्द ! दाहामि एव भणिओ सो। तल्लोलुययाए दढं, नवकारं सरिउमाऽऽरद्धो ॥७७८२॥ जिणदत्तो पुण सलिलं, गहाय गेहाओ आगओ जाव । नवकारमुच्चरंतस्स, ताव से अइगयं जीयं
॥ ७७८३॥ तो तप्पभावओ सो, मरिठं जक्खत्तणं समऽणुपत्तो । अह चोरभत्तदाइत्ति, रायपुरिसेहिं जिणदत्तो
।। ७७८४ ॥ घेत्तूण अप्पिओ नर-वइस्स तेणाऽवि जंपियमिमं पि। सूलाए आरोवह, तक्करपडितुल्लदोसं ति
॥ ७७८५ ॥ एवं वुत्ते नीओ, जिणदत्तो तेहिं आघयणठाणे । एत्थंतरम्मि हुंडिय-जक्खेण पउंजिओ ओही
॥ ७७८६॥ सूलाए निम्भिण्णं, नियदेहं सावयं च तह दुटुं । रुट्ठो सो नयरोवरि, पव्वयमुप्पाडिउं भणइ
॥७७८७॥ १. दोहंडिओ - द्विखण्डितः,
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