Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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चिक्खल्लपाणथंडिल-वसहीगोरसजलाऽऽउले वेज्जे। ओसहनिचयाऽहिवइ-पासंडा भिक्खसज्झाए
॥ ७४२८॥ साहम्मियजणपउरो, अणुड्डुओ आरिओ अपच्चन्तो। संजमगुणेक्कहेऊ, साहुविहाराऽरिहो देसो
॥ ७४२९॥ चंडभुयदंडमंडव-निवेसियाऽसेसचक्कवट्टिसिरी । नमिरनरनाहसिरमणि-मऊहविच्छुरियपयवीढो
॥ ७४३०॥ भरहो राया रयणंऽ-गुलीयगलणुब्भवन्तसंवेगो। अंतेउरमज्झगओ वि, केवलं झत्ति संपत्तो
॥ ७४३१ ॥ एवंविहाउ थीभत्त-देसनरनाहगोयराओ वि। धम्मगुणहेउयाओ, कहाओ ताओ न विकहाओ
॥७४३२॥ इय जइ विगहागहगसिय-धम्मसारस्स परिगलंति गुणा । संजमगुणोवउत्तस्स, ता वरं चिट्ठिउं जुत्तं
॥७४३३॥ एस विकहापमाओ, भणिओ तब्भणणओ य पुण भणिओ। मज्जाऽऽइलक्खणो खलु, पंचपयारो पमाओ वि ॥७४३४ ॥ अण्णं पि समयविउणो, जूयपमायं भणंति किर छटुं। सो पुण लोगद्गस्साऽवि, बाहगो चेव निद्दिट्ठो ॥ ७४३५॥ इहलोगे ताव नरो दुज्जयजूयप्पमायसत्तुजिओ। चउरंगबलसमेयं, सज्जो रज्जं पि हारेइ
॥ ७४३६॥ हारेइ धणं धण्णं, खेत्तं वत्थु सुवण्णयं रुप्पं । दुपयं चउप्पयं पि हु, निस्सेसं कुवियजायंच
।। ७४३७॥ किं बहुणा अंगगयं पि, जाव कच्छोटयं पि हारित्ता । पहपडियपत्तकप्पड-पच्छाइयकडियलविभागो . ॥ ७४३८॥ हारियसव्वस्सो वि हु, देहाऽवयवं पि हत्थपायाऽऽई। उड्डिय जूयाराणं, जूयं चिय रमइ मूढमणो
॥ ७४३९॥ ढिंढो रणाऽवणीए, अगणियअत्थव्वओ सह परेहिं । जयबद्धमणो विलसइ, जूयारो रायपुत्तो व्व
॥ ७४४०॥ अहवाअगणियछुहापिवासो, अगणियसीउण्हदसमसगो य । अगणियअत्तसुहदुहो, अगणियसयणाऽऽइपडिबंधो ॥ ७४४१॥ अगणियपरोवहासो, निप्पडिकम्मो निराऽऽवरणदेहो। जियनिद्दो थिरएगग्ग-धारणो पत्थुयत्थम्मि
॥ ७४४२॥ अण्णत्तो विणियत्तिय, तुरंगतरतरलइंदियप्पसरो। ओ! नज्जइ जूयारो, झाणोवगओ महरिसिव्व
॥ ७४४३॥ जरचीरियानिवसणो, लीहालयखडियखरडियसरीरो। कंडूयणुट्ठियरेहो, समंतओ लुलियकेसो य
॥ ७४४४॥ खरफरुससरीरच्छवि-कडित्तघसणुत्थहत्थकिणजालो। अवणिद्दयरत्तऽच्छो, उवमिज्जइ केण जूयारो ॥ ७४४५॥ सो तारिसो वराओ, पइदिणवटुंतजूयदढराओ। पइखणअवरोप्परविहिय-संपराओ अगाराओ
॥ ७४४६॥ कि पि हु अपावमाणो, हारइ भज्जं पितं च मोएउं । चितेइ चोरियं पि हु, तप्परिणयमाणसो य तओ ॥ ७४४७॥ तत्थेव संपयट्टइ, तहा पयट्टो य पावइ पावो । सो तइयपावठाणग-वण्णियदोसे असेसे वि
॥ ७४४८॥ ओवाइयाइं इच्छइ, कुलदेवयजक्खसक्कमाऽऽईणं । निवडंतसमत्थाऽणत्थ-सत्थनित्थरणकज्जकए ॥ ७४४९॥ जहाअहियं सऽहिओ खिज्जउ, जूययरा खयमुवेंतु सव्वे वि। वसमंतु अणत्था पुण, होउ य अत्थो महं विउलो ॥७४५०॥ एवं च चिंतयंतो, अपुण्णवंछो वहं च बंधं च । रोहं अंगच्छेयं, तेहिंतो लहइ मरणं पि
॥ ७४५१॥ एवं च कुलं सीलं, कित्ति मित्तिं परक्कम सकमं । सत्थं अत्थं कामं, जूयप्पसत्तो पणासेइ
॥ ७४५२॥ इय इहलोइयगुणवज्जिओ कहं सुगइहेउणो सम्मं । सक्को समऽज्जिणेउं, गुणे जणे लद्धधिक्कारो
॥ ७४५३॥ पामाकंडुयणसुहेल्लि-तुल्लमऽवि वासणाजणियमऽणुयं । किर किं पि कामकीलाए, कामुओ कलयइ सुहं पि ॥७४५४ ॥ नीरसचिरकालियहड्ड-खंडकवलणसमेण साणो व्व । जूयरमणेण किर किं, जूयारो पुण मुणइ सोक्खं ॥ ७४५५॥ गेहसिरी देहसिरी, सिठ्ठत्तसिरी य सुहसिरी अहवा । इहपरलोयगुणसिरी, सज्जो जूयाओ जाइ खयं
॥ ७४५६॥ सुव्वंति य एत्थऽत्थे, सत्थेसु अणेगहा कहाणाई । हारियरज्जाऽऽईणं, नलपंडवपमुहराईणं
॥ ७४५७॥ अण्णे पुण अण्णाणं, मिच्छानाणं च संसयं रागं । दोसं सुईए भंसं, अणाऽऽयरं तह य धम्मम्मि
॥ ७४५८॥ मणवयणकायजोगाण, दुप्पणिहाणाणमऽह परं काउं। पत्थुयपमायमेयं, अट्ठपयारं परूवेंति
॥ ७४५९॥ तत्थ य नाणाऽभावं, अण्णाणं नाणरासिणो बेंति । तं पुण सव्वाणं पि हु, जीवाणं दारुणो सत्तू
॥ ७४६०॥ कट्ठाण परमकट्टे, अहिट्ठिओ जेण एस जंतुगणो। अप्पगयं पि हियाहिय-मऽटुं न मुणइ मणागं पि
।। ७४६१ ॥ नवरं नाणाऽभावो, थोवत्तविवक्खया इहं नेयो। नो पुण स सव्वह च्चिय, जहा इमा अणुदरी कण्णा ॥ ७४६२॥ १. ढिंढो - पतितः,
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