Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 225
________________ संविग्गेणं मणसा, अखलियफुडमणहरेण य सरेण । पउमाऽऽसणिओ करबद्ध-जोगमुद्दो य काएणं ॥ ७७१८॥ सम्म संपुण्णं चिय, समुच्चरेज्जा सयं णमोक्कारं । उस्सग्गेणेस विही, अह बलगलणे तहा न पहू ॥ ७७१९॥ तण्णामाऽणुग असिया-उस त्ति, पंचक्खरे तहवि सम्मं । निहुयं पि परावत्तेज्ज, कह वि अह तत्थऽवि असत्तो ॥७७२० ॥ ता झाएज्जा ओमिति संगहिया जं इमेण अरहंता । असरीरा आयरिया, उवझाया मुणिवरा सव्वे ।। ७७२१ ॥ एयण्णामाऽऽइनिसण्ण-वण्णसंधिप्पयोगओ जम्हा । सद्दण्णुएहि एसो, ओंकारो किर विणिद्दिट्ठो ॥ ७७२२॥ एयज्झाणा परमे-ट्ठिणो फुडं झाइया भवे पंच । अहवा जो एयं पि हु, झाएउं होज्ज असमत्थो ।। ७७२३॥ सो पासट्ठियकल्लाण-मित्तवग्गेण पंचनवकारं । निसुणेज्ज पढिज्जंतं, हिययम्मि इमं च भावेज्जा ॥ ७७२४ ॥ एसो स सारगंठी, एस स को वि हु दुलंभलंभो त्ति । एसो स इट्ठसंगो, एयं तं परमतत्तं ति। ॥७७२५ ॥ अहह ! तडत्थो जाओ, नूणं भवजलहिणो अहं अज्ज । अण्णह कहिं अहं कह व, एस एवं समाओगो ।। ७७२६॥ धण्णो हं जेण मए, अणोरपारम्मि भवसमुद्दम्मि। पंचण्ह नमोक्कारो, अचिंतचिंतामणी पत्तो ।। ७७२७॥ किं नाम अज्ज अमय-तणेण सव्वंऽगियं परिणओ हं। किं वा सयलसुहमओ, कओ अकंडे वि केणाऽवि ॥ ७७२८॥ इय परमसमरसापत्ति-पुव्वमाऽऽयण्णिओ नमोक्कारो। निहणइ किलिट्टकम्मं, विसं व सियधारणाजोगो ॥ ७७२९॥ जेणेस नमोक्कारो, सरिओ भावेण अंतकालम्मि। तेणाऽऽहूयं सोक्खं, दुक्खस्स जलंजली दिण्णो ॥ ७७३०॥ एसो जणओ जणणी य, एस एसो अकारणो बंधू । एसो मित्तं एसो, परमुवयारी नमोक्कारो ॥७७३१॥ सेयाण परमसेयं, मंगल्लाणं च परममंगल्लं । पुण्णाण परमपुण्णं, फलं फलाणं नमोक्कारो ॥ ७७३२॥ तह एस नमोक्कारो, इहलोगगिहाओ जीवपहियाण । परलोयपहपयट्टाण, परम पच्छयणसारिच्छो ॥ ७७३३॥ जह जह तस्सवणरसो, परिणमइ मणम्मि तह तह कमेण । खयमेइ कम्मगंठी, नीरनिहित्ताऽऽमकुंभो व्व ॥ ७७३४॥ तवनियमसंजमरहो, पंचनमोक्कारसारहिपउत्तो। नाणतुरंगमजुत्तो, नेइ नरं नेव्वुइनगरं ॥ ७७३५ ॥ जलणो वि होज्ज सीओ, पडिपहहुत्तं वहेज्ज सुरसरिया। न य नाम न नेज्ज इमो, परमपयपुरं नमोक्कारो ॥ ७७३६ ॥ आराहणापरस्सर-मऽणण्णहियओ विसद्धलेसागो। संसारुच्छेयकरं, ता मा सिढिलसु नमोक्कारं ॥ ७७३७॥ एसो हि नमोक्कारो, कीरइ नियमेण मरणकालम्मि । जं जिणवरेहि दिट्ठो, संसारुच्छेयणसमत्थो ॥ ७७३८॥ अक्खेवेणं कम्म-क्खओ तहा मंगलाऽऽगमो नियमा। तक्काले च्चिय सम्मं, पंचनमोक्कारकरणफलं ॥ ७७३९ ॥ कालन्तरभाविफलं तु, दुविहमिहभवियमऽण्णभवियं च । इहभवियमऽत्थकामा, उभयभवसुहावहा सम्म ॥७७४०॥ इहभवसुहावहा तत्थ, ताव अकिलेसभवणओ ताण । आरोग्गपुव्वगं तह, निविग्घं ताण माणणओ ॥ ७७४१॥ परभवसुहावहा पुण, सुत्तविहीए सुठाणविणियोगा। पंचनमोक्कारफलं, अह भण्णइ अण्णभवियं पि ॥७७४२॥ जइ वि न तज्जम्मे च्चिय, सिद्धिगमो कह वि जायए तह वि। पत्तनमोक्कारा एक्कसि पि किर तमऽविरार्हिता ॥७७४३ ॥ उत्तमदेवेस तहा, कलेस विउलेस अतलसभकलिया। हिडित्ता पज्जंते, सिज्झंति चेव विहयरया ॥ ७७४४॥ इह पुण परमत्थेणं, नाणावरणाऽऽइयाण कम्माणं । पइखणमऽणंतपोग्गल-विगमम्मि जायमाणम्मि ॥ ७७४५॥ पाउणइ नमोक्कारस्स, पढमं वण्णं नकारमऽह सेसे। वण्णे पत्तेयं चिय, तदऽणंतविसुद्विसब्भावो ॥ ७७४६॥ एवं एक्कक्कं पि हु, अक्खरमऽच्चन्तकम्मखयलब्भं । जस्स स कहं न वंछिय-फलदाई होइ नवकारो ॥ ७७४७॥ किंचइहभवियमऽत्थकामा, जं भणियं तत्थ अत्थविसए ता। सावगपुत्तो नायं, जायऽत्थो मडगवइयरओ ॥७७४८॥ तहाहिएगम्मि महानगरे, सावगपुत्तो उ जोव्वणुम्मत्तो । वेसाजूयपसंगी, अच्चंतपमायपडिबद्धो ॥७७४९॥ सुचिरं बहुप्पयारेहिं, भण्णमाणो वि धम्मपडिवत्तिं । न कुणइ निरंऽकुसो करि-वरो व्व विस्संथुलं ललइ ॥ ७७५०॥ अह सो पिउणा करुणाए, बाहरेऊण मरणसमयम्मि । भणिओ पुत्तय ! जइ वि हु, दढं पमत्तो तहावि तुमं ॥ ७७५१॥ पंचनमोक्कारमिमं, समत्थवत्थूण साहणसमत्थं । पढसु सया य सरेज्जसु, दुत्थाऽवत्थासु वरमंतं ॥ ७७५२॥ १. पच्छयण = पथ्यदनम् = शम्बलम्, ૨૧૮

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